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अकेले पड़े सीसी तीसरी बार भी जीतेंगे!

मिस्र में रविवार को हुआ मतदान राष्ट्रपति अब्देल फतेह अल-सीसी का भविष्य तय करेंगे। राष्ट्रपति के रूप में फतेह अल-सीसी तीसरा कार्यकाल हासिल करने की उम्मीद में हैं। लेकिन सब कुछ इतना आसान भी नहीं है। एक समय था जब उन्हें जनता देश के उद्धारक के रूप में देखती थी। मगर यह दबंग नेता अब जनता की उम्मीदों का केन्द्र और उसकी पसंद नहीं है। सीसी के प्रति आक्रोश और असंतोष अर्थव्यवस्था को लेकर है। अर्थव्यवस्था में लगातार गिरावट आ रही है। विदेशी शक्तियां टेका लगाकर किसी तरह अर्थव्यवस्था को संभलवाने की कोशिश कर रही हैं क्योंकि उन्हें डर है कि मिस्र के आर्थिक संकट के कारण क्षेत्र में अस्थिरता की स्थिति बन सकती है।

सन्2011 के बाद पहली बार इतनी विकट स्थिति है।यदि हालात बेकाबू हुए तो यूरोप एवं अन्य क्षेत्रों में प्रवासियों की नई लहर उत्पन्न हो सकती है। ताजे आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार अक्टूबर में मिस्र में मुद्रास्फीति दर 38.5 प्रतिशत थी, जो उसके पिछले माह के रिकार्ड स्तर 40.3 प्रतिशत से कुछ ही कम है। जनसंख्या की दृष्टि से सबसे बड़े इस अरब देश में मुद्रास्फीति इतने उच्च स्तर पर पहले कभी नहीं रही। और हम सब जानते हैं कि आम जनता को जितनी महंगाई का सामना करना पड़ता है वह सरकारी आंकड़ों से कहीं अधिक होती है। पिछले नौ महीनों में मिस्री पौंड का अमरीकी डालर की तुलना में 50 प्रतिशत से भी अधिक अवमूल्यन हुआ है। चूंकि मिस्र की अर्थव्यवस्था बहुत हद तक आयात पर निर्भर है, इसलिए बुनियादी जरूरत की चीजों की कीमतें बहुत से परिवारों की पहुंच के बाहर हो गई हैं।देश में विदेशी मुद्रा का कालाबाजार फल-फूल रहा है।

लेकिन बढ़ते असंतोष और बेकाबू अर्थव्यवस्था के बावजूद सीसी की जीत अवश्यंभावी है। सन् 2013 में सैन्य तख्तापलट के जरिए सत्ता हासिल करने वाले सीसी ने पिछले दो राष्ट्रपति चुनाव 97 प्रतिशत वोटों से जीते हैं। पिछले चुनाव में उनका मुकाबला जिस उम्मीदवार से था वह उनके शासन का घोर समर्थक था! इस बार भी  एकमात्र ऐसा उम्मीदवार जो उनका थोडा-बहुत विरोध कर सकता था, उसके चुनाव लड़ने पर रोक लगा दी गई है।

सीसी ने पिछले 10 वर्षों में ऐसे हर व्यक्ति और हर संस्था को समाज से खदेड़ा है जो जरा सा भी उनके खिलाफ हो। उन्होने राजनैतिक विरोधियों, सामाजिक कार्यकर्ताओं, पत्रकारों और साधारण लोगों को जेलों में डाल कर एक विशाल पुलिसिया राज कायम कर दिया है। वरिष्ठ प्रकाशक और सरकार के आलोचक हिशम कसीब जेल के सींखचों के पीछे हैं। सन् 2019 में हुए एक संवैधानिक जनमत संग्रह के माध्यम से मिस्र में राष्ट्रपति का कार्यकाल बढ़ाकर छह वर्ष कर दिया गया। सीसी बहुत शक्तिशाली हैं। सत्ता पर उनका और उनके नजदीकी लोगों का पूरा कब्जा है। वे लंबे समय से यह दावा करते आए हैं कि विपक्ष के सत्ता में आने पर देश पतन की ओर जाएगा। उन्होंने कई विशाल और शानदार परियोजनाओं की घोषणा की है जिनमें स्वेज नहर का विस्तार और काहिरा के बाहरी इलाके में एक नई चमक-दमक भरी राजधानी की स्थापना शामिल है, जिनसे देश में समृद्धि आएगी। लेकिन सच्चाई एकदम अलग है। और सरकार के स्वयं के अनुमानों के अनुसार लगभग एक-तिहाई लोग गरीबी का जीवन जीने को मजबूर हैं।

