nayaindia G-20 Declaration घोषणापत्र मंजूर, अमेरिका से बेडा पार!

घोषणापत्र मंजूर, अमेरिका से बेडा पार!

PM’s remarks at G20 Summit on ‘One Family’ at Bharat Mandapam, in Pragati Maidan, New Delhi on September 09, 2023.

करीब 3.30 बजे टीवी स्क्रीनों पर अचानक प्रधानमंत्री मोदी प्रकट हुए। वे उत्साह से लबरेज थे। उन्होंने कहा- नई दिल्ली घोषणापत्र को सभी देशों ने एकमत से स्वीकार कर लिया है। इस संक्षिप्त बयान के बाद उन्होंने वहां मौजूद ऑफिसियल मीडिया के पत्रकारों को बाहर जाने को कहा। स्वभाविक जो मीडिया सेंटर में हलचल हुई। तभी जयशंकर की प्रेस कान्फ्रेंस होने की अटकल सच सिद्ध हुईं। प्रेस कान्फ्रेंस में विदेश मंत्री के साथ वित्त मंत्री, और जी-20 शेरपा भी मौजूद थे। मीडिया को आधिकारिक रूप से बताया गया कि जी-20 सम्मेलन में सभी देशों के सहयोग से नई दिल्ली घोषणापत्र को सर्वसम्मति से स्वीकार कर लिया गया है। जयशंकर ने कहा कि इसका मतलब है कि अब भारत वैश्विक पटल पर अपना स्थान पा चुका है। अमिताभ कांत, जो बहुत रोमांचित और खुश नजर आ रहे थे, ने कहा कि इस घोषणापत्र को बिना एक भी फुटनोट के स्वीकार किया गया है।

यूक्रेन-रूस युद्ध के बारे में कांत ने कहा कि भूराजनैतिक स्थिति के सम्बन्ध में जो पैरा हैं, उनमें आज की दुनिया में प्लेनेट, पीपुल, पीस एवं प्रोस्पेरिटी का आव्हान है जिससे पता चलता है कि प्रधानमंत्री मोदी दुनिया के नेता बन चुके हैं!

सो कुल मिलाकर घोषणा पत्र का झंझट, सस्पेंश खत्म। जो आखिर में होना था वह पहले दिन ही हो गया। यूक्रेन के जिस मुद्दे और पैरे को ले कर जी-20 की सर्वमान्य घोषणापत्र परंपरा में रूकावट आती लगती थी वह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के इस जोशीले वाक्य से खत्म हुई कि इतिहास रचा गया। “फ्रेंड्स अभी अभी खुशखबरी मिली है कि हमारी टीम्स के हार्डवर्क और आप सभी के सहयोग से नई दिल्ली जी-20 लीडर्स डिक्लेरेशन पर सहमति बनी है। मेरा प्रस्ताव है कि इस लीडर्स डिक्लेरेशन को भी एडॉप्ट किया जाए।”

रूस-यूक्रेन युद्ध के मामले में किन शब्दों का प्रयोग किया जाए, इसको लेकर जो तनातनी या असहमतियां थी वह गोलमोल पैरे से खत्म हुई। न रूस के यूक्रेन हमले का जिक्र हुआ और न बाली के वाक्य दोहराए गए। कुल मिलाकर मोदी के लिए जी20 सफल रहा है। न तो कोई बाधाएं आईं, न उनसे कोई प्रश्न पूछे गए और ना ही कोई आलोचना हुई। उन्होंने वैश्विक मीडिया को किनारे रखकर भी सभी देशों का सहयोग हासिल कर लिया। ले देकर बाली की भाषा के बजाय संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव की ओर ध्यान दिला प्रतिबंधों में ढील देने की रूस की मांग के मद्देनजर रूस और यूक्रेन से अनाज, खाद्य सामग्री और खाद की फौरी और बेरोकटोक आपूर्ति संभव बनाने की अपील हुई है।

