राज्य-शहर ई पेपर व्यूज़- विचार

नीतीश क्या अकेले भी लड़ सकते हैं?

बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार कई विकल्पों पर विचार कर रहे हैं। राजद की मदद से सरकार चलाते हुए विपक्षी गठबंधन ‘इंडिया’ के साथ बने रहें या एनडीए में शामिल हो जाने के दो विकल्पों के अलावा वे अकेले राजनीति करने के विकल्प पर भी विचार कर रहे हैं। हालांकि उनकी पार्टी के ज्यादातर नेता इसे आत्मघाती मान रहे हैं। उनको लग रहा है कि 2014 में जब नीतीश कुमार के प्रति बिहार में लोगों का सद्भाव था तब भी अकेले लड़ने पर उनको लोकसभा की सिर्फ दो सीटें मिली थीं, जबकि उससे पहले 2009 के लोकसभा चुनाव में नीतीश की पार्टी को 20 सीटें मिली थीं। उनके साथ लड़ भाजपा को 12 सीटें मिली थीं। अकेले लड़ कर नीतीश  20 से दो सीट पर आ गए थे। पार्टी के नेता मानते हैं कि उसके 10 साल बाद अब नीतीश की स्थिति कमजोर हुई है।

हालांकि नीतीश अभी इस बात को स्वीकार नहीं कर रहे हैं कि उनकी स्थिति कमजोर हो गई है। वे अपनी सरकार के कामकाज को लेकर बहुत भरोसे में हैं और उनको दूसरा भरोसा इस बात का है कि जाति गणना कराने और आरक्षण बढ़ाने के दांव का फायदा उनको मिलेगा। ध्यान रहे चाहे शिक्षकों की नियुक्ति हो या शिक्षकों को राज्यकर्मी का दर्जा देना हो या निवेश सम्मेलन हो हर जगह फोटो सिर्फ नीतीश की लगी और श्रेय उनको दिया गया। इसके अलावा उनको इस बात का भरोसा है कि राजद से अलग होकर वे एक मजबूत गठबंधन बना सकते हैं। उनको लग रहा है कि भाजपा का साथ छोड़ कर उपेंद्र कुशवाहा उनके साथ आ जाएंगे। जीतन राम मांझी की भी वापसी हो जाएगी और लोक जनशक्ति पार्टी के दूसरे धड़े का नेतृत्व कर रहे पशुपति पारस भी उनके साथ जुड़ जाएंगे। वे मुकेश सहनी के भी साथ आने की उम्मीद कर रहे हैं। इस तरह कोईरी-कुर्मी, अत्यंत पिछड़ा, महादलित सबका एक मजबूत गठबंधन बन सकता है। हालांकि उनकी पार्टी का कोई नेता इससे सहमत नहीं है।

Tags :

By NI Political Desk

Get insights from the Nayaindia Political Desk, offering in-depth analysis, updates, and breaking news on Indian politics. From government policies to election coverage, we keep you informed on key political developments shaping the nation.

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *