nayaindia Womens Reservation Bill महिला आरक्षण बिल में अब क्या दिक्कत है?

महिला आरक्षण बिल में अब क्या दिक्कत है?

यह कमाल की बात है कि अब महिला आरक्षण बिल की कोई चर्चा नहीं होती है। विधायिका में महिलाओं की संख्या अब भी बहुत कम है इसके बावजूद देश की दोनों बड़ी पार्टियां खामोश हैं। भाजपा की पूर्ण बहुमत की सरकार है और जिस तरह से उसने जोर जबरदस्ती कई बिल पास कराए, अगर चाहती तो कब का महिला आरक्षण बिल पास करा चुकी होती। लेकिन भाजपा की प्राथमिकता में यह बिल नहीं है। कांग्रेस भी 2004 से 2014 के अपने शासन के दौरान कई बार इस बिल को पास कराने की बात करती थी। महिलाओं को 33 फीसदी आरक्षण देने का संकल्प जताती थी और भाजपा भी इसमें उसका साथ देती थी। हालांकि यह हिप्पोक्रेसी है कि दोनों बड़ी  पार्टियों के समर्थन के बावजूद बिल पास नहीं हुआ।

अब ये दोनों पार्टियां चर्चा नहीं करती हैं। देश भर के स्थानीय निकायों में महिलाओं के लिए 50 फीसदी तक के आरक्षण की व्यवस्था लागू की जा रही है पर संसद और विधानमंडल में 33 फीसदी आरक्षण की बात नहीं हो रही है। बजट सत्र से पहले कई पार्टियों ने सरकार की सर्वदलीय बैठक में यह मुद्दा उठाया। कई क्षेत्रीय पार्टियां चाहती हैं कि सरकार बिल ले आए। तेलंगाना में सत्तारूढ़ भारत राष्ट्र समिति, पश्चिम बंगाल में सरकार चला रही तृणमूल कांग्रेस और ओड़िशा की सत्तारूढ़ बीजू जनता दल ने केंद्र सरकार से महिला आरक्षण बिल लाने की मांग की है। ध्यान रहे इन पार्टियों ने चुनावों मे ज्यादा से ज्यादा महिलाओं को टिकट देना शुरू किया है। तृणमूल कांग्रेस और बीजू जनता दल ने तो 40 फीसदी तक टिकट दिए हैं।

तभी सवाल है कि केंद्र सरकार को महिला आरक्षण बिल लाने में क्या दिक्कत हो रही है? किस बात का इंतजार हो रहा है? ऐसा लग रहा है कि भाजपा आरक्षण के भीतर आरक्षण की मांग की वजह से पहल नहीं कर रही है। उसे लग रहा है कि इससे पिछड़े समूहों में नाराजगी हो सकती है। दूसरा उसे ऐसा लग रहा है कि महिलाएं पहले ही नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में आस्था दिखा रही हैं और भाजपा को वोट कर रही हैं। इसलिए अभी इसे छेड़ने की जरूरत नहीं है।

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