Climate Change

  • उम्मीद ही नहीं जलवायु की मार पर किसी के सोचने की!

    भारत कई चीज़ों का पर्याय हो सकता है, लेकिन अपॉलिटिकल बिलकुल नहीं। हम इस पर भी राजनीति करते हैं कि क्या खाएँगे, किसकी पूजा करेंगे, क्या देखेंगे, किससे शादी करेंगे! तभी आवारा कुत्तों से लेकर सड़क पर हुए विरोध तक, व्हाट्सऐप फ़ॉरवर्ड से लेकर युद्ध तक—सबकुछ भारत में वैचारिक छंटनी के शोर में है। राजनीति संसद में ही नहीं, हमारे ड्रॉइंग रूम में है, हमारे चुटकुलों में है, हमारी चुप्पियों में है। और फिर भी, इस लगातार शौर से भरे देश में एक संकट है जो अब भी राजनीतिक चखचख और कल्पना से बाहर है। और वह जलवायु है! भारत...

  • चरमराते शहरों का इलाज

    चरमराते भारतीय शहरों को रहने योग्य बनाए रखने के लिए उचित बजट और दुरुस्त नियोजन अब अपरिहार्य हो गया है। मगर, दुर्भाग्यपूर्ण है कि ये मुद्दा हमारे नीतिकारों की चिंता के दायरे में कहीं नहीं है। भारतीय शहरों की मौजूदा अवस्था से विश्व बैंक चिंतित है। उसने आगाह किया है कि जहां शहर फैल रहे हैं, वहीं जलवायु परिवर्तन के कारण उनके सामने गंभीर चुनौतियां पेश आ रही हैं। ऐसे में शहरी इन्फ्रास्ट्रक्चर को दुरुस्त करना अति आवश्यक हो गया है। अपनी एक ताजा रिपोर्ट में विश्व बैंक ने अनुमान लगाया है कि भारत में शहरी इन्फ्रास्ट्रक्चर को बदलते मौसम...

  • हर सुबह मौसम की मार!

    मैं जलवायु परिवर्तन का मारा हूं। आप नहीं मानते? चलिए, मत मानिए। पर हर सुबह बीबीसी, सीएनएन, फ्रांस 24, एबीसी जैसी वैश्विक टीवी चैनलों पर दुनिया के (ताजा टेक्सास में बाढ़) जो फुटेज दिखते हैं, वे सभी के दिलो-दिमाग में सवाल पैदा करते होंगे कि यह हो क्या रहा है? न्यू मेक्सिको में बाढ़, स्विट्ज़रलैंड की पहाड़ियों में भूस्खलन, यूरोप में 44 डिग्री की दोपहर, ऑस्ट्रेलिया के जंगलों में आग, चीन में डूबती सड़कें… हर फुटेज एक ही सवाल पैदा करता है, यह हो क्या रहा है? और जवाब? प्रकृति अब ग़ुस्से में है। और हम? मेरा मानना है कि...

  • पक्षियों पर बढ़ता संकट

    बड़े पंखों वाले पक्षियों, बड़े शरीर वाले पक्षियों और सागर तटीय पक्षियों के अस्तित्व समाप्त होने का खतरा सामान्य पक्षियों की तुलना में अधिक है| वैश्विक  स्तर पर पक्षियों की लगभग 5 प्रतिशत प्रजातियाँ समाप्त होने के कगार पर हैं पर सागर तटीय पक्षियों में से 12 प्रतिशत प्रजातियाँ खतरे में हैं| एक नए अध्ययन के अनुसार पिछले 500 वर्षों के दौरान जितने पक्षी विलुप्त हो चुके, उससे लगभग तीन-गुने अधिक पक्षी अगले 100 वर्षों में विलुप्त हो जाएंगें| वैज्ञानिकों के अनुसार इस विलुप्तिकरण का प्रभाव केवल पक्षियों पर ही नहीं पड़ेगा बल्कि पूरा पारिस्थितिकीतंत्र इससे प्रभावित होगा| इस अध्ययन...

  • संकट का सबको पता पर समाधान क्या?

    आने वाला समय दावानलों, तूफानों और चक्रवातों का समय है। आज हिम और बर्फ की पर्ते ह्रासग्रस्त हैं। धरती का रक्षा कवच दरक रहा है। कार्बन उत्सर्जन के शमन के व्यापक और जरूरी उपाय नहीं बरते जा रहे हैं। महासागरीय कन्वेयर बेल्ट भी तड़क रहे हैं। धरती की हरारत आहिस्ता-आहिस्ता बुखार में तब्दील हो रही है। डॉ. सुधीर सक्सेना संकट सघन है और उसकी भयावहता को वैज्ञानिक और पर्यावरणविद बूझ भी रहे हैं। संयुक्त राष्ट्र संघ भी उसे लेकर सचेत है। यह बात दीगर है कि विभिन्न राष्ट्रों के कानों पर जूं नहीं रेंग रही है और खतरा सघन से...

