भारतीय जनता पार्टी आमतौर पर यथास्थिति बनाए रखने वाली पार्टी नहीं है। वहां फैसले फटाफट होते हैं। लेकिन राष्ट्रीय अध्यक्ष के तौर पर जेपी नड्डा को कार्यकाल का विस्तार देने के साथ संगठन को लेकर जो यथास्थिति बनी है वह हैरान करने वाली है। भाजपा कहीं भी संगठन से जुड़ा फैसला नहीं कर पा रही है। कई राज्यों में समय सीमा निकल गई और भाजपा ने प्रदेश अध्यक्ष नहीं बदले। कर्नाटक में पिछले छह महीने से प्रदेश अध्यक्ष नलिन कुमार कतील को बदलने की चर्चा थी लेकिन पार्टी ने अध्यक्ष नहीं बदला और अब चुनाव की घोषणा होने वाली है। ऐसी स्थिति कई राज्यों में है।
झारखंड में प्रदेश अध्यक्ष बदलने के लिए एक एक दिन का इंतजार हो रहा है। हर दिन प्रदेश भाजपा के नेता उम्मीद करते हैं कि आज नए अध्यक्ष की घोषणा हो सकती है या मौजदा अध्यक्ष के कार्यकाल का विस्तार हो सकता है। लेकिन न तो पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष दीपक प्रकाश के कार्यकाल का विस्तार हो रहा है और न नए अध्यक्ष की घोषणा हो रही है। विधानसभा में नेता विपक्ष का दर्जा हासिल करने में नाकाम रहे बाबूलाल मरांडी अध्यक्ष बनना चाहते हैं तो अनुसूचित जनजाति मोर्चा के राष्ट्रीय अध्यक्ष समीर उरांव भी उम्मीद लगाए बैठे हैं।
इसी तरह बिहार में कहा जा रहा है कि किसी भी समय प्रदेश अध्यक्ष की घोषणा हो सकती है। संजय जायसवाल का कार्यकाल पूरा हो गया है और नए अध्यक्ष की घोषणा का इंतजार हो रहा है। पटना के विधायक संजीव चौरसिया सहित अति पिछड़ा समाज से आने वाले कई नेता अध्यक्ष बनने की उम्मीद कर रहे हैं। कुछ समय पहले तक सवर्ण अध्यक्ष बनाए जाने की चर्चा थी लेकिन अब माना जा रहा है कि अति पिछड़ा समाज का कोई नेता ही अध्यक्ष होगा। ऐसे ही राजधानी दिल्ली में निगम चुनाव के बाद तत्कालीन अध्यक्ष आदेश गुप्ता का इस्तीफा हुआ और वीरेंद्र सचदेवा कार्यकारी अध्यक्ष बनाए गए। उन्हीं को पूर्णकालिक अध्यक्ष बनाया जाएगा या नया अध्यक्ष नियुक्त होगा, इसका फैसला नहीं हो पाया है।
भाजपा ने मध्य प्रदेश में वीडी शर्मा और राजस्थान में सतीश पुनिया को अध्यक्ष बनाए रखा है। इसी तरह राष्ट्रीय टीम में भी यथास्थिति कायम है। कोई नई नियुक्ति नहीं हुई है और न किसी पदाधिकारी के कामकाज में कोई बदलाव किया गया है। यह भी कहा जा रहा है कि लोकसभा चुनाव तक शायद नड्डा की टीम में कोई बदलाव न हो। कुछ उपाध्यक्ष और महासचिवों की जिम्मेदारी में जरूर बदलाव हो सकता है। लेकिन वह भी कब होगा, किसी को अंदाजा नहीं है। पार्टी के नौ महासचिवों में से गिने चुने महासचिव ही काम करते दिख रहे हैं और चुनावी राज्यों में संगठन के नेताओं से ज्यादा केंद्रीय मंत्रियों के काम लिया जा रहा है। इसलिए अभी यथास्थिति बदलने की संभावना नहीं दिख रही है।