भारतीय जनता पार्टी की चुनावी रणनीति कई स्तर पर बन रही है। एक रणनीति उन राज्यों की है जहां भाजपा ने सारी सीटें जीती हैं या जिन राज्यों की ज्यादातर सीटें उसने पिछले चुनाव में जीती थी। इसके अलावा एक रणनीति उन राज्यों के लिए है, जहां भाजपा ने कम सीटें जीती हैं या कोई सीट नहीं जीती है। जिन राज्यों में भाजपा ने एक, दो या तीन सीट जीती है वहां उन सीटों को बचाने का जुगाड़ बनाया जा रहा है। इसका कारण यह है कि भाजपा एक भी सीट गंवाना अफोर्ड नहीं कर सकती है क्योंकि उसकी भरपाई का उपाय उसको नहीं दिख रहा है। कहीं से भी एक सीट कम होती है तो उसके बदले नई जगह सीट जीतने की संभावना नहीं है। ऐसा इसलिए है क्योंकि अपने मजबूत असर वाले राज्यों में भाजपा ने सारी सीटें पहले से जीती हैं या ज्यादातर सीटें जीती हैं। इसलिए वहां सीट बढ़ नहीं सकती है। अगर वहां भी सीटें कम हुईं और एक-एक सीट वाले राज्यों में भी नुकसान हुआ तो बड़ा नुकसान हो जाएगा।
तभी भाजपा ने पंजाब की अपनी दो लोकसभा सीटें बचाने के लिए अकाली दल से तालमेल का फैसला किया है। उसे हर हाल में पंजाब की दो और चंडीगढ़ की एक सीट बचानी है। इसी तरह तेलंगाना की चार सीटें भाजपा को हर हाल में बचानी है। इसके लिए टीडीपी से तालमेल की जरूरत हो या जगन मोहन रेड्डी की बहन वाईएस शर्मिला की नई बनी पार्टी से तालमेल करना पड़े, भाजपा वह करेगी। आंध्र प्रदेश में भाजपा को पिछली बार एक भी सीट नहीं मिल पाई थी, जबकि 2014 में टीडीपी के साथ रहने पर उसने दो सीटें जीती थीं। 2024 में भाजपा कम से कम दो सीट जीतने के उपाय कर रही है। इसलिए टीडीपी को साथ लिया जा रहा है। ऐसे ही तमिलनाडु में भाजपा का खाता नहीं खुला था। इस बार वह एक या दो सीट जीतने की योजना पर काम कर रही है। केरल में पार्टी का खाता खुलने की संभावना कम है पर ईसाई वोट साधने की योजना पर काम हो रहा है ताकि एक भी सीट जीती जा सके। इसी तरह पूर्वोत्तर में त्रिपुरा की दोनों सीटें बचाने के लिए पार्टी हर संभव प्रयास करेगी।