कांग्रेस पार्टी के नेता एकतरफा तरीके से ऐलान कर रहे हैं कि 2024 में गठबंधन की सरकार बनेगी तो कांग्रेस नेतृत्व करेगी या 2024 के चुनाव में राहुल गांधी विपक्ष की धुरी होंगे लेकिन यह तभी होगा, जब इस साल होने वाले राज्यों के चुनावों में कांग्रेस जीते। अगर कांग्रेस नहीं जीतती है तो विपक्षी पार्टियां उसे भाव नहीं देंगी, उलटे उसे और कमजोर करने की राजनीति करेंगी। ध्यान रहे राजनीति कोई सद्भाव का खेल नहीं होता है। किसी को कांग्रेस के साथ सहानुभूति नहीं है। अगर कांग्रेस साबित करती है कि उसकी उपयोगिता है और देश के लोग अब भी उसे चाहते हैं तब तो बात हो सकती है। अन्यथा ज्यादातर विपक्षी पार्टियां राज्यों में कांग्रेस की जगह लेने के लिए बेचैन हैं।
अगर इस साल होने वाले चुनाव में कांग्रेस नहीं जीतती है तो विपक्षी पार्टियों के सामने उसकी मोलभाव की क्षमता कम होगी। लेकिन अगर विपक्षी पार्टियों की स्थिति भी कमजोर होती है तो मामला बराबरी का बनेगा। विपक्षी पार्टियों की कमजोर स्थिति का मतलब है, जैसे तृणमूल कांग्रेस त्रिपुरा और मेघालय में कुछ खास नहीं कर पाए या आम आदमी पार्टी इस साल के चुनावों में कहीं और गुजरात वाला प्रदर्शन नहीं दोहरा पाए या भारत राष्ट्र समिति की स्थिति पहले जैसी मजबूत नहीं रह जाए। दूसरी ओर कांग्रेस को इस साल के चुनावों में बेहतर करना होगा। कम से कम कर्नाटक, राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में। इन राज्यों में आप और बीआरएस मिल कर कांग्रेस को नुकसान पहुंचाना चाहेंगे तो कांग्रेस तेलंगाना में बीआरएस को नुकसान पहुंचाने की राजनीति करेगी।