nayaindia Javier Milei खरी बात करने वाले राष्ट्रपति!

खरी बात करने वाले राष्ट्रपति!

अर्जेन्टीना के नए राष्ट्रपति जेवियर मिलेई अपनी जनता से खरी-खरी बातें करते हैं।  उन्होंने अपने नेतृत्व में देश को दशकों की ‘‘अवनति और गिरावट” की स्थिति से बाहर लाने का संकल्प किया है, लेकिन उन्होंने कोई लुभावने वायदे या आशाएं नहीं जगाई हैं। पदग्रहण के दिन उन्होंने वहां मौजूद लोगों से कहा ‘‘मितव्ययिता का कोई विकल्प नहीं है”।इसके तुरंत बाद कामकाज शुरू हो गया।12 दिसंबर को नए वित्तमंत्री लुईस केपिटो ने कई आमूल आर्थिक सुधारों की घोषणा की। उन्होंने पेसो के 50 प्रतिशत से अधिक अवमूल्यन की घोषणा की और बिजली और परिवहन पर दिए जा रहे अनुदान में कमी करने की बात कही। सरकारी मंत्रालयों की संख्या 18 से घटाकर 9 करने, सार्वजनिक कार्यों को स्थगित करने और अर्जेन्टीना के 23 प्रांतों को दिए जा रहे संघीय अनुदान में कमी करने का अलग ऐलान किया। सरकार का अनुमान है कि इन कदमों से जीडीपी के लगभग 3 प्रतिशत के बराबर बचत होगी।

मिलेई, जो पहले एक सक्रिय टीवी सितारे थे और जिन्हें एल लोको या मेडमेन के नाम से जाना जाता है, ने अपने चौंकाने वाले निर्वाचन की तुलना सोवियत संघ के पतन की शुरूआत से की ‘‘जैसे बर्लिन की दीवार का पतन दुनिया के एक त्रासदीपूर्ण दौर समाप्त होने का संकेत था, वैसे ही हमारे यहां के चुनाव देश के इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ को दर्शाते हैं”।उन्होंने कहा कि वे ‘‘एड़ी-चोटी का जोर” लगाकर देश को ‘‘शांति और समृद्धि के एक युग” में  ले जाएंगे।

मिलेई की जीत और उनके सख्त कदमों का जितना तिरस्कार हुआ उससे कहीं ज्यादा वाहवाही हुई, क्योंकि मिलेई का कोई विकल्प नहीं है। मिलेई एक लोकप्रिय नेता हैं और उनकी तुलना अन्य दक्षिणपंथी लोकप्रिय नेताओें जैसे डोनाल्ड ट्रंप और जेयर बोसोनेरो से की जाती है। कुछ अन्य लोग इस अनापेक्षित  कार्य करने वाले अर्थशास्त्री बोरिस जानसन और हत्यारी गुड़िया चकी का मिश्रण बताते हैं। वे स्वयं को ‘‘अराजक पूंजीवादी” कहते हैं जिसने इस धारणा के जरिए मतदाताओं से भावनात्मक संबंध जोड़ लिए कि विशेषाधिकार प्राप्त ‘जाति’ के राजनीतिज्ञ साधारण लोगों के धन की चोरी करते हैं। यह धारणा सारी दुनिया के बहुत से देशों के मतदाताओं के विचारों में प्रतिध्वनित होती है।

मिलेई अर्जेन्टीना को ‘‘अवनति और गिरावट” से बाहर लाने के लिए जो कदम उठाना चाहते हैं उनमें हैं समाज कल्याण संबंधी खर्चों में भारी कमी लाना, अर्जेन्टीना के केन्द्रीय बैंक का अस्तित्व समाप्त करना, अर्थव्यवस्था का डालरीकरण और बड़ी कटौतियां करने के अपने इरादे के प्रतीक के रूप में वे अपने हाथों में बड़ी आरी पकड़ चुके हैं। उन्हें विश्वास है कि इनसे अर्थव्यवस्था में स्थिरता आएगी। बेलगाम महंगाई काबू में आ सकेगी। वे अर्जेन्टीना के 1976-83 के तानाशाही शासन के अपराधों को भी कम करके आंकने, मानव अंगों के व्यापार को वैधानिक दर्जा देने और अर्जेन्टीना के दो सबसे बड़े व्यापारिक साझीदारों चीन और ब्राजील से संबध घटाने के लिए भी संकल्पित हैं।

लेकिन मिलेई के लिए यह सब करना आसान नहीं होगा। मुश्किल आर्थिक सुधारों को पारित कराने के लिए उन्हें कांग्रेस की स्वीकृति प्राप्त करनी होगी। उनके गठबंधन के पास वर्तमान में सीनेट की केवल 10 प्रतिशत और निचले सदन की 15 प्रतिशत  सीटें हैं। उन्हें मध्य-दक्षिणपंथी गठबंधन टुगेदर फॉर चेंज और मध्यमार्गी पेरोनिस्टस से मोलभाव करना  पड़ेगा। अनुदानों को खत्म करने और पेसो के अवमूल्यन से शुरू में महंगाई बढे़गी। किफायत करने के कदमों के नतीजे में विरोध प्रदर्शन हो सकते हैं।  लेकिन अर्जेन्टीना की जनता ने बदलाव के पक्ष में मत दिया है और उनका मानना था देश टाइटेनिक की तरह डूब रहा है। इसलिए कई लोग त्याग करने और तकलीफें झेलने को तैयार हैं ताकि सुरंग के अंत में रोशनी नजर आ सके। अर्जेनटीना की जनता बदलाव चाहती है और कड़े कदम उठाने के बावजूद मिलेई को बदलाव के वास्तुकार के रूप में देखा जा रहा है। इसमें कोई शक नहीं कि अर्जेनटीना एक महत्वपूर्ण मोड़ पर खड़ा है जो उसे प्रगति की ओर ले जा सकता है या और अधिक उथल पुथल की ओर भी। (कॉपी: अमरीश हरदेनिया)

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By श्रुति व्यास

संवाददाता/स्तंभकार/ संपादक नया इंडिया में संवाददता और स्तंभकार। प्रबंध संपादक- www.nayaindia.com राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय राजनीति के समसामयिक विषयों पर रिपोर्टिंग और कॉलम लेखन। स्कॉटलेंड की सेंट एंड्रियूज विश्वविधालय में इंटरनेशनल रिलेशन व मेनेजमेंट के अध्ययन के साथ बीबीसी, दिल्ली आदि में वर्क अनुभव ले पत्रकारिता और भारत की राजनीति की राजनीति में दिलचस्पी से समसामयिक विषयों पर लिखना शुरू किया। लोकसभा तथा विधानसभा चुनावों की ग्राउंड रिपोर्टिंग, यूट्यूब तथा सोशल मीडिया के साथ अंग्रेजी वेबसाइट दिप्रिंट, रिडिफ आदि में लेखन योगदान। लिखने का पसंदीदा विषय लोकसभा-विधानसभा चुनावों को कवर करते हुए लोगों के मूड़, उनमें चरचे-चरखे और जमीनी हकीकत को समझना-बूझना।

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