  • जलवायु परिवर्तन से भी बढ़ती हिंसा?

    एक अध्ययन के अनुसार सामान्य से अधिक तापमान होने पर आत्महत्या की दर बढ़ जाती है| वर्ष 2020 में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार तापमान बढ़ने पर सड़क दुर्घटनाएं, सामाजिक हिंसा, आत्महत्या और पानी में डूबने की घटनाएं बढ़ जाती हैं| अधिक तापमान मनुष्य की सोच को बदलने में सक्षम है और लोग अधिक हिंसक हो जाते हैं| ऐसे समय लोग अपने पर या दूसरों पर शारीरिक हमले भी अधिक करते हैं| जलवायु परिवर्तन और तापमान बृद्धि एक वैश्विक समस्या है, जाहिर है इसका असर भी पूरी दुनिया पर देखा जा रहा है| तापमान बृद्धि के स्वास्थ्य और अर्थव्यवस्था पर...

  • जलवायु परिवर्तन का बतगंड

    climate change : जलवायु का संकट है पर इसे अक्सर वैश्विक जलवायुविदों द्वारा अतिरंजित तरीके से प्रस्तुत किया जाता है। वास्तव में, इस समूह की स्थिति 'भेड़िया आया, भेड़िया आया' कहानी के उस मुख्य पात्र चरवाहे जैसी हो गई है, जिसका अंत में हश्र क्या हुआ था, उसके बारे में सुधी पाठक अवश्य जानते होंगे। जैसे ही कोपरनिकस रिपोर्ट सामने आई, एकाएक स्वयंभू जलवायुविदों ने ‘ग्लोबल वार्मिंग’ को नियंत्रित करने हेतु तुरंत कदम उठाने पर जोर देना शुरू कर दिया। also read: मोदी, अडानी और मोनोपॉली कथा अमेरिका का 47वां राष्ट्रपति बनते ही डोनाल्ड ट्रंप ने जिन दर्जनों कार्यकारी आदेशों पर...

  • अब प्रतीकात्मक भी नहीं

    अमेरिका ने अब प्रतीकात्मक तौर पर भी जलवायु परिवर्तन की चिंता छोड़ दी है। इससे बहुत से दूसरे देश भी इस राह पर चलने को प्रेरित हो सकते हैं। बहरहाल, ट्रंप की नीति से अमेरिका अपने वातावरण को दूषित करने की तरफ बढ़ेगा। डॉनल्ड ट्रंप ने ह्वाइट हाउस में लौटते ही जो फैसले सबसे पहले लिए, उनमें एक जलवायु परिवर्तन पर पेरिस संधि से अमेरिका को निकालने का है। वैसे तो रिपब्लिकन पार्टी के राष्ट्रपतियों का जलवायु संरक्षण संबंधी वचनबद्धताओं से गुरेज नई बात नहीं है, मगर ट्रंप ने इस निर्णय के साथ ही ‘ड्रिल बेबी ड्रिल’ के अपने नारे...

  • खबर एक ही है, सिर्फ एक- मौसम!

    यह 2024 का सत्य है तो सन् 2025 के वर्ष का भी होगा। मीडिया भले नरेंद्र मोदी, डोनाल्ड ट्रंप, पुतिन की सुर्खियों की खबरें देता हुआ हो मगर पृथ्वी नाम के ग्रह के लोग, अलास्का से लेकर न्यूजीलैंड तक, हर मनुष्य अब समय के मौसम की चिंता में हैं। कोई न समझे, न माने लेकिन भारत के लोग भारत छोड़ कर भाग रहे हैं तो ऐसे ही दुनिया के कई इलाकों से लोग अपने जन्म स्थान से दूसरे स्थानों में माग्रेशन से, चोरी-छुपे घुसते हुए हैं। climate change वजह मौसम, सूखे, बाढ़, आबोहवा और परिवेश की अराजकता है। कमाई अर्थात...