इसके अलावा भू-राजनैतिक दृष्टि से भी मिस्र का पतन हुआ है। एक समय वह मध्यपूर्व का सबसे शक्तिशाली देश था । अब विश्लेषक मानते हैं कि उसका अपने पड़ोसी देशों और अपने इलाके में प्रभाव कम हुआ है। लीबिया और सूडान, जो मिस्र के पड़ोसी हैं, में उसकी कोई भूमिका नहीं बची है। इन देशों में क्षेत्रीय ताकतों ने पैर जमा लिए हैं। गाजा के घटनक्रम ने मिस्र के लिए चुनौतियाँ और बढ़ा दी हैं।मिस्र ने बंधक बनाये गए लोगों को छुड़ाने के लिए बातचीत में जो भूमिका अदा की उससे दुनिया में उसके सम्मान में कुछ वृद्धि हुई मगर गाजा में हालात बेहतर करने में उसकी असफलता से देश के भीतर सीसी के रुआब में कमी आई है। युद्ध तेज, और तेज होता जा रहा है और गाजा के लोगों पर बमबारी के फोटो और वीडियो लोगों को और गुस्सा दिला रहे हैं। मिस्र के लोग दुखी और नाराज़ हैं कि सीसी इतने कमज़ोर हैं कि वे इजराइल को इस बात के लिए भी राजी नहीं कर पा रहे हैं कि वो गाजा की सीमाओं को खोल कर राहत सामग्री आने दे।

मगर इस सबका सीसी के सेहत पर कोई असर नहीं पड़ा है। उन्हें उनके देश की जनता का समर्थन हासिल नहीं है। मगर विपक्ष भी तो नहीं है! इसलिए सीसी तीसरी बार भी जीत जाएंगे। मगर वे अकेले तो पड़ गए हैं। वे लोगों को यह भरोसा दिलाने का प्रयास कर रहे हैं कि अच्छे दिन आने वाले हैं। मगर लोगों को नहीं लगता कि उन्हें फिर से चुनने से देश में कोई बदलाव आएगा। दबंग में अब दबंगई नहीं बची है। न उसे लोगों का समर्थन हासिल है और ना ही लोगों को उससे कोई उम्मीद है। मगर जीतेगा तो वही। (कॉपी: अमरीश हरदेनिया)

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By श्रुति व्यास

संवाददाता/स्तंभकार/ संपादक नया इंडिया में संवाददता और स्तंभकार। प्रबंध संपादक- www.nayaindia.com राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय राजनीति के समसामयिक विषयों पर रिपोर्टिंग और कॉलम लेखन। स्कॉटलेंड की सेंट एंड्रियूज विश्वविधालय में इंटरनेशनल रिलेशन व मेनेजमेंट के अध्ययन के साथ बीबीसी, दिल्ली आदि में वर्क अनुभव ले पत्रकारिता और भारत की राजनीति की राजनीति में दिलचस्पी से समसामयिक विषयों पर लिखना शुरू किया। लोकसभा तथा विधानसभा चुनावों की ग्राउंड रिपोर्टिंग, यूट्यूब तथा सोशल मीडिया के साथ अंग्रेजी वेबसाइट दिप्रिंट, रिडिफ आदि में लेखन योगदान। लिखने का पसंदीदा विषय लोकसभा-विधानसभा चुनावों को कवर करते हुए लोगों के मूड़, उनमें चरचे-चरखे और जमीनी हकीकत को समझना-बूझना।

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