भारतीय जनता पार्टी ने राज्यसभा के दोवार्षिक चुनावों में खेला करने के लिए तीन राज्य चुने हैं लेकिन अन्य तीन राज्यों में उसका खेला नहीं हुआ इसलिए पार्टी ने उन राज्यों को छोड़ दिया। पहले कहा जा रहा था कि भाजपा मध्य प्रदेश, बिहार और महाराष्ट्र में भी एक एक अतिरिक्त उम्मीदवार दे सकती है। मध्य प्रदेश में तो चर्चा थी कि कांग्रेस नेता और पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ के लिए परचा खरीदा गया है और उनकी ओर से दिए गए भोज में विधायकों के दस्तखत भी करा लिए गए थे। दूसरी ओर राहुल गांधी मीनाक्षी नटराजन को राज्यसभा भेजा चाहते थे, जिसका विरोध प्रदेश के दोनों बड़े नेता कर रहे थे। तभी बीच का फॉर्मूला निकालने के लिए दिग्विजय सिंह और कमलनाथ के साझा उम्मीदवार अशोक सिंह को कांग्रेस ने टिकट दिया। वे ग्वालियर चंबल संभाग के हैं और ओबीसी समाज से आते हैं। कांग्रेस के अंदर विवाद की खबरों के बाद भाजपा एक उम्मीदवार देना चाहती थी।
इसी तरह बिहार में भाजपा को खेला करना था। जानकार सूत्रों का कहना है कि बिहार भाजपा के सह कोषाध्यक्ष रहे और क्रिकेट की राजनीति से जुड़े राकेश तिवारी के लिए राज्यसभा का परचा खरीद लिया गया था। असल में नीतीश कुमार के भाजपा के साथ जाने के बाद राज्य का समीकरण बदल गया है। एनडीए को तीन सीटें मिल रही हैं लेकिन उसके बाद उसके पास 22 वोट बच रहे थे। बिहार में एक सीट जीतने के लिए 36 वोट की जरुरत है। यानी तीन सीट के लिए 108 वोट ही चाहिए, जबकि सत्तारूढ़ गठबंधन के पास 130 का समर्थन है। दूसरी ओर राजद, कांग्रेस और लेफ्ट गठबंधन के पास 112 विधायक हैं। यानी तीन सीट जीतने के लिए उसके पास पर्याप्त संख्या थी। फिर भी राजद द्वारा हरियाणा के संजय यादव को उम्मीदवार बनाने और कांग्रेस कोटे की सीट पर सीपीआई एमएल की दावेदारी से कंफ्यूजन बना था। सीपीआई एमएल ने सीट पर दावेदारी की थी लेकिन मल्लिकार्जुन खड़गे और लालू प्रसाद ने उसके नेता दीपांकर भट्टाचार्य से बात करके सीट हासिल की। बताया जा रहा है कि अंत में नीतीश कुमार ने दखल दिया और कहा कि अभी विश्वास मत पर शक्ति परीक्षण हुआ और अब राज्यसभा चुनाव को शक्ति परीक्षण का अखाड़ा नहीं बनाना है। तब भाजपा पीछे हटी।
उधर महाराष्ट्र में कांग्रेस के टूटने की बड़ी चर्चा थी। अशोक चव्हाण के पार्टी छोड़ कर जाने के बाद कहा जा रहा था कि कांग्रेस के अनेक नेता अंदरखाने भाजपा और उसकी सहयोगी पार्टियों के संपर्क में हैं और अगर एक अतिरिक्त उम्मीदवार उतारा जाता है तो लड़ाई हो सकती है। गौरतलब है कि महाराष्ट्र में महायुति के यानी भाजपा, असली शिव सेना और असली एनसीपी सहित समर्थक विधायकों की संख्या 206 है। राज्य में एक सीट जीतने के लिए 43 वोट की जरुरत है। इस लिहाज से सत्तारूढ़ गठबंधन के पांच उम्मीदवारों को 215 वोट की जरुरत थी। यानी उन्हें नौ वोट अतिरिक्त जुटाने थे। दूसरी ओर विपक्ष के पास 78 विधायक थे। यानी उनके पास 34 अतिरिक्त वोट थे। अगर चुनाव की नौबत आती तो विपक्ष भी एक अतिरिक्त उम्मीदवार उतार सकता था और तब भाजपा गठबंधन को भी नुकसान संभव था। तभी उसने अतिरिक्त उम्मीदवार नहीं दिया और निर्विरोध चुनाव होने दिया।