विपक्ष के नेताओं से ज्यादा सोशल मीडिया के इनफ्लूएंसर और यूट्यूबर बी सुदर्शन रेड्डी को उप राष्ट्रपति का उम्मीदवार बनाने को विपक्ष का मास्टरस्ट्रोक बता रहे हैं। लेकिन इस मास्टरस्ट्रोक के कई नुकसान हैं। पता नहीं विपक्षी नेताओं ने उनका आकलन किया या नहीं? सबसे पहला नुकसान तो यही है कि अब न्यायपालिका के राजनीतिकरण के आरोपों का क्या होगा? यह सही है कि बी सुदर्शन रेड्डी को रिटायर हुए एक दशक से ज्यादा हो गए हैं लेकिन वे सुप्रीम कोर्ट के जज थे। कांग्रेस और दूसरी विपक्षी पार्टियां भाजपा पर आरोप लगाती थीं कि वह न्यायपालिका का राजनीतिकरण कर रही है। वह रिटायर जजों को राज्यपाल बना रही है और उनको सांसद बना रही है। लेकिन अब इस आरोप का क्या होगा, जब खुद विपक्ष एक रिटायर जज को उप राष्ट्रपति का चुनाव लड़ा रहा है?
ध्यान रहे यह पहला मौका है, जब किसी रिटायर जज को उप राष्ट्रपति का चुनाव लड़ाया जा रहा है। इससे पहले कभी कोई रिटायर जज चुनाव नहीं लड़ा है। यह सही है कि सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन चीफ जस्टिस एम हिदायतुल्ला ने कार्यवाहक राष्ट्रपति का पद संभाला था। लेकिन वे चुनाव नहीं लड़े थे। राष्ट्रपति और उप राष्ट्रपति दोनों का पद खाली होने की वजह से उनको कार्यवाहक राष्ट्रपति की जिम्मेदारी दी गई थी। दूसरी बात यह है कि 2007 से 2012 तक सुप्रीम कोर्ट का जज रहते जस्टिस बी सुदर्शन रेड्डी ने तत्कालीन कांग्रेस सरकार को काले धन के मामले में लापरवाही बरतने और कोई कार्रवाई नहीं करने के लिए फटकार लगाई थी। सबको पता है कि दो साल बाद उसी काले धन के मुद्दे पर नरेंद्र मोदी ने प्रचार किया और सरकार बनाई। तीसरी बात यह है कि जस्टिस बी सुदर्शन रेड्डी को 2013 में जब गोवा का पहला लोकायुक्त बनाया गया तो कांग्रेस पार्टी ने उन पर खूब हमला किया और उनको गोवा के तत्कालीन मुख्यमंत्री मनोहर पर्रिकर का यस मैन कहा। सोचें, कांग्रेस ने जिसको भाजपा के एक नेता का यस मैन कहा उसको उप राष्ट्रपति का उम्मीदवार बनाया! चौथी बात यह है कि सुदर्शन रेड्डी मजबूत कृषक समाज से आते हैं, जैसे महाराष्ट्र में मराठा और उत्तर में जाट या भूमिहार होते हैं, जबकि राधाकृष्णन पिछ़ड़ी जाति के हैं।