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बातूनी भारत को नई मशीन!

अपन तो कहेंगे
अपन तो कहेंगे
बातूनी भारत को नई मशीन!
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नमस्कार, मैं हरिशंकर व्यास, सोशल मीडिया ने पहले ही भारत में लोगों को भाषा से दूर, बुद्धिहीन और बातूनी बना दिया है और अब एप्पल का एक ऐसा नया एयरपॉड जो किसी भी भाषा का सेकेंड भर अनुवाद सुना देगा। यानी हिंदी भाषा का अब पूरी तरह बंटाधार तय है क्योंकि हमने तो पहले से ही हजार शब्दों की कौन कहे खुद को 280 शब्दों की सीमा में बांध रखा है और अब ये नयी तकनीक, जो दुनिया के तमाम देशों के लिए तो वरदान होगी लेकिन हम भारतीयों के लिए ये किसी आफत की तरह क्योंकि हमें तो मौलिकता से कोसो दूर बिना मेहनत और नकल से चीजें हथिया लेने की आदत पड़ चुकी है। इसलिए अपन तो कहेंगे कॉलम में इस बार मेरे विचार का शीर्षक है। बातूनी भारत को नई मशीन!

By हरिशंकर व्यास

मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक और पत्रकार। नया इंडिया समाचारपत्र के संस्थापक-संपादक। सन् 1976 से लगातार सक्रिय और बहुप्रयोगी संपादक। ‘जनसत्ता’ में संपादन-लेखन के वक्त 1983 में शुरू किया राजनैतिक खुलासे का ‘गपशप’ कॉलम ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ तक का सफर करते हुए अब चालीस वर्षों से अधिक का है। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम की प्रस्तुति। सप्ताह में पांच दिन नियमित प्रसारित। प्रोग्राम कोई नौ वर्ष चला! आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों की बारीकी-बेबाकी से पडताल व विश्लेषण में वह सिद्धहस्तता जो देश की अन्य भाषाओं के पत्रकारों सुधी अंग्रेजीदा संपादकों-विचारकों में भी लोकप्रिय और पठनीय। जैसे कि लेखक-संपादक अरूण शौरी की अंग्रेजी में हरिशंकर व्यास के लेखन पर जाहिर यह भावाव्यक्ति -

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