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भाजपा को भी वीपी सिंह से प्यार नहीं

ऐसा नहीं है कि कांग्रेस पार्टी की पूर्व प्रधानमंत्री वीपी सिंह से दुश्मनी है तो भारतीय जनता पार्टी को उनसे प्यार है। भाजपा को भी वीपी सिंह से कोई प्यार नहीं है। सोमवार, 27 नवंबर को वीपी सिंह की पुण्यतिथि थी लेकिन इस मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सहित भाजपा के किसी बड़े नेता ने उनको याद नहीं किया। वे देश के प्रधानमंत्री रहे हैं इस नाते उनकी जयंती और पुण्यतिथि पर उनको याद करना और श्रद्धांजलि एक औपचारिकता है। लेकिन प्रधानमंत्री मोदी ने उनको श्रद्धांजलि देने का ट्विट नहीं किया है। वे सोमवार को तेलंगाना में थे और सुबह में भगवान वेंकटेश्वर के दर्शन किए थे। उन्होंने तेलंगाना में कई जनसभाएं भी की थीं। सबके बारे में उनके ट्विटर हैंडल से तेलुगू और अंग्रेजी में ट्विट किया गया था। उन्होंने देव दीपावली से जुड़े ट्विट भी किए और अपनी सरकार के मंत्री प्रहलाद पटेल को जन्मदिन की बधाई भी दी लेकिन वीपी सिंह के लिए ट्विट नहीं किया। अमित शाह, जेपी नड्डा सहित भाजपा के किसी बड़े नेता ने उनको श्रद्धांजलि नहीं दी।

सोचें, भाजपा भी अपने को पिछड़ी जातियों का सबसे खैरख्वाह बताती है। तेलंगाना में, जहां मोदी, शाह और नड्डा ने पूरा जोर लगाया है वहां प्रचार किया जा रहा है कि भाजपा की सरकार बनी तो ओबीसी मुख्यमंत्री बनेगा लेकिन ओबीसी के मसीहा नेता पर सबसे चुप्पी साधी है। असल में वीपी सिंह का नाम और चेहरा आज भी भाजपा समर्थक अगड़ी जातियों में नफरत का पर्याय है। उनको अगड़ी जातियां पसंद नहीं करती हैं। यहां तक कि उनके अपने ठाकुर समाज में भी वह प्रतिष्ठा नहीं है जो पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर की है। वीपी सिंह ने मंडल की रिपोर्ट लागू की थी तो लाखों लोग सड़कों पर उतरे थे और अनेक लोगों ने आत्मदाह करके इस कानून का विरोध किया था। तब भाजपा ने परदे के पीछे से इस आंदोलन को समर्थन दिया था।

ध्यान रहे भारतीय जनता पार्टी ने 1989 के लोकसभा चुनाव के बाद अपने 81 लोकसभा सांसदों का समर्थन देकर वीपी सिंह के नेतृत्व में जनता दल की सरकार बनवाई थी। लेकिन मंडल आयोग की रिपोर्ट लागू करने और अन्य पिछड़ी जातियों को 27 फीसदी आरक्षण देने के वीपी सिंह सरकार के फैसले के बाद से ही दोनों में दूरी बढ़ गई थी। मंडल की राजनीति के जवाब में ही लालकृष्ण आडवाणी ने कमंडल की राजनीति शुरू की थी। उसी समय वे सोमनाथ से अयोध्या के लिए रथ यात्रा लेकर निकले थे और बिहार में गिरफ्तारी के बाद उनकी पार्टी ने वीपी सिंह सरकार से समर्थन वापस लिया था। सो, पिछड़ी जातियों के लिए सब कुछ करने का वादा अपनी जगह है लेकिन वीपी सिंह को याद करके भाजपा अपने कोर समर्थक सवर्ण वोट को नाराज नहीं करना चाहती है।

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