nayaindia Alexei Navalny Russia ‘रशिया विदाउट नवेलनी’

‘रशिया विदाउट नवेलनी’

एलेक्सी नवेलनी  निहत्थे थे और अकेले थे। मगर फिर भी वे उस आदमी के लिए सबसे बड़ा खतरा थे जो सारी दुनिया के लिए खतरा बना बैठा है।

उस आदमी से, उसकी तानाशाही से, उसकी बेरहमी से और उसकी सत्ता से नवेलनी  अकेले ही लड़ते रहे। और बाकी दुनिया, जो अपने आप को बहुत ताकतवर बताती है और पश्चिम के देश और आजादी के तराने गाने वाले उसके तमाम नेता चुप्पी साधे रहे।उन्होने नवेलनी के लिए कुछ नहीं किया।

नवेलनी  से बहुत उम्मीदें थीं, सिर्फ रूसियों को ही नहीं बल्कि सारी दुनिया को। सारी दुनिया इन दिनों यह जानते हुए है कि लोकप्रियता की लहर पर सवार तानाशाह राष्ट्रपतियों और प्रधानमंत्रियों का बोलबाला बढ़ रहा है।और इस हकीकत में उम्मीद की एक आवाज़ नवेलनी को व्लादिमिर पुतिन ने सोलह फरवरी को हमेशा हमेशा के लिए चुप कर दिया।

नवेलनी बहुत शिष्ट थे। वे करिश्माई थे। और उनकी आँखों में आग थी। मगर कुल मिलाकर वे एक आम आदमी थे, जिसमें कुछ भी ख़ास नहीं दिखता था। वे वकील थे जो पुतिन की भ्रष्ट सरकार और उनके गुर्गों के काले कारनामों का भंडाफोड़ करने के लिए ब्लॉगर बने। फिर वे एक राजनीतिज्ञ बने और फिर केवल और केवल पुतिन के अकेले और निडर आलोचक। पुतिन की निर्मम और भ्रष्ट सरकार के खिलाफ खड़े होने के उनके साहस के चलते वे सोवियत संघ के पतन के बाद के पहले और अकेले विपक्षी नेता बने।

हत्यारे भी होते हैं राष्ट्रपति!

इसकी शुरूआत 2011 में हुई जब पुतिन की युनाईटेड रशिया पार्टी ने धांधली से चुनाव जीता।नवेलनी  की पहल पर इसके खिलाफ दसियों हजार लोगों ने सड़कों पर उतर पर प्रदर्शन किया। इनमें मजदूरों से लेकर शहरी बुद्धिजीवी तक शामिल थे। इनका नारा था ‘रशिया विदाउट पुतिन’।अफसोस कि आज 12 साल बाद पुतिन अभी भी सत्ता में है और ‘रशिया विदाउट नवेलनी ’ है।

नवेलनी  को यह अहसास था कि वे पुतिन के लिए खतरा हैं और यह भी कि मौत उनका पीछा कर रही है। सन् 2020 में पहली बार उन्हें मौत के खतरे का सामना करना पड़ा। जब वे साईबेरिया में चुनाव प्रचार कर रहे थे तब उनके कपड़ों पर रूसी सेना द्वारा बनाया गया नोवीचोक नामक एक नर्व एजेंट बुरक दिया गया। वे कोमा में चले गए। उन्हें इलाज के लिए बर्लिन ले जाया गया। उनकी जान बच गई और यह एक चमत्कार ही था। इस घटना से वे डरे नहीं बल्कि और दृढ हो गए। यदि उनकी जगह कोई और होता तो वह किसी दूसरे देश में राजनैतिक शरण ले लेता और अपनी जान की खैर मनाता। लेकिन उन्होंने रूस वापिस जाकर अपने कातिल पुतिन का मुकाबला करने का फैसला किया।

वे जानते थे कि इसकी उन्हें क्या कीमत चुकानी होगी। उन्हें मास्को पहुंचते ही गिरफ्तार कर लिया गया और बेतुके आरोप लगाकर जेल भेज दिया गया। लेकिन उन्होंने अपना इंतकाम ले लिया। उनके साथियों ने दो घंटे की फिल्म ‘‘व्लादिमीर द पाईजनर ऑफ अंडरपेंटस” रिलीज कर दी। इस फिल्म में काला सागर में पुतिन के गुप्त आलिशान महल का खुलासा किया गया जिसमें हैलीपेड़, गुंबदों वाला निजी गिरजाघर, सोने के शौचालय और पोल डांस के लिए स्टेज है। ऐसा बताया जाता है कि नवेलनी  पर फिल्मों और टीवी धारावाहिकों का काफी प्रभाव था और राजनीति की उनकी पूरी समझ ‘‘द वायर” और “द वेस्ट विंग” पर आधारित थी। साइंस फिक्शन उनकी पहली पसंद था, जिसमें एक भयावह ब्रह्माण्ड में डरावने और निहायत दुष्ट विलेन होते हैं।

