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‘भय’ में चुनाव और नतीजे से भी ‘भय’!

वाराणसी। सन् 2014 से हर चुनाव नरेंद्र मोदी का। उन जैसा न कोई चुनाव लड़ता है और न कोई लड़ सकता है। मानों चुनाव ही उनकी ऊर्जा, बल, धुन और उसी की मास्टरी में जनता पर जादू! प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लोगों को अभिभूत, अंध भक्त बनाने का हर नुस्खा जानते हैं। पॉवर के स्वाद और भूख में वे चुनावों से इतने पके हैं कि प्रचार और कैंपेन उनके स्वभाव और शासन का एक हिस्सा है। five state assembly election

चुनाव और कैंपेन में उन्हें मजा आता है। चुनाव और चुनाव की भीड़ उनकी खुशी का वक्त होता है। अभिनय, भाषण-संवाद उनका लोक-लुभावन सेट होता है। मैं नरेंद्र मोदी को 2014 से लोकसभा-विधानसभा चुनावों में फॉलो करती रही हुई हूं और हर चुनाव के बाद लगा कि नरेंद्र मोदी की ‘आर्ट ऑफ इलेक्शनरिंग’ नए-नए प्रोफेशनल हुनर से चुस्त व चमचमाती हुई है। हर चुनाव से उनकी भाव-भंगिमा अधिकाधिक खिलती हुई और उसके जादू पर इठलाते हुए।

लेकिन इस चुनाव में बहुत कुछ मिस था। इस दफा नरेंद्र मोदी चुनाव को एनजॉय करते हुए नहीं थे। वे ठहरे-ठिठके और आंखें घूमाते हुए लोगों के चेहरों से बूझने की कोशिश में थे कि वे उनके अपने हैं या नहीं! सब सही है या कुछ गड़बड़? चुनाव मानों बोझ। एक जुआ! खास कर काशी के आखिरी रोड शो में भरोसे की चमक लगभग नहीं के बराबर।

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जैसे चार मार्च को ग्रैंड रोड शो के बाद राजू यादव ने कहा- लाइट गायब है अब की बार!…. बहुत उदास से लग रहे थे।

जाहिर है राजू नाम के बाद क्योंकि यादव है तो मान सकते हैं कि वह समाजवादी पार्टी का वोटर होगा। मगर वह 2014 से नरेंद्र मोदी का दिवाना रहा है इसलिए प्रधानमंत्री का शो देखने पहुंचा था और उसे देख वह अच्छा फील नहीं कर रहा था।

तो पहले वाली चमक नहीं!… संभव है ऐसा थकान के कारण हो? भरोसा नहीं होने और अनिश्चितता भी वजह हो सकती है तो संभव है संदेह-खौफ और चिंता भी कारण हो?

दिल्ली के एक पत्रकार ने कहा- ऐसा लड़ाई और यूक्रेन के कारण है।

काशी के एक नागरिक ने कहा- उन्हें मालूम है कि वे काशी में हार रहे हैं।

काशी के एक सुधी-बड़े चेहरे ने कहा- उन्हें समझ आ रहा है कि आगे का रास्ता मुश्किल है।

कारण कोई भी हो सकता है और शायद सभी कारणों से ऐसा हो लेकिन इस सबसे यह तो तय मानें कि वे उसी भय में अब हैं, जो उन्होंने सर्वप्रथम बनवाया। सबको ध्यान है कि कैसे प्रधानमंत्री मोदी और उनकी सरकार ने यह भय बनाया है कि भारत कितने खतरे में है? और वे ही बचा सकते हैं। विपक्ष का डर और डर में विपक्ष और अब प्रधानमंत्री का डर और डर में प्रधानमंत्री!

