बिहार में महागठबंधन यानी राजद, जदयू और कांग्रेस के नेता अगले लोकसभा चुनाव में भाजपा को हराने का संकल्प किए हुए हैं। लेकिन उससे पहले बड़ा सवाल है कि तीनों पार्टियों के बीच तालमेल कैसे होगा? सीटों का बंटवारा किस तरह से होगा? क्या सीटों का अदला-बदली होगी और अगर ऐसा होगा तो मौजूदा सांसदों का क्या होगा? इन सवालों से नीतीश कुमार की पार्टी के सांसद परेशान हैं। ध्यान रहे राजद का कोई लोकसभा सांसद नहीं जीता है इसलिए उधर कोई परेशानी नहीं है। कांग्रेस का भी एक ही सांसद है और वह भी किशनगंज सीट है। गठबंधन में उस सीट का फिर से कांग्रेस के खाते में जाना तय है। सो, असली चिंता जदयू के सांसदों की है। भाजपा के साथ लड़ कर उसके 16 सांसद जीते थे, जिसमें कम से कम आधे सांसद सीट बदले जाने की चिंता में हैं।
ध्यान रहे भाजपा गठबंधन में जदयू को ऐसी तमाम सीटें मिली थीं, जहां राजद मजबूत है। राजद के असर वाली सीटों पर जदयू के सांसद जीते हैं। मधेपुरा राजद की पारंपरिक सीट है, जहां से जदयू के दिनेश चंद्र यादव हैं, ऐसे ही सिवान राजद का मुस्लिम चेहरा रहे शहाबुद्दीन के परिवार की सीट है वहां से जदयू की कविता सिंह हैं, भागलपुर राजद की मजबूत सीट रही है, जहां से जदयू के अजय मंडल जीते हैं। रंजीत रंजन और पप्पू यादव कांग्रेस के साथ हैं, जिनके असर का इलाका मधेपुरा, सुपौल और पूर्णिया है। इन तीनों सीटों पर जदयू के सांसद जीते हैं। इसी तरह गोपालगंज से लेकर झंझारपुर, सीतामढ़ी, बांका जैसी सीटों पर जदयू के सांसद हैं। कटिहार कांग्रेस के तारिक अनवर की पारंपरिक सीट है, जिस पर जदयू के दुलाल चंद गोस्वामी जीते हैं। इन सीटों पर जदयू के सांसद बेचैन हैं। उनको लग रहा है कि गठबंधन में उनकी सीट बदल सकती है। सो, कई सांसद भाजपा के संपर्क में बताए जा रहे हैं।