nayaindia BJP principle of convenience भाजपा का सुविधा का सिद्धांत

भाजपा का सुविधा का सिद्धांत

भारतीय जनता पार्टी की राजनीति एक समय विचारधारा से जुड़ी थी। बाद में सरकार बनाने के लिए पार्टी ने विचारधारा को किनारे किया और हर तरह की पार्टियों के साथ गठबंधन किया। अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में बनी भाजपा की सरकार में 25 पार्टियां थीं, जिनमें से कई ऐसी थीं, जो विचारधारा के स्तर पर भाजपा की घनघोर विरोधी थीं। उसके बाद अब भाजपा की राजनीति सुविधा के सिद्धांत में बदल गई है। अपनी सुविधा से वह विचारधारा बदलती रहती है। पहले चुनाव में राजनीतिक विरोध होता था लेकिन अब भाजपा के नेता चुनाव में निजी विरोध करते हैं, दुश्मन मान कर हमला करते हैं, ऐसे आरोप लगाते हैं, जिन्हें सुन कर शर्म आए लेकिन चुनाव के बाद उसी के साथ तालमेल कर लेते हैं, जिन पर आरोप लगाए होते हैं। यह राजनीति का बिल्कुल नया दौर है।

मेघालय में भाजपा के नंबर दो नेता और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कोनरेड संगमा की सरकार पर ऐसे ऐसे आरोप लगाए, जैसे किसी बड़ी दुश्मन पर भी नहीं लगाए जाते हैं। उन्होंने कोनरेड संगमा की सरकार को देश की नंबर एक भ्रष्ट सरकार बताया था। हालांकि भाजपा साढ़े चार साल तक उसी सरकार के साथ रही थी। लेकिन चुनाव में उसको सबसे भ्रष्ट सरकार बताया और चुनाव के बाद फिर उसी के साथ तालमेल कर लिया और सरकार बनाने के लिए समर्थन दे दिया। बहुत पहले इसी तरह भाजपा के नेताओं ने जम्मू कश्मीर में महबूबा मुफ्ती की पार्टी पीडीपी को देश विरोधी और आतंकवादियों का समर्थक बताया था लेकिन चुनाव बाद भाजपा ने मुफ्ती मोहम्मद सईद और महबूबा मुफ्ती को दोनों को मुख्यमंत्री बनवाया। सो, भाजपा के लिए चुनाव से पहले जो देश विरोधी होता है या सबसे भ्रष्ट होता है, चुनाव के बाद वह भी सहयोगी बन जाता है।

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