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इंडोनेशिया के चुनाव में लोकतंत्र को खतरा?

इंडोनेशिया के चुनाव में लोकतंत्र को खतरा?

चौदह फरवरी को दुनिया के तीसरे सबसे बड़े लोकतंत्र इंडोनेशिया में वोटिंग है। माना जा रहा है पूर्व जनरल प्रोबो सुबियांटो अगले राष्ट्रपति होंगे।और  उनका मानवाधिकारों के मामले में भयावह रिकार्ड है तो लोकतंत्र में उनकी आस्था को लेकर भी संदेह है। वे देशके दूसरे और सबसे लंबे कार्यकाल वाले राष्ट्रपति सुहार्तो के दामाद भी हैं। बावजूद इसके इंडोनेशिया को नई दिशा देने वाले मौजूदा राष्ट्रपति जोको विडोडो ने उन पर हाथ रखा है। उनके समर्थन से उनकी जीत तय मानी जा रही है?

तो क्या इंडोनेशिया में भी लोकतंत्र खतरें में है? जवाब सुबियांटो के विवादास्पद अतीत में है।वे सेना में दशकों साल प्रभावी थे। उस दौरान उन पर जनता पर ज़ुल्म करने के आरोप लगे। पूर्व में इंडोनेशिया के कब्ज़े वाले क्षेत्र पूर्वी तिमोर में सेना के विशेष बल के भी प्रमुख थे।तब आरोप लगा था1998 में उन्होंने 20 से अधिक लोकतंत्र समर्थक कार्यकर्ताओं का अपहरण करवाया। उनमें से13 अब भी लापता हैं। हालांकि वे हमेशा कहते आए हैं कि उन्होंने कुछ भी गलत नहीं किया है इन इल्जामों के सम्बन्ध में उन पर कोई कानूनी कार्यवाहीं भी नहीं हुई है। लेकिन एक समय इन आरोपों के चलते आस्ट्रेलिया और अमरीका ने उनके वीजा और एंट्री पर  पाबंदी लगाई थी।

प्रोबो सभी चुनावी सर्वेक्षणों में आगे हैं। सर्वेक्षणों के अनुसार 72 साल के प्रोबो, युवा मतदाताओं में भी लोकप्रिय है।और चुनाव आयोग के आंकड़ों के मुताबिक 17 से 40 साल के मतदाता कुल मतदाताओं में50 प्रतिशत से अधिक है।

प्रोबो ने अपने आप को रीब्रांड किया है। प्रोबो और उनकी टीम ने सोशल मीडिया का जम कर उपयोग किया है। अपने इंस्टाग्राम एकाउंट पर वे अपनी बिल्ली को चूमते और गले लगाते तथा अपने हाथ से लव हार्ट की इमेज बनाते दिखे हैं। उनके समर्थकों के जैकेट और जर्सी पर प्रोबो का कार्टून बना है जिसमें वे बहुत क्यूट दिखते है। सोशल मीडिया पर उन्हें ‘गीमोय’ कहा जाता है जिसका अर्थ है क्यूट। इतना ही नहीं वे चुनावी सभाओं में अपनी कमर मटकाते और हाथ नचाते दीखते हैं। ये वीडियो टिकटाक पर वायरल हैं।

इससे नौजवान पोजिटिव है और उनके अतीत की परवाह नहीं कर रहे है।  उनके लिए बेरोजगारी और नौकरी का मुद्दा मुख्य है और प्रोबो ने इसके ढ़ेरों वादे किए है। युवाओं को सुहार्तों के दामाद याकि राजनीति में वंशवाद से भी कोई दिक्कत नहीं है।

प्रोबो के सहयोगी के रूप में उपराष्ट्रपति का चुनाव लड़ रहे हैं जिब्रान राकाबूमिंग। वे मौजूदा राष्ट्रपति जोको विडोडो के बड़े लड़के हैं। हालांकि इनकी साझेदारी विवादों से घिरी रही है। संवैधानिक न्यायालय, जिसके प्रमुख उनके अंकल अनवर उस्मान हैं, द्वारा उम्मदवारों की आयु संबंधी पाबंदियों में अपवाद की अनुमति दी जाने के बाद ही जिब्रान उम्मीदवार बन सके हैं।