जाहिर है अमेरिका और पश्चिमी देशों ने भारत की अध्यक्षता के खातिर अपने रूख को ढीला रखा।

बहरहाल, आज दिन की शुरूआत जल्दी हो गई। जहां दिल्ली छुट्टी पर थी वहीं मीडियाकर्मियों को सूरज की पहली किरण के साथ उस जगह पहुंचना था जहां से बसें उन्हें प्रगति मैदान ले जाने वालीं थीं। सुबह 8.30 बजे तक प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और मीडिया अपने-अपने निर्धारित स्थानों पर पहुंच चुके थे। प्रधानमंत्री भारत मंडपम में और मीडिया, अंतर्राष्ट्रीय मीडिया सेंटर में चारों ओर लगाई गई विशाल स्क्रीनों के सामने। इस डायरी के साथ प्रकाशित फोटो से आपको यह अनुमान लग जाएगा कि भारत और दुनिया के फोटो एवं टीवी पत्रकार इस प्रतिष्ठित और विशाल जी-20 सम्मेलन का कवरेज किस तरह कर रहे हैं। जहां सभी कैमरे बाइडन और मोदी की गलबहियों की बेसब्री से प्रतीक्षा कर रहे थे वहीं मैं उन गणमान्य लोगों की चाल-ढाल देख रही थी जो लाल कालीन पर चलकर जा रहे थे।

कनाडा के प्रधानमंत्री ट्रूडो की चाल में जिंदादिली थी तो ब्रिटिश प्रधानमंत्री ऋषि सुनक की मोहक मुस्कान और नमस्ते मुझे बहुत अच्छी लगी। जर्मन चासंलर ओलाफ शुल्ट्ज, एक आंख पर काली पट्टी लगी होने के कारण समुद्री लुटेरे नजर आ रहे थे। तुर्की के राष्ट्रपति अर्दोआन का चेहरा तो कड़क था लेकिन चाल कमजोर। रूसी विदेशमंत्री सर्गेई लावरोव सम्मेलन की आभा में इतने खो गए कि गिरते-गिरते बचे। लेकिन जिसने सबका ध्यान सबसे ज्यादा खींचा वे थीं इटली की प्रधानमंत्री ज्योर्जा मेलोनी जो अपने नीले पेंट-सूट में शानदार लग रहीं थीं। वे ग्लैमरस तो थी हीं उनके चेहरे पर ऐसे व्यक्ति के भाव थे जिसे यह पता रहता है कि उसके हुक्म का पालन तो होगा ही। सबसे जानदार एंट्री थी 81 साल के अमरीकी राष्ट्रपति जो बाइडन की। वे अपने ट्रेडमार्क रे बेन पहने हुए बीस्ट से उतरे। इस उम्र में भी और चलने में थोड़ी मुश्किल होने के बाद भी उनके रूआब में कोई कमी नहीं थी। अमरीकी राष्ट्रपति ही नहीं बल्कि ज्यादातर विश्व नेता और अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओे के प्रमुख बूढे़ हो चले हैं और यह उनकी चाल और डील-डौल दोनों में दिखता है।

ग्यारह बजते-बजते सभी नेता गोलमेज के इर्दगिर्द बैठ चुके थे। मीडियाकर्मी काफी पीकर रिचार्ज हो रहे थे और जो कुछ उन्होंने विशाल स्क्रीनों पर देखा उसका विवरण अपने-अपने आफिसों को भेज रहे थे। दिलचस्प यह था कि टीवी पत्रकार, टीवी स्क्रीन के सामने खड़े होकर लाइव रिपोर्टिंग कर रहे थे! 11 बजते न बजते जी-20 वह पहला अंतर्राष्ट्रीय आयोजन बन गया जिसमें इंडिया, भारत नाम से भाग ले रहा है। टीवी रिपोर्टर ट्वीट पर ट्वीट कर रहे थे और जोर-जोर से अपने-अपने कैमरों के आगे चिल्ला रहे थे कि “भारत का प्रधानमंत्री अब आधिकारिक शब्दावली हो गई है”। मतलब इंडिया के भारत बनने की खबर अफ्रीकी यूनियन के जी-20 का नवीनतम स्थायी सदस्य बनने से अधिक महत्वपूर्ण बन गई। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अंतर्राष्ट्रीय और भारतीय मीडिया के प्रति जबरदस्त ‘सम्मान’ व्यक्त किया। अपने उद्घाटन भाषण के अंत में उन्होंने आधिकारिक मीडिया कर्मियों को हॉल से बाहर जाने को कहा, परंतु उसमें ‘थेंक्यू’ का पुछल्ला जोड़कर।

