दिल्ली के मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल पूरी तरह से खामोश हो गए हैं। दिल्ली विधानसभा का शीतकालीन सत्र सिर्फ दो दिन का रखा गया था। वह समाप्त हो गया और केजरीवाल मंगलवार यानी 19 दिसंबर को हर साल की तरह 10 दिन की विपश्यना करने बेंगलुरू चले जाएंगे। इस बार विधानसभा के सत्र में केजरीवाल ने कोई भाषण नहीं दिया। सोचें, हर सत्र में और अगर सत्र नहीं हो तो विशेष सत्र बुला कर केजरीवाल भाषण देते थे। हर भाषण में वे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर हमला करते थे। सदन के अंदर चौथी पास राजा की कहानी सुनाते थे। लेकिन इस बार ऐस कुछ नहीं हुआ। यह सिर्फ सत्र की बात नहीं है। सत्र के बाहर भी केजरीवाल ने प्रधानमंत्री मोदी को लेकर कोई बयान नहीं दिया है।
एक दिलचस्प संयोग यह भी है कि केंद्रीय एजेंसी प्रवर्तन निदेशालय यानी ईडी ने दो नवंबर के बाद से फिर केजरीवाल को कोई नोटिस नहीं भेजा है। गौरतलब है कि शराब नीति घोटाले में ईडी ने केजरीवाल को दो नवंबर को हाजिर होने के लिए कहा था। लेकिन वे ईडी के सामने हाजिर नहीं हुए। इसकी बजाय वे मध्य प्रदेश प्रचार करने चले गए। उन्होंने एजेंसी को एक चिट्टी लिख कर पूछा कि उनको आरोपी के रूप में बुलाया जा रहा है या गवाह के रूप में? इसके बाद शांति छा गई। न एजेंसी ने उनको दूसरा समन भेजा और न उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी के खिलाफ कोई बयान दिया। इसके उलट झारखंड में ईडी ने मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को छह नोटिस भेजे हैं। हालांकि वे एक बार भी ईडी के सामने हाजिर नहीं हुए।
दिल्ली के मुख्यमंत्री को ईडी के एक नोटिस के बाद आम आदमी पार्टी के विधायकों ने बैठक करके ऐलान कर दिया कि केजरीवाल को अगर गिरफ्तार किया जाता है तो वे इस्तीफा नहीं देंगे और तिहाड़ जेल से ही सरकार चलाएंगे। इसके बाद एक कथित जनमत संग्रह करा कर इस फैसले पर मुहर लगवाई गई। फिर सब कुछ ठंडे बस्ते में चला गया। न नया समन आया और न गिरफ्तारी की बात हुई। सवाल है कि इतने ड्रामे का क्या मतलब है और आखिर ऐसा क्या होगा कि केजरीवाल अब न प्रधानमंत्री की डिग्री पर सवाल उठा रहे हैं और न चौथी पास राजा की कहानी सुना रहे हैं?
क्या केजरीवाल ने भाजपा या केंद्रीय नेतृत्व के आगे सरेंडर कर दिया है? क्या दोनों के बीच युद्धविराम हो गया है? यह भी सवाल है कि किस चीज के बदले में यह युद्धविराम हुआ है? ध्यान रहे दोनों पार्टियों के बीच खींचतान चल रही है और दिल्ली सरकार व उप राज्यपाल का विवाद भी चल रहा है। हर दिन दिल्ली से जुड़े मामले अदालत में पहुंच रहे हैं। लेकिन केजरीवाल कुछ नहीं बोल रहे हैं। कहीं ऐसा तो नहीं कि केजरीवाल को उनकी खामोशी के बदले राहत मिली है? ध्यान रहे प्रचार करने, ड्रामे करने और नैरेटिव बनाने में कांग्रेस या कोई दूसरी विपक्षी पार्टी केजरीवाल का मुकाबला नहीं कर सकती है। संभव है कि लोकसभा चुनाव से पहले भाजपा को इससे खतरा दिख रहा हो। इसलिए उनको गिरफ्तारी का भय दिखा कर चुप कराया गया हो। यह भी हो सकता है कि लोकसभा चुनाव में कुछ जगहों पर कांग्रेस के खिलाफ लड़ने में केजरीवाल की उपयोगिता दिख रही हो।