सो वंशवाद का मुद्दा चुनाव में बेमतलब है।  जोको के समर्थन से भी प्रोबो को फायदा हो रहा है। जोको राष्ट्रपति पद के अधिकतम निर्धारित कार्यकाल पूर्ण कर चुके हैं मगर फिर भी वे लोकप्रिय हैं। इससे प्रोबो की स्थिति मजबूत हुई है। प्रोबो जोको की नीतियां जारी रखने का वायदा कर रहे हैं, जिनमें बोर्नेओ में नई राजधानी नुशांतरा का निर्माण भी शामिल है। उन्होंने प्री-स्कूल से लेकक्र उच्चतर माध्यमिक तक के स्कूली बच्चों और गर्भवती महिलाओं को निःशुल्क मध्यान्ह भोजन और दूध बांटने का वायदा भी किया है। साथ ही दो वर्षों में अति-निर्धना को ख़त्म करने की कसम भी ली है।

प्रोबो का मुकाबला जकार्ता के पूर्व गवर्नर एनियस बासवेडेन और पूर्व प्रांतीय गवर्नर गंजार प्रोनोवो से है। एनियस भी सोशल मीडिया के जरिए चुनाव अभियान को पर्सनल टच दे रहे हैं। उनका इंस्टाग्राम एकाउंट उनकी बिल्लियों पर केन्द्रित है, जिन्हें ‘वे ‘पावससवेडेन फैमिली” कहा जाता है। जहां गंजार सत्ताधारी पार्टी से हैं वहीं एनियस विपक्षी उम्मीदवार के रूप में दांवेदार हैं।55 वर्षीय गंजार सत्ताधारी डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ स्ट्रगल (पीडीआई-पी) के उम्मीदवार हैं और रोजगार के लिए जोको सरकार के बनाए विवादास्पद कानून पर पुनर्विचार करने का वायदा किया है।

कुछ विश्लेषकों का मानना है कि मुकाबला त्रिकोणीय है क्योंकि बहुत से मतदाताओं ने यह निर्णय नहीं लिया है कि वे किसे वोट देंगे, लेकिन प्रोबो अन्य उम्मीदवारों की तुलना में बेहतर स्थिति में हैं। इंडोनेशिया में चुनावों का फैसला उम्मीदवारों के व्यक्तित्व के आधार पर होता है जैसा कि 2014 में हुआ था। तब जोको को लोगों ने एक ताजी हवा के झोंके जैसा माना था। उम्मीद थी वे देश को नयी ज़िन्दगी देंगे। आज नौ साल बाद वे अर्थव्यवस्था को बेहतर करने में तो सफल हुए हैं लेकिन लोकतंत्र को मजबूत करने में असफल रहे हैं।तभी यह आंशका दमदार है कि 14 फरवरी को इंडोनेशिया में सत्ता लोकतंत्र को और कमज़ोर बनाने वाले पूर्व सेनाधिकारी को हाथों में जाएगी। (कॉपी: अमरीश हरदेनिया)

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Published by श्रुति व्यास

संवाददाता/स्तंभकार/ संपादक नया इंडिया में संवाददता और स्तंभकार। प्रबंध संपादक- www.nayaindia.com राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय राजनीति के समसामयिक विषयों पर रिपोर्टिंग और कॉलम लेखन। स्कॉटलेंड की सेंट एंड्रियूज विश्वविधालय में इंटरनेशनल रिलेशन व मेनेजमेंट के अध्ययन के साथ बीबीसी, दिल्ली आदि में वर्क अनुभव ले पत्रकारिता और भारत की राजनीति की राजनीति में दिलचस्पी से समसामयिक विषयों पर लिखना शुरू किया। लोकसभा तथा विधानसभा चुनावों की ग्राउंड रिपोर्टिंग, यूट्यूब तथा सोशल मीडिया के साथ अंग्रेजी वेबसाइट दिप्रिंट, रिडिफ आदि में लेखन योगदान। लिखने का पसंदीदा विषय लोकसभा-विधानसभा चुनावों को कवर करते हुए लोगों के मूड़, उनमें चरचे-चरखे और जमीनी हकीकत को समझना-बूझना।

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