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इधर से उधर उत्तर प्रदेश खंगालते हुए लोग भय और अविश्वास में जैसे दिखलाई दिए, वह अकल्पनीय है। विशेषकर खौफ चुनाव में दोनों तरफ का सेंट्रल प्वाइंट। विभाजक भाषणबाजी, हिंदू बनाम मुस्लिम और देशद्रोही का नैरेटिव पुराना है और उसके आदी हो कर लोग मौन रह कर, कन्नी काटकर जीने का स्वभाव बना बैठे हैं। मगर मतदाताओं में चखचख का यह भय नया है कि योगी की बुलडोजर सरकार बनने दो फिर देख लेंगे या अखिलेश सरकार बन गई तो उसके निशाने में कौन-कौन होंगे।

चुनाव की पूरी कैंपेनिंग भय के सुर लिए हुए थी तो भला मतदाता कैसे खुल कर बोलता? मतदाताओं का दिल-दिमाग कई तरह और कई प्रकार के भय लिए हुए है। पत्रकार और कैमरा टीम को ले कर भय तो कार्यकर्ताओं के प्रचार से भी कन्नी काटते हुए लोग। कानून-व्यवस्था का भय, महंगाई का भय, बेरोजगारी का भय तो मोदी सेना का भय, यादव सेना का भय। जो जीतेगा उसका भय, जो हारेगा उसे भय। सर्वत्र भय और चुनाव बाद की कई चिंताएं।

मतदाता के नाते गांव-देहात में भय इस चिंता में भी कि कहीं दूसरी जात, दूसरी पार्टी के लोगों को मालूम नहीं हो जाए कि उसने किसको वोट डाला? भय के चलते फ्लोटिंग वोटों का भी इधर से उधर पड़ना हुआ होगा। जिसे देना चाहते थे उसे इसलिए नहीं दिया कि मोहल्ले, गांव में फिर रहना मुश्किल होगा। बीजेपी का वोट या सपा का वोट बूथ विशेष की दबंग हवा के डर में प्रभावित नहीं हुआ हो यह संभव नहीं है क्योंकि गांव-देहात में एक-दूसरे पर निर्भरता अधिक होती है।

भय में विपक्ष निश्चित ही होगा। अखिलेश यादव और मायवती सभी। ये चुनाव हारे तो आगे क्या होगा, इसका भय तो मोदी-योगी-शाह के लिए भय इसलिए क्योंकि दस मार्च को यदि कमल मुरझाया तो आगे राज करना कैसा मुश्किल होगा, तब सन् 2024 के चुनाव में क्या होगा?

कोविड की महामारी के वक्त में उत्तर प्रदेश के चुनावी मूड से साफ लगा कि भय और चिंताओं में पूरा जनजीवन ढला हुआ है। सभी अनिश्चितताओं से घिरे हुए हैं। पांच राज्यों के चुनाव नतीजों से अनिश्चितता और भय दोनों बढ़ेंगे। यह तो संभव नहीं कि पांच राज्यों में भाजपा सन् 2017 की तरह खिलखिलाती चुनाव जीते। मगर यूपी में तो उससे जीतना ही चाहिए। यदि वह नहीं जीतती है तो मोदी-शाह और भाजपा तब कैसे भय में आगे रहेंगे? five state assembly election

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By श्रुति व्यास

संवाददाता/स्तंभकार/ संपादक नया इंडिया में संवाददता और स्तंभकार। प्रबंध संपादक- www.nayaindia.com राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय राजनीति के समसामयिक विषयों पर रिपोर्टिंग और कॉलम लेखन। स्कॉटलेंड की सेंट एंड्रियूज विश्वविधालय में इंटरनेशनल रिलेशन व मेनेजमेंट के अध्ययन के साथ बीबीसी, दिल्ली आदि में वर्क अनुभव ले पत्रकारिता और भारत की राजनीति की राजनीति में दिलचस्पी से समसामयिक विषयों पर लिखना शुरू किया। लोकसभा तथा विधानसभा चुनावों की ग्राउंड रिपोर्टिंग, यूट्यूब तथा सोशल मीडिया के साथ अंग्रेजी वेबसाइट दिप्रिंट, रिडिफ आदि में लेखन योगदान। लिखने का पसंदीदा विषय लोकसभा-विधानसभा चुनावों को कवर करते हुए लोगों के मूड़, उनमें चरचे-चरखे और जमीनी हकीकत को समझना-बूझना।

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