उम्मीद ही नहीं जलवायु की मार पर किसी के सोचने की!
भारत कई चीज़ों का पर्याय हो सकता है, लेकिन अपॉलिटिकल बिलकुल नहीं। हम इस पर भी राजनीति करते हैं कि क्या खाएँगे, किसकी पूजा करेंगे, क्या देखेंगे, किससे शादी करेंगे! तभी आवारा कुत्तों से लेकर सड़क पर हुए विरोध तक, व्हाट्सऐप फ़ॉरवर्ड से लेकर युद्ध तक—सबकुछ भारत में वैचारिक छंटनी के शोर में है। राजनीति संसद में ही नहीं, हमारे ड्रॉइंग रूम में है, हमारे चुटकुलों में है, हमारी चुप्पियों में है। और फिर भी, इस लगातार शौर से भरे देश में एक संकट है जो अब भी राजनीतिक चखचख और कल्पना से बाहर है। और वह जलवायु है! भारत...