वे पुतिन के रूस के खिलाफ एक खतरनाक लड़ाई लड़ रहे थे, जहां जीवन एक क्रूर, वहशी की कड़ी निगरानी में जीना पड़ता था और जो देश एक खुली जेल के मानिंद था। इसलिए नवेलनी  एक योद्धा बन गए, इस नए युग के योद्धाने इंटरनेट को अपना हथियार बनाया।नवेलनी  जो कुछ करते, उसे वे यूटयूब पर लाईव स्ट्रीम करते थे। वे सरकार में व्याप्त भ्रष्टाचार को उजागर करते थे। सत्ता ने उन्हें एक इन्टरनेट योद्धा बताकर उनका मखौल बनाया। लेकिन जल्दी ही यह इंटरनेट योद्धा, क्रेमलिन के गले का कांटा बन गया। उनकी बढ़ती ताकत से घबराकर क्रेमलिन ने उनके 2017 का राष्ट्रपति चुनाव लड़ने पर पाबंदी लगा दी। हालांकि यूटयूब के जरिए राजनीति में उनकी दखल लगातार बनी रही। चाहे बर्लिन में उनके उपचार का समय हो या जेल के सींखचों के पीछे सड़ने का दौर, सब कुछ इन्टरनेट पर था।नवेलनी  जेल में रहने के दौरान भी पुतिन के लिए मुसीबत बने रहे। अपने वकीलों के जरिए नवेलनी  इंस्टाग्राम पर अपने सन्देश पोस्ट करते रहे। ये पोस्ट नाटकीय, व्यंग्यात्मक और प्रेरक हुआ करते थे।

फरवरी 2022 में जब पुतिन ने यूक्रेन पर हमला किया, तब उन्होंने रूसियों से सड़कों पर उतरने का आव्हान किया। इससे पुतिन इतने घबरा गए कि उन्होंने अपने लोगों के ज़रिये नवेलनी  पर और झूठे केस लाद दिए और नवेलनी  के कारावास की अवधि 19 साल और बढ़ गई। उन पर पर आरोप यह था कि वे ‘अतिवादी’ हैं। दिसंबर में उन्हें आर्कटिक सर्किल में एक नए गुलाग में रख दिया गया। गुलाग पुराने सोवियत संघ में उन जेलों को कहा जाता था जिनमें कैदियों को बहुत ख़राब हालात में रखा जाता था और उनसे बहुत कड़ी मेहनत करवाई जाती थी। इस गुलाग का नाम था ‘पोलर वुल्फ’।उन्हें टुन्ड्रा से घिरे एक ऐसे स्थान में रख दिया गया जहाँ जिंदा रहना ही बड़ी उपलब्धि होती है।

उस समय भी ऐसी आशंका जाहिर की गयी थी कि उनकी सुरक्षा और उनके स्वास्थ्य को गंभीर खतरा है। मगर नवेलनी  बिलकुल डरे नहीं, वे वहां रख दिए जाने से बिलकुल परेशान नहीं थे। उनकी आँखों की चमक बरक़रार रही और शारीरिक और मानसिक रूप से उन्हें तोड़ने के प्रयासों को उन्होंने हंसी में टाल दिया। यामल जेल के प्रांगण में जमा देने वाली सर्दी में मोर्निंग वाक करते समय भी उन्होंने मजाक करने की अपनी क्षमता नहीं खोई। उन्होंने अमरीकी फिल्म निर्माता-अभिनेता लियोनार्डो डिकैप्रियो की फिल्म ‘द रेव्नेंट’ को याद किया, जिसमें नायक ठंड से बचने के लिए अपने घोड़े को मार कर उसकी खाल में शरण लेता है। उन्होंने लिखा “यहाँ तो हाथी की ज़रुरत है जो गर्म हो बल्कि भूना जा चुका हो।” वे वीडियो लिंक के जरिये अदालत की पेशियों में उपस्थित होते थे जिनमें वे जजों, सरकारी वकीलों और जेल के गार्डों पर फब्तियां कसते थे। इससे भी महत्वपूर्ण यह कि वे पुतिन और उनकी सरकार के लिए अजेय खतरा बने रहे। हाल में उन्होंने रूसियों से यह अपील की थी कि वे आने वाले चुनावों में पुतिन के खिलाफ वोट दें।