  • इसलिए छाया है धुआं

    carbon emissions increase: भारत अब दुनिया प्रति वर्ष सबसे ज्यादा कार्बन उत्सर्जन करने वाला देश बन गया है। भारत का उत्सर्जन चीन की तुलना में 22 गुना तेजी से बढ़ रहा है। इस वर्ष भारत के उत्सर्जन में 4.6 प्रतिशत की बढ़ोतरी का अनुमान लगाया गया है। also read: खतरे की घंटी, दिल्ली प्रदूषण पर सुप्रीम कोर्ट का कड़ा रुख, ग्रैप-4 लागू राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र सहित देश के कई इलाकों में स्माग ने खतरनाक रूप अपना रखा है। अब यह हर साल की कहानी हो गई है- इस सीजन में धुंध और हवा में मौजूद प्रदूषक तत्वों से बना स्मॉग वातावरण...

  • कोई तो सोचे जलवायु परिवर्तन पर?

    नवंबर का महीना शुरू हुआ तो एक आंकड़ा सामने आया कि इस साल का अक्टूबर पिछले सवा सौ साल का सबसे गर्म अक्टूबर रहा। भारतीय मौसम विभाग के मुताबिक 1901 के बाद इस साल यानी 2024 का अक्टूबर महीना औसत और न्यूनतम तापमान के लिहाज से सबसे गर्म अक्टूबर रहा। राजधानी दिल्ली में 1951 के बाद इस साल अक्टूबर में सबसे ज्यादा गर्मी रही। पूरे अक्टूबर में दिल्ली में एक बूंद बारिश नहीं हुई। इसमें संदेह नहीं है कि अक्टूबर के इतना गर्म रहने का कारण वैश्विक तापमान में बढ़ोतरी है। तभी जापान में भी 1898 के बाद इस साल...

  • hot weather: मानसून में जुलाई का यह दिन 84 सालों में सबसे गर्म, सारे रिकॉर्ड टूटे…

    hot weather: मानसून का मौसम चल रहा है. देशभर में मानसून की रिमझिम बारिश हो रही है. लेकिन पिछले कुछ दिनों की बात करें तो मानसून सुस्त चल रहा था. पिछले कुछ दिनों से मानसून में बारिश होने की जगह धूप और गर्मी का मौसम हो रहा था. इसका मुख्य कारण जलवायु परिवर्तन को माना जा रहा है. (hot weather) दुनियाभर में भीषण गर्मी, बाढ़, बेमौसम बरसात जैसी घटनाएं आम हो चुकी हैं. इस बीच वैश्विक स्तर पर तापमान के परिवर्तन पर नजर रखने वाली एजेंसी ने झुलसा देने वाली गर्मी को लेकर आंकड़े जारी किए. पिछले हफ्ते अमेरिका समेत...

  • मानव त्रासदी की यह सदी!

    सैकड़ों लोगों का तीर्थयात्रा के दौरान मरना पैगम्बर की लीला है या मनुष्य की? सोच नहीं सकते कि हज की यात्रा में मक्का-मदीना में भी इतने लोग मरेंगे और ऊपर से सऊदी अरब बताएगा भी नहीं। उसकी बजाय अलग-अलग देशों के विदेश मंत्रालय हज यात्रा में मरे नागरिकों की संख्या बता रहे हैं! और त्रासद सत्य कि मौत की वजह भीषण गर्मी! वह भी उस देश में जो तेल की कमाई से लबालब है और अपने को विकसित बताता है लेकिन गर्मी से बचाव में समर्थ नहीं। पर सवाल यह भी है कि मौसम के मामले में पृथ्वी पर मनुष्य...

  • खाद्य सुरक्षा पर खतरा

    मौसम के बदलते पैटर्न का असर सभी तरह की फसलों पर पड़ रहा है। जलवायु परिवर्तन के कारण इसकी आशंका पहले से थी, लेकिन तब मौसम के मुताबिक खेती को समायोजित करने के उपायों पर ध्यान नहीं दिया गया। दालों के बाद अब गेहूं के दाम में भी तेजी से उछाल की खबर है। चर्चा यहां तक शुरू है गई है कि दालों की तरह भारत में गेहूं के आयात की स्थितियां भी लगातार बनी रह सकती हैं। दालों की उपज लगातार खपत से कम बनी हुई है, जबकि गेहूं के साथ अभी हाल तक यह बात नहीं थी। बल्कि...

  • पर पेट्रोल, कोयला ईधन क्या खत्म होगा?

