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बिहार में कांग्रेस अकेले लड़ने की तैयारी करे!

कांग्रेस पार्टी को भारत जोड़ो यात्रा में जो सबसे बड़ा सेटबैक लगा है वह बिहार की सहयोगी पार्टियों से लगा है। बिहार में राजद और जदयू की सरकार में कांग्रेस भी शामिल है। यह अलग बात है कि इन दोनों पार्टियों के पास बहुमत के लायक सीटें हैं फिर भी कांग्रेस के 19 विधायकों के समर्थन से महागठबंधन सरकार को स्थिरता मिली हुई है। राजद के साथ कांग्रेस का पुराना तालमेल है तो नीतीश कुमार पहली बार जब भाजपा से अलग होकर बियाबान में भटक रहे थे तब कांग्रेस ने उनको नेता बनवा कर राजद के साथ तालमेल में भूमिका निभाई थी। इसके बावजूद नीतीश ने यह कहते हुए पल्ला झाड़ लिया कि यह कांग्रेस का अपना कार्यक्रम है। सवाल है कि कांग्रेस के बाकी सहयोगी जैसे डीएमके, एनसीपी, शिव सेना, जेएमएम आदि के नेता यात्रा में शामिल हुए तो उनको नीतीश जितना ज्ञान नहीं है? क्या वे नहीं जानते थे कि यह कांग्रेस का अपना कार्यक्रम है? वे भी जानते थे लेकिन वे इसलिए यात्रा से जुड़े क्योंकि उनको अपनी एक सहयोगी पार्टी से एकजुटता दिखानी थी।

राजद और जदयू दोनों ने कांग्रेस के साथ एकजुटता दिखाने की जरूरत नहीं समझी। दोनों के नेता पूरी यात्रा के दौरान कहीं भी इसमें शामिल नहीं हुए। जिस समय यात्रा दिल्ली पहुंची उस समय भी दोनों पार्टियों के नेताओं को यात्रा में शामिल होने के लिए बुलाया गया था। लेकिन नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव को तो छोड़िए उनकी पार्टी का कोई सांसद भी यात्रा में शामिल होने नहीं गया। ऊपर से दोनों पार्टियों ने अगड़ा और पिछड़ा की लड़ाई बनाने के लिए रामचरित मानस के विरोध की राजनीति शुरू कर दी है। इस राजनीति के साथ कांग्रेस का चल सकना संभव नहीं है। इसलिए कांग्रेस को अभी से बिहार में अलग राजनीति की तैयारी करनी चाहिए।

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By NI Political Desk

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