यह आखिरी बार था जब उन्हें देखा-सुना गया। और16 फरवरी को उनका क़त्ल कर दिया गया, शायद ज़हर देकर। उनका शव अब तक उनकी माँ को सौंपा नहीं गया है। ऐसा बताया जाता है कि यह इसलिए किया जा रहा है ताकि मौत के पहले उनके साथ जो किया गया, उसके प्रमाण मिटाए जा सकें। इस बीच, उन्हें श्रद्धांजलि देने वाले 300 रूसियों को भी गिरफ्तार किया गया है।

सन 2021 में जो बाइडन ने धमकी दी थी अगर नवेलनी  रूस की हिरासत में मारे गए तो पुतिन को इसके नतीजे भुगतने होंगे।अब नवेलनी  मारे जा चुके हैं और दुनिया सिर्फ शोक व्यक्त कर रही है। पुतिन की जुबानी आलोचना कर रही है। पुतिन की निंदा करना, उनके अपराधों के लिए उन्हें कोसना, उनकी गिरफ़्तारी की मांग करना, उन्हें जवाबदेह ठहराना – यह सब तो ठीक है। मगर ये जबानी जमाखर्च खोखला है यदि उसके अनुरूप कोई कार्यवाहीं नहीं होती। यूक्रेन पर हमले के बाद रूस पर जो प्रतिबन्ध पश्चिम ने लगाए थे, उनसे न तो रूस की अर्थव्यस्था को कोई नुकसान हुआ है और ना ही पुतिन का बाल बांका हुआ। उलटे, जिन देशों का नेतृत्व पुतिन जैसों के हाथों में है, वे उन्हें और शक्तिशाली बनाने की जुगत में लगे हुए है।  अगले महीने रूस में होने वाले चुनाव में पुतिन निर्विरोध जीत जाएंगे। राष्ट्रपति का चुनाव बिना नवेलनी  के होगा और पुतिन अकेले उम्मीदवार होंगे। वे एक बार फिर अपने देश के आका बनेंगे।

बावजूद इसके सत्य यह भी है कि कुछ भी हमेशा नहीं रहता। रूस लौटने के तीन साल बाद नवेलनी  ने लिखा था: “पुतिन का राज हमेशा नहीं रहेगा। एक दिन वे पाएंगे कि उनके दिन लद गए है।” पुतिन एक दिन गायब हो जाएंगे और उन्हें कोई याद नहीं करेगा। मगर नवेलनी  हमेशा याद रहेंगे। वे एक ऐसे आम इंसान के रूप में याद किये जाएंगे जो दीये की तरह तूफ़ान से टकराया। उन्होंने केवल पुतिन से मुकाबला ही नहीं किया बल्कि दुनिया को दिखाया कि एक अकेला आदमी भी मगरूर तानाशाहों से लड़ सकता है। यह दुखद और दुर्भाग्यपूर्ण है कि पुतिन का पतन देखने के लिए वे नहीं रहेंगे। मगर यह तय है कि आखिर में जीत उनकी की होगी। (कॉपी: अमरीश हरदेनिया)

By श्रुति व्यास

संवाददाता/स्तंभकार/ संपादक नया इंडिया में संवाददता और स्तंभकार। प्रबंध संपादक- www.nayaindia.com राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय राजनीति के समसामयिक विषयों पर रिपोर्टिंग और कॉलम लेखन। स्कॉटलेंड की सेंट एंड्रियूज विश्वविधालय में इंटरनेशनल रिलेशन व मेनेजमेंट के अध्ययन के साथ बीबीसी, दिल्ली आदि में वर्क अनुभव ले पत्रकारिता और भारत की राजनीति की राजनीति में दिलचस्पी से समसामयिक विषयों पर लिखना शुरू किया। लोकसभा तथा विधानसभा चुनावों की ग्राउंड रिपोर्टिंग, यूट्यूब तथा सोशल मीडिया के साथ अंग्रेजी वेबसाइट दिप्रिंट, रिडिफ आदि में लेखन योगदान। लिखने का पसंदीदा विषय लोकसभा-विधानसभा चुनावों को कवर करते हुए लोगों के मूड़, उनमें चरचे-चरखे और जमीनी हकीकत को समझना-बूझना।

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