    सीओपी28 जलवायु सम्मेलन में एक समझौता मंजूर हुआ  है। इसमें दुनिया को तेल, गैस और कोयले जैसे फॉसिल फ्यूल से दूर रहने का स्पष्ट आव्हान है। समझौते के समर्थकों का दावा है कि इससे पहली बार देश फॉसिल फ्यूल्स का उपयोग बंद करेंगे ताकि जलवायु परिवर्तन के भयावह नतीजों से पृथ्वी बच सके। संयुक्त अरब अमीरात के दुबई में हुए इस सम्मेलन में दो हफ्ते जोरदार बहस हुई। अंत में समझौते पर सहमति बनी। जलवायु परिवर्तन के गंभीर प्रभावों से जिन देशों को सबसे ज्यादा खतरा है, उन्होने और यूरोपीय नेताओं  ने समझौते में फॉसिल फ्यूल्स के उपयोग को पूर्णतः...

  • दुबई की सीओपी बैठक में होगा क्या?

    हम अपनी पृथ्वी का क्या बुरा हाल कर रहे हैं, इस बारे में खतरे की घंटी पेरिस में सन 2015की सीओपी (कांफ्रेंस ऑफ़ पार्टीज) शिखर बैठत में बजा दी गई थी।तब पहली बार दुनिया ने तथाकथित विकास की वजह से जलवायु को हुई हानि की ओर ध्यान दिया। पेरिस सीओपी में अनुमान लगा था कि यदि दुनिया नहीं जागी  और सभी देशों ने आवश्यक नीतिगत फैसले नहीं किए तो सन् 2100 तक ग्लोबल वार्मिंग के कारण तापमान औद्योगिकरण से पहले की तुलना में 3 डिग्री सेंटीग्रेड से भी अधिक बढ़ जाएगा।इसके बावजूद तब कोई ठोस कदम नहीं उठे। बस इतना...

  • करे कोई, भरे कोई

    दुनिया के सबसे धनी एक प्रतिशत लोग उससे भी ज्यादा कार्बन उत्सर्जन के लिए जिम्मेदार हैं, जितना सबसे गरीब 66 फीसदी लोग करते हैं। ये लोग एयरकंडीशंड माहौल में रहते हैं, जबकि उनकी करनी का फल गरीबों को भुगतना पड़ रहा है। दुनिया जलवायु परिवर्तन के गंभीर परिणाम भुगत रही है। संयुक्त राष्ट्र यह ताजा चेतावनी है कि अभी जो रफ्तार है, उससे ही सब कुछ चलता रहा, तो इस सदी के अंत तक धरती का तापमान औद्योगिक युग शुरू होने के समय की तुलना में तीन डिग्री सेल्सियस बढ़ चुका होगा। वैज्ञानिक दशकों से चेतावनी दे रहे हैं कि...

  • दो समझौतों से उम्मीद

    अतीत में बड़े देशों ने जलवायु परिवर्तन को गंभीरता से नहीं लिया, जिसकी भारी कीमत दुनिया को चुकानी पड़ रही है। जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभाव अब वर्तमान पीढी को अपने जीवनकाल में ही भुगतने पड़ रहे हैँ। क्या अब दुनिया इस मसले को गंभीरता से लेगी? अगले 30 नवंबर से दुबई में शुरू होने वाले संयुक्त राष्ट्र जलवायु सम्मेलन से ठीक पहले दो समझौतों से उम्मीद बंधी है कि ग्लोबल वॉर्मिंग को रोकने की दिशा में अब कुछ प्रगति हो सकेगी। इनमें एक समझौता अमेरिका और चीन के बीच हुआ है, जो दुनिया में कार्बन गैसों के सबसे बड़े दो...

  • फेफड़ों की बीमारी में अधिक जोखिम बढ़ा सकता है जलवायु परिवर्तन

    Lung Disease :- एक रिपोर्ट में यह बात सामने आई है कि अस्थमा और क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (सीओपीडी) जैसी फेफड़ों की समस्याओं से पीड़ित बच्चों और वयस्कों को जलवायु परिवर्तन से और अधिक खतरा हो सकता है। यूरोपियन रेस्पिरेटरी जर्नल में प्रकाशित रिपोर्ट इस बात का सबूत पेश करती है कि कैसे जलवायु परिवर्तन के प्रभाव जैसे हीटवेव, जंगल की आग और बाढ़, दुनिया भर के लाखों लोगों, विशेषकर शिशुओं, छोटे बच्चों और बुजुर्गों के लिए सांस लेने में कठिनाई को और बढ़ा देंगे। यूरोपीय रेस्पिरेटरी सोसाइटी के पर्यावरण और स्वास्थ्य समिति के अध्यक्ष प्रोफेसर जोराना