कांग्रेस पार्टी और राहुल गांधी विनायक दामोदर सावरकर का पीछा नहीं छोड़ रहे हैं। भाजपा और उसके नेताओं से ज्यादा राहुल गांधी सावरकर का नाम ले रहे हैं। विचारधारा की लड़ाई की बात अलग है लेकिन राजनीतिक रूप से सावरकर कोई अखिल भारतीय आइकॉन नहीं हैं। महाराष्ट्र को छोड़ दें तो देश के किसी भी हिस्से में सावरकर के बारे में जानने और मानने वालों की संख्या उंगलियों पर गिनी जा सकती है। उनका मतलब सिर्फ महाराष्ट्र में है, जहां कांग्रेस का शिव सेना के उद्धव ठाकरे गुट के साथ तालमेल है। एनसीपी भी कांग्रेस की सहयोगी है। ये दोनों पार्टियां राहुल के बयानों से असहज होती हैं।
तभी उद्धव ठाकरे ने राहुल के बयान पर आपत्ति जताई है। उन्होंने कहा है कि सावरकर का दर्जा उनकी पार्टी के लिए भगवान का है। इसलिए राहुल गांधी और कांग्रेस पार्टी को सावरकर का अपमान बंद करना चाहिए। उद्धव ने याद दिलाया कि शिव सेना राहुल की भारत जोड़ो यात्रा में शामिल हुई थी क्योंकि उसे लगा था कि यह लोकतंत्र बचाने के लिए हो रहा है। लेकिन पार्टी सावरकर का अपमान नहीं बरदाश्त कर सकती है। कांग्रेस को इस मामले में शिव सेना की संवेदनशीलता का अंदाजा है फिर भी हर जगह राहुल उनका जिक्र ले आते हैं। माफी मांगने की बात हुई तब भी उन्होंने कहा कि वे सावरकर नहीं हैं, गांधी हैं। सोचें, लोकतंत्र बचाने या भ्रष्टाचार पर मोदी सरकार को घेरने या आर्थिक एजेंडा उठाने के बीच में सावरकर और गांधी की वैचारिक लड़ाई कहां से आ गई? हकीकत यह है कि महाराष्ट्र, गोवा और थोड़ा बहुत कर्नाटक को छोड़ कर देश में कहीं भी सावरकर का कोई मतलब नहीं है। जहां जरूरत हो वहां सावरकर का जिक्र करें लेकिन हर जगह जबरदस्ती सावरकर को लाने की जरूरत नहीं है।