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मोदी क्या सचमुच परिवारवाद के खिलाफ हैं

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने परिवारवाद की नई परिभाषा गढ़ी है। काफी समय से इसका इंतजार हो रहा था कि कब प्रधानमंत्री मोदी कांग्रेस और दूसरी विपक्षी पार्टियों पर परिवारवाद के आरोपों को जस्टिफाई करने के लिए नई परिभाषा गढ़ते हैं। जिस तरह से भाजपा नेताओं की दूसरी और तीसरी पीढ़ी राजनीति में उतर रही है और उनको कहीं न कहीं एडजस्ट किया जा रहा है उसको देखते हुए इस परिभाषा की जरुरत महसूस की जा रही थी। नई परिभाषा के मुताबिक एक परिवार के 10 लोगों का राजनीति में होना गलत नहीं है लेकिन एक परिवार द्वारा पार्टी का संचालित होना परिवारवाद माना जाएगा। इसको साधारण बोलचाल की भाषा में सुविधा का सिद्धांत कहते हैं यानी जो अपने अनुकूल हो वैसा सिद्धांत गढ़ना।

जैसे ही प्रधानमंत्री मोदी ने संसद में खड़े होकर यह नई परिभाषा सुनाई वैसे ही उनकी पार्टी के तमाम ऐसे नेता, जिनके बच्चे या रिश्तेदार उनके साथ साथ राजनीति में हैं या सांसद, विधायक हैं वे सब परिवारवाद के आरोपों से मुक्त हो गए। अगर इस परिभाषा को मान भी लिया जाए तब भी कैसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को परिवारवाद का विरोधी माना जाएगा? उनकी परिभाषा के मुताबिक एक परिवार द्वारा पार्टियों का संचालन परिवारवाद है। फिर सवाल है कि उन्होंने ऐसी पार्टियों से क्यों तालमेल किया है? वे क्यों ऐसी पार्टियों से गठबंधन कर रहे हैं, उनको सीटें दे रहे हैं और उनके लिए प्रचार कर रहे हैं? ऐसे नेताओं के साथ तस्वीरें खिंचवा कर वे क्या मैसेज देना चाहते हैं?

प्रधानमंत्री मोदी की परिवारवादी परिभाषा वाली अनगिनत पार्टियां हैं, जिनके साथ भाजपा का तालमेल है। ताजा मामला एचडी देवगौड़ा की पार्टी जेडीएस का है, जिसके साथ भाजपा ने तालमेल किया है। उसके बाद प्रधानमंत्री मोदी ने कर्नाटक के वोक्कालिगा समुदाय को मैसेज देने के लिए देवगौड़ा के साथ फोटो खिंचवाई। तस्वीर में देवगौड़ा कुर्सी पर बैठे हैं और मोदी उनके पीछे उनके दोनों बेटों के साथ खड़े हैं। ध्यान रहे देवगौड़ा के दोनों बेटे- एचडी कुमारस्वामी और एचडी रेवन्न विधायक हैं और रेवन्ना के बेटे प्रज्वाल रेवन्ना सांसद हैं। पार्टी की कमान देवगौड़ा के बेटे कुमारस्वामी के हाथ में है। यानी उनकी तीन पीढ़ियां एक साथ राजनीति में सक्रिय हैं और सब कुछ परिवार में ही है पर प्रधानमंत्री को उससे कोई आपत्ति नहीं है।

ऐसा नहीं है कि जेडीएस अपवाद है। देवगौड़ा से तालमेल करने से पहले ऐसा ही कमाल का काम भाजपा ने महाराष्ट्र में किया, जहां शरद पवार के भतीजे अजित पवार के साथ तालमेल किया गया। एनसीपी परिवार की ही पार्टी है, जिसके नेता शरद पवार थे, अब उसके एक धड़े के नेता अजित पवार हैं और उनके बाद उनकी पार्टी उनके बेटे पार्थ पवार के हाथ में जाएगी। लेकिन इसमें भी कोई दिक्कत नहीं है। देवगौड़ा और पवार परिवार पर तो प्रधानमंत्री ने कितनी बार भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप भी लगाए हैं। इसी तरह उत्तर प्रदेश में संजय निषाद की पार्टी के साथ भाजपा ने तालमेल किया है। संजय निषाद के बेटे प्रवीण निषाद सांसद हैं। पार्टी परिवार की ही है। सोनेलाल पटेल की बनाई पार्टी अपना दल के साथ भी भाजपा का तालमेल है। सोनेलाल पटेल की बेटी अनुप्रिया पटेल केंद्र की मोदी सरकार में मंत्री हैं। हरियाणा में देवीलाल की चौथी पीढ़ी दुष्यंत चौटाला के साथ भाजपा का तालमेल है और वे राज्य सरकार में उप मुख्यमंत्री हैं। बिहार में चिराग पासवान व पशुपति पारस और जीतन राम मांझी की पार्टी भी परिवार की ही पार्टी है। पहले शिव सेना थी, अकाली दल थी, टीडीपी थी, पीडीपी थी और आगे भी ये सब साथ हो सकते हैं।

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