शीतकालीन सत्र में संसद के दोनों सदनों के 146 सदस्य निलंबित हुए, जिनमें लोकसभा के एक सौ और राज्यसभा के 46 सांसद थे। अब भारतीय जनता पार्टी कह रही है कि सांसद खुद ही निलंबित होना चाहते थे। ऐसा नहीं है कि यह बात पार्टी के किसी राह चलते नेता ने कही है। संसदीय कार्य मंत्री प्रहलाद जोशी ने यह बात कही है। उन्होंने कहा कि शुरुआत के कुछ सदस्यों को जरूर हमने निलंबित कराया लेकिन बाद में सांसद खुद ही आकर कहने लगे कि उन्हें भी बाहर जाना है इसलिए उनको भी निलंबित करा दिया जाए। सोचें, यह किस तरह का आरोप है? अगर कोई सासंद आकर कहेगा कि उसे बाहर जाना और निलंबित कर दिया जाए तो सदन से उसको निलंबित कर दिया जाएगा?
इसी तरह केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि वे चाहते थे कि आपराधिक कानूनों पर बहस के दौरान विपक्ष सदन में मौजूद रहे लेकिन विपक्षी सांसद सदन के बाहर मिमिक्री कर रहे थे। उनकी बातों से ऐसा लग रहा है, जैसे संसदीय कार्य मंत्री बाहर बैठे सांसदों को बुलाने गए थे लेकिन वे बहस में हिस्सा लेने नहीं आए और बाहर मिमिक्री करते रहे! सोचें, जब सांसदों को निलंबित करके सदन से निकाल दिया गया है तो फिर गृह मंत्री के यह कहने का क्या मतलब है कि हम चाहते थे कि विपक्ष बहस में शामिल हो? अगर चाहते थे कि विपक्ष बहस में शामिल हो तो उसे निलंबित नहीं करते! पीड़ित को आरोपी बनाने की सोच के तहत ही भाजपा ने दानिश अली के मामले में भी उनके ऊपर कई आरोप लगा दिए थे।