nayaindia CAA भाजपा को असम से ज्यादा बंगाल की चिंता

भाजपा को असम से ज्यादा बंगाल की चिंता

भारतीय जनता पार्टी ने लगता है मन बना लिया है कि असम में जोखिम लिया जाए तभी नागरिकता संशोधन कानून यानी सीएए के नियम अधिसूचित करने की तैयारी हो रही है। यह कानून बनने के बाद चार साल से ज्यादा समय से लंबित है। केंद्रीय गृह मंत्रालय इसके नियम नहीं बना रहा था ताकि इसे लागू किया जा सके। अब खबर है कि नियम बन गए हैं और इसी महीने उन्हें अधिसूचित किया जा सकता है। इसका मतलब है कि इस महीने से यह कानून लागू हो सकता है। कानून बनने के बाद इस पर अमल इसलिए टाल दिया गया था कि असम में इसका बहुत विरोध हो रहा था। विरोध तो पूरे देश में हो रहा था लेकिन बाकी जगह मुस्लिम संगठन विरोध कर रहे थे लेकिन असम में कई जातीय व भाषायी संगठन भाषा व संस्कृति के नाम पर विरोध कर रहे थे। राज्य में 2021 में चुनाव होने वाले थे। संभवतः इसलिए सरकार ने इसे टाल दिया था।

अब लोकसभा चुनाव से पहले सरकार इसे अधिसूचित करने जा रही है इससे ऐसा लग रहा है कि वह असम में जितना जोखिम देख रही है उससे ज्यादा फायदे की उम्मीद पश्चिम बंगाल और देश के दूसरे हिस्सों में है। बताया जा रहा है कि पाकिस्तान और अफगानिस्तान से आए 32 हजार हिंदुओं और सिखों को इसका तत्काल फायदा मिलेगा। बांग्लादेश से आए बांग्लाभाषी हिंदुओं को भी इसका फायदा मिलेगा। हो सकता है कि असमी भाषी लोग इसका मुद्दा बनाएं लेकिन बंगाल में भाजपा के लिए इससे सकारात्मक माहौल बन सकता है। अगर मुस्लिम संगठन इसका मुद्दा बनाते हैं और इसे राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर, एनआरसी से जोड़ा जाता है तो भाजपा इसका राजनीतिक लाभ ले सकती है। गौरतलब है कि पश्चिम बंगाल में भाजपा ने पिछली बार 18 लोकसभा सीटें जीती थीं और इस बार अमित शाह ने 30 सीट जीतने का लक्ष्य तय किया है।

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