nayaindia Bangladesh election तयशुदा जीत वाला बांग्लादेशी चुनाव!

तयशुदा जीत वाला बांग्लादेशी चुनाव!

सन्2024 चुनावों का वर्ष है।और साल का पहला चुनाव बांग्लादेश में है। पर इसमें नतीजा क्या होगा, यह सभी को पहले से ही मालूम है। रविवार को मतदान हुआ, और यह गारंटीशुदा है कि मौजूदा प्रधानमंत्री शेख हसीना की जीत निश्चित है। वे सन् 2009 से सत्ता में हैं और इस चुनाव से उनका पांचवा कार्यकाल शुरू होगा।

जाहिर है शेख हसीना ने पहले से सुनिश्चित किया है कि जीत केवल और केवल उनकी हो। चुनावों का बहिष्कार कर रही बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) के ज्यादातर नेता जेल में कैद हैं, पत्रकार चुप्पी साधे रहने के लिए बाध्य हैं। और तमाम एनजीओ की गतिविधियों पर पाबंदियां हैं। ऐसे में हसीना की पार्टी का कोई प्रभावी प्रतिद्वंदी न तो मैदान में है और ना ही नैरेटिव में।

बीएनपी ने इन चुनावों को एक ढकोसला बताया है जबकि शेख हसीना ने वोट डालने के बाद जनता से मतदान में भाग लेकर लोकतंत्र के प्रति अपनी प्रतिबद्धता दर्शाने का अनुरोध किया। बीएनपी को एक आतंकी संगठन बताते हुए उन्होंने दावा किया कि वे देश में लोकतंत्र कायम रखने का भरसक प्रयास कर रही हैं। एएफपी द्वारा दी गई खबर के अनुसार राजधानी ढाका के एक मतदान केन्द्र में शुरू के 30 मिनटों में केवल तीन लोगों ने वोट डाले। कई लोग अंतर्राष्ट्रीय मीडिया के प्रतिनिधियों से यह कहते सुने गए कि उन्हें धमकी दी गई है कि यदि उन्होंने सत्ताधारी अवामी लीग के पक्ष में मतदान नहीं किया तो सरकारी कल्याण योजनाओं का लाभ हासिल करने के लिए जरूरी लाभार्थी कार्ड उनसे छीन लिए जाएंगे।

बांग्लादेश में लोकतंत्र की जड़ें गहरी नहीं हैं। वहां 2014 और 2019 में हुए पिछले दो चुनाव भी सत्ताधारी दल के पक्ष में झुके हुए थे।विपक्षी दल बीएनपी को लंबे समय से पंगु बना रखा है। इस चुनाव के बाद तो वह मृतप्रायः हो जाएगी। चुनाव में मुकाबला कड़ा है, यह धारणा बनाने के लिए आवामी लीग ने अपनी पार्टी के सदस्यों, उनके परिचितों और विपक्ष से दलबदल करने वालों को निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ने के लिए प्रोत्साहित किया। मगर जैसा अनुमान था, अवामी पार्टी की जीत सुनिश्चित है।

सवाल है पांचवी बार हुए इस ढकोसले में बांग्लादेश और उसके लोकतंत्र के लिए क्या निहितार्थ हैं?

क्या बांग्लादेश में लोकतंत्र नष्ट हो चुका है? इतने लंबे समय तक सत्ता में काबिज रहने से शेख हसीना न केवल दुनिया की सबसे अधिक अवधि तक शासन करने वाली महिला प्रधानमंत्री बन गईं हैं, वरन् उन पर बांग्लादेश में लोकतंत्र को समाप्त करने का भी तमंगा लग गया है। उन्होंने प्रेस को डरा दिया है और पुलिस, अदालत और न्यायपालिका को काबू में कर लिया है।यों उन्होंने अपने पिता की विरासत के इर्दगिर्द अपनी छवि गढ़ी है, जिनकी 1975 में हुए तख्तापलट में हत्या कर दी गई थी। अब राजधानी ढाका के हर हिस्से में उनका चेहरा नजर आता है। उन्होंने बीएनपी की नेता खालिदा जिया को आभाहीन बना दिया है। वे 2018 से अपने घर पर नजरबंद हैं। उनकी पार्टी के ज्यादातर नेताओं को या तो जेल में कैद कर दिया गया है, या उनकी हत्या कर दी गई है या उन्हें देश छोड़ने पर बाध्य कर दिया गया है। इसी का नतीजा है कि इस चुनाव में बीएनपी एकदम निष्क्रिय है।

बावजूद इस सबके शेख हसीना बांग्लादेश की सबसे लोकप्रिय और पसंदीदा नेता हैं। एक अमरीकी जनमत सर्वेक्षणकर्ता संस्था इंटरनेशनल रिपब्लिकन इंस्टीट्यूट द्वारा पिछले वर्ष किए गए सर्वेक्षण के अनुसार हसीना की एप्रूवल रेटिंग 70 प्रतिशत थी। जनता को शेख हसीना की सरकार द्वारा किए गए विकास के बदले लोकतंत्र का कमजोर होना मंजूर है। करीब 17 करोड़ जनसंख्या वाले बांग्लादेश का प्रदर्शन विकास के कई पैमानों पर भारत से बेहतर रहा है, और जिस पाकिस्तान का वह 1971 तक हिस्सा था, उसकी तुलना में तो विस्मयकारी है। वहां साक्षरता और रोजगार की दर भारत से अधिक है। सन् 2016 से वहां आर्थिक विकास की दर 7 प्रतिशत से अधिक थी, जिससे बांग्लादेश दुनिया की सबसे तेजी से विकसित होती अर्थव्यवस्था है और वहां लोगों के जीवनस्तर में दक्षिण एशिया के सभी अन्य देशों की तुलना में अधिक सुधार हुआ है। हसीना ने कुशलतापूर्वक और चतुराई से अपने शक्तिशाली पड़ोसियों भारत और चीन से, और अमरीका से भी संबंध निभाए हैं, जिसकी रूचि लंबे समय से वहां स्थिरता बनवाए रखने की रही है। वे अपने देश में इस्लामिक उग्रवाद को भी नियंत्रण में रखने में सफल हैं।

और यद्यपि लोकतंत्र से सिकुड़ने से लोकतंत्र समर्थक चिंतित हैं, किंतु जनता का बहुमत शेख हसीना से संतुष्ट है। भारत ने चुनाव को बांग्लादेश का “आंतरिक मामला” बताया है। अमेरिका का कहना है कि वह उन अधिकारियों को वीजा जारी नहीं करेगा जो उसकी नजरों में “लोकतंत्र को क्षति पहुंचाने” के दोषी होंगे। लेकिन भारत की तरह उसे भी शेख हसीना के चीन के नजदीक जाने का भय है, और इसलिए वह उनके द्वारा किए जा रहे सत्ता के दुरूपयोग की अनदेखी कर रहा है। यूरोपियन यूनियन ने सिर्फ इतना किया कि चुनाव प्रेक्षकों का पूरा दल भेजने से इंकार कर कर दिया।

दुनिया की नजरों में बांग्लादेश में लोकतंत्र ख़त्म हो चुका है और दुनिया उसकी मूकदर्शक है। दुनिया ने इस स्थिति को स्वीकार कर लिया है। यह चुनाव लोकतंत्र को और गहरा गाड़ देगा। आखिरकार पिछले वित्तीय वर्ष में वहां आर्थिक विकास की दर 6 प्रतिशत रही है जो अन्य देशों की तुलना में बहुत बेहतर है।13 दिसंबर को आईएमएफ ने अर्थव्यवस्था को उबारने की योजना के प्रति सरकार की प्रतिबद्धता की प्रशंसा की और कहा कि वह ‘‘मोटे तौर पर पटरी पर है”।

जाहिर है दो भीषण युद्धों से जूझ रही दुनिया बांग्लादेश की अनदेखी चाहती है। मुझे लगता है युद्धों के इस दौर में किसी भी देश में स्थिरता को वहां लोकतंत्र बने रहने से अधिक महत्वपूर्ण माना जा रहा है। इसलिए दुनिया शेख हसीना की इस अलोकतांत्रिक जीत को भी खुशी से स्वीकार करेगी। (कॉपी: अमरीश हरदेनिया)

 

By श्रुति व्यास

संवाददाता/स्तंभकार/ संपादक नया इंडिया में संवाददता और स्तंभकार। प्रबंध संपादक- www.nayaindia.com राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय राजनीति के समसामयिक विषयों पर रिपोर्टिंग और कॉलम लेखन। स्कॉटलेंड की सेंट एंड्रियूज विश्वविधालय में इंटरनेशनल रिलेशन व मेनेजमेंट के अध्ययन के साथ बीबीसी, दिल्ली आदि में वर्क अनुभव ले पत्रकारिता और भारत की राजनीति की राजनीति में दिलचस्पी से समसामयिक विषयों पर लिखना शुरू किया। लोकसभा तथा विधानसभा चुनावों की ग्राउंड रिपोर्टिंग, यूट्यूब तथा सोशल मीडिया के साथ अंग्रेजी वेबसाइट दिप्रिंट, रिडिफ आदि में लेखन योगदान। लिखने का पसंदीदा विषय लोकसभा-विधानसभा चुनावों को कवर करते हुए लोगों के मूड़, उनमें चरचे-चरखे और जमीनी हकीकत को समझना-बूझना।

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

और पढ़ें