एक बजते-बजते मीडिया सेंटर में सन्नाटा छा चुका था। आखिरकार सभी लोग सुबह पांच बजे से काम में लगे हुए थे। यह बात अलग है कि उनके पास कोई काम नहीं था। जहां भारत मंडपम के बंद दरवाजों के पीछे सम्मेलन की कार्यवाही चल रही थी और शायद यूक्रेन पर चर्चा हो रही थी वहीं मीडिया मंडपम में अफवाहों का बाज़ार गर्म था। “ऋषि सुनक की पत्रकार वार्ता होगी”, “आस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री की पत्रकार वार्ता होगी” “3 बजे एस. जयशंकर की पत्रकार वार्ता होगी” और ऐसी ही अन्य बातें। समाचार कम थे, जानकारियां तो बिल्कुल ही नहीं थीं और प्रतिनिधियों या महत्वपूर्ण व्यक्तियों से एक्सक्लूसिव बातचीत का तो कोई सवाल ही नहीं था। बेचारे पत्रकार अपने ही साथी पत्रकारों का इंटरव्यू ले रहे थे और उनकी ‘राय’ जान रहे थे कि बैठक में क्या होगा या क्या हो सकता है!

इस बीच खाना भी चर्चा का सबब बना। और इसलिए नहीं कि वह बहुत शानदार था। बल्कि इसलिए क्योंकि आईटीसी मौर्या की केटरिंग के बावजूद वह खाना निहायत सादा और बेस्वाद था।

भारत एक से बढ़कर एक व्यंजनों का देश है परंतु पत्रकारों के हाथ तो केवल दाल, रोटी और चावल लगा। प्रधानमंत्री मोदी और उनकी सरकार ने यह दावा किया है कि पिछले एक साल में सभी 28 राज्यों और 8 केन्द्र शासित प्रदेशों के 60 शहरों में जी-20 से जुड़ी 220 बैठकें आयोजित की गईं। अपने एक हालिया इंटरव्यू में प्रधानमंत्री ने गर्वोक्ति की कि पिछले एक साल में 125 देशों के एक लाख प्रतिनिधियों ने भारत के जादू का अनुभव किया। परंतु इंटरनेशनल मीडिया सेंटर, जहां पूरी दुनिया से 4,000 मीडियाकर्मी जुटे हैं, इस अनुभव के सौंवे हिस्से का आनंद भी नहीं ले सके।

पहली बात तो यह है कि उन्हें शिखर वार्ता के आयोजन स्थल तक कोई पहुंच नहीं दी गई। दूसरे भारत क्या कह रहा है, वह भी उनको नहीं बताया जा रहा है। पहले दिन जो प्रेस कांफ्रेंस हुई उसमें चीन्ह-चीन्ह कर पत्रकारों को प्रश्न पूछने का मौका दिया गया। केवल पसंदीदा पत्रकारों और मीडिया चैनलों को अवसर मिला – कहीं ऐसा न हो कि कोई ऐसा प्रश्न पूछ ले जिसका उत्तर देना मुश्किल हो। तीसरा मुद्दा है खाना। विदेशी और देसी दोनों पत्रकार इस बात से नाराज दिखे कि केवल वेजिटेरियन खाना परोसा गया। चलो, यह भी धक जाता। पर बुफे के नाम पर सिर्फ छोले, पनीर और खीर थी और यह खीर भी खीर के नाम पर मजाक थी। मेरे लिए, और मैं झूठ नहीं बोलूंगी, पेरियर स्पार्कलिंग वाटर एकमात्र अच्छी चीज थी। इसकी बोतल खोलते ही निकलने वाली गैस की सनसनाहट ने मेरे मूड को कुछ बेहतर किया क्योंकि बाकी सब तो निहायत नीरस, उबाऊ और फीका था।

चार बज चुके हैं और अब पत्रकार काफी के एक के बाद एक कप पीकर यह उम्मीद कर रहे हैं कि शायद शाम तक उन्हें ऐसा कुछ मिल जाएगा जिसे वे खबर कह सकते हैं। पर माहौल को देखते तो हुए ऐसा नहीं लगता।

ऋषि सुनक और आस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री एंथनी अल्बनीज़ ने प्रेस कांफ्रेंसें संबोधित कीं परंतु केवल अपने देश के मीडिया के लिए। मगर हां, यह खबर है कि राष्ट्रपति बाइडन का एयरपोर्ट से उतर कर सीधे प्रधानमंत्री मोदी से मिलने उनके घर जाना अमेरिकी मीडिया के बुरे अनुभवों का कारण बना। अमेरिका के वे पत्रकार जो राष्ट्रपति के साथ हर विदेश यात्रा में एयरफोर्स वन में आते- जाते है और व्हाइटहाउस कवर करते है, उन्हे पीएमओ के घर के बाहर वैन में बैठे रहना पड़ा। रॉयटर्स ने रिपोर्ट किया है कि 8 सितंबर को नई दिल्ली पहुंचने के तुरंत बाद बाइडेन ने मोदी के साथ एक बंद कमरे में बैठक की। जब प्रधानमंत्री के आवास पर यह मुलाकात हुई, तब अमेरिकी प्रेस को दोनों नेताओं की नज़र से दूर एक वैन में कैद कर लिया गया था। अमेरिकी प्रेस की टीम की जिम्मेदारी प्रेस सेक्रेटरी कैरेन और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जेक सुलीवान को है और इनके लिए अमेरिकी पत्रकारों को जवाब देना मुश्किल हुआ। सुलीवान को मानना पड़ा कि मीडिया की एक्सेस ऐसे रोकना एक गंभीर मुद्दा हैं।  हम इसे बेहद गंभीरता से लेते हैं। मैं व्यक्तिगत रूप से इसे बेहद गंभीरता से लेता हूं। पर हम वह कर रहे हैं जो हम कर सकते हैं, लेकिन आखिर में हमें मेजबान के साथ और विशेष रूप से, उनके निजी आवास के प्रोटोकॉल में काम करना होगा।  (कॉपी: अमरीश हरदेनिया)

By श्रुति व्यास

संवाददाता/स्तंभकार/ संपादक नया इंडिया में संवाददता और स्तंभकार। प्रबंध संपादक- www.nayaindia.com राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय राजनीति के समसामयिक विषयों पर रिपोर्टिंग और कॉलम लेखन। स्कॉटलेंड की सेंट एंड्रियूज विश्वविधालय में इंटरनेशनल रिलेशन व मेनेजमेंट के अध्ययन के साथ बीबीसी, दिल्ली आदि में वर्क अनुभव ले पत्रकारिता और भारत की राजनीति की राजनीति में दिलचस्पी से समसामयिक विषयों पर लिखना शुरू किया। लोकसभा तथा विधानसभा चुनावों की ग्राउंड रिपोर्टिंग, यूट्यूब तथा सोशल मीडिया के साथ अंग्रेजी वेबसाइट दिप्रिंट, रिडिफ आदि में लेखन योगदान। लिखने का पसंदीदा विषय लोकसभा-विधानसभा चुनावों को कवर करते हुए लोगों के मूड़, उनमें चरचे-चरखे और जमीनी हकीकत को समझना-बूझना।

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

और पढ़ें