मणिपुर के बारे में पूरी खबरें जनता के सामने नहीं आ पा रही हैं। राज्य में हालात बहुत खराब हैं। कर्फ्यू लगा कर और सेना व अर्धसैनिक बलों को तैनात कर तनावपूर्ण शांति कायम की गई है। जैसे ही कर्फ्यू में ढील दी जाती है, लोग बाहर निकल कर लड़ने लगते हैं। पूरा राज्य दो समुदायों के बीच विभाजित हो गया है। कुकी और मैती के बीच अविश्वास इतना बढ़ गया है कि दोनों समुदायों के लोग एक दूसरे के असर वाले इलाकों को छोड़ कर भाग रहे हैं। समुदायों के घेटो बन रहे हैं और जिस समुदाय के ज्यादा लोग जहां हैं, बाकी लोग वहीं पहुंच कर शरण ले रहे हैं। राहत शिविरों से लोग निकल कर घर नहीं जाना चाहते हैं। एक रिपोर्ट के मुताबिक विभाजन इतना गहरा है कि कुकी विधायक मणिपुर से अलग होना चाहते हैं। ज्यादातर कुकी विधायक राजधानी इंफाल छोड़ कर चले गए हैं। विधायकों, मंत्रियों के घरों पर हमले हो रहे हैं।
एक चिंताजनक रिपोर्ट यह है कि तीन मई को शुरू हुई हिंसा में अब तक 75 लोगों की जान जा चुकी है और इनमें से 63 लोगों के शव अब भी अलग अलग अस्पतालों के मुर्दाघर में पड़े हुए हैं। सोचें, घटना के इतना समय बीत जाने के बाद भी लोग अपने परिजनों का शव लेने नहीं पहुंचे हैं। बताया जा रहा है कि एक जगह कुकी आदिवासी समुदाय के लोगों के 20 शव हैं, जिनकी पहचान हो गई है लेकिन आदिवासी समूहों के निर्देश पर लोग शव नहीं ले जा रहे हैं। वे इस तरह से अपना विरोध दर्ज करा रहे हैं।
दूसरी ओर अनेक शव ऐसे भी हैं, जिनके परिजन पहचान करने नहीं गए हैं। वे डर के मारे निकल नहीं रहे हैं। लोग सुरक्षा की चिंता में अस्पतालों में शव की पहचान करने, उसे क्लेम करने और घर ले जाकर अंतिम संस्कार करने से घबरा रहे हैं। सेना प्रमुख दो दिन के दौरे पर पहुंचे हैं और केंद्रीय गृह मंत्री तीन दिन के दौरे पर जाने वाले हैं। उम्मीद करनी चाहिए कि इसे सिर्फ सुरक्षा की समस्या के रूप में नहीं, बल्कि राजनीतिक, सामाजिक समस्या के तौर पर देखा जाएगा और उसी हिसाब से इसका समाधान निकाला जाएगा।