भारतीय जनता पार्टी और शिव सेना के उद्धव गुट की राजनीति पर नजर रखने की जरूरत है। एक दूसरे पर आरोप लगाने और हमला करने के साथ साथ दोनों के बीच नजदीकी भी बढ़ रही है, जिससे महाराष्ट्र की राजनीति में बड़ा बदलाव हो सकता है। शिव सेना के एकनाथ शिंदे गुट को समर्थन देने और शिंदे को मुख्यमंत्री बनाने के आठ महीने बाद भाजपा इस गठबंधन पर नए सिरे से विचार कर रही है। शिंदे गुट में अलग बड़ा कंफ्यूजन है। ऊपर से महाविकास अघाड़ी ने विधान परिषद की पांच सीटों के चुनाव में जैसा प्रदर्शन किया है उससे अगले चुनावों को लेकर भाजपा कि चिंता बढ़ी है।
जानकार सूत्रों के मुताबिक महाराष्ट्र में भाजपा और उद्धव ठाकरे गुट के बीच पिछले कई महीनों से बातचीत हो रही है। देश के एक जाने माने उद्योगपति, जिनका दोनों दलों से अच्छा संबंध है उन्होंने पहल करके बातचीत शुरू कराई थी। उसके बाद भाजपा के एक बड़े नेता के जरिए भी उद्धव ठाकरे से बात हुई है। इस बीच विधान परिषद की शिक्षक व स्नातक क्षेत्र की पांच सीटों के चुनाव हुए और भाजपा बुरी तरह से हारी। उसका सिर्फ एक उम्मीदवार जीत सका, जबकि एनसीपी, कांग्रेस और उद्धव ठाकरे गुट की शिव सेना के तीन उम्मीदवार जीते। कांग्रेस के एक पूर्व नेता निर्दलीय जीते हैं और अगर वे कांग्रेस में चले जाते हैं तो अघाड़ी के जीते उम्मीदवारों की संख्या चार हो जाएगी।
तभी कहा जा रहा है कि इन नतीजों के बाद भाजपा की ओर से उद्धव ठाकरे से संबंध सुधार की कोशिश तेज होगी। वैसे भी भाजपा में पहले से एकनाथ शिंदे को हाशिए पर डालने का काम शुरू हो गया है। बताया जा रहा है कि उनकी पार्टी के ज्यादातर विधायक और सांसद इस समय भाजपा के संपर्क में हैं और भाजपा जब चाहे उनको पार्टी में शामिल करा सकती है। इसके बाद बचे हुए विधायक व सांसद उद्धव ठाकरे गुट में लौट सकते हैं। हालांकि इससे भाजपा की ताकत थोड़ी बढ़ेगी लेकिन शिव सेना को खत्म करके हिंदुत्व की राजनीति का पूरा स्पेस हथिया लेने की मंशा पूरी नहीं होगी।
ऊपर से अगर एनसीपी, कांग्रेस और उद्धव ठाकरे गुट का गठबंधन बना रहा तो अगले लोकसभा चुनाव में भाजपा को बड़ा नुकसान हो सकता है। भाजपा के एक जानकार नेता के मुताबिक पार्टी की असली चिंता अपनी 23 सीटें बचाने की नहीं है, बल्कि बची हुई 25 सीटें विपक्षी गठबंधन के पास जाने की चिंता है। पिछली बार भाजपा और शिव सेना ने राज्य की 48 लोकसभा सीटों में से 41 सीटें जीती थीं। भाजपा को हर हाल में इतनी सीटें एनडीए के लिए हासिल करनी है और पार्टी नेताओं को लग रहा है कि वह एकनाथ शिंदे के साथ रहने से नहीं होगा। तभी भाजपा की कोशिश महाविकास अघाड़ी को तोड़ने की है और वह तभी होगा, जब उद्धव ठाकरे गुट के साथ फिर तालमेल हो। हालांकि उद्धव ठाकरे अपनी पार्टी तोड़े जाने से आहत हैं और इतनी जल्दी भाजपा के हाथ नहीं आने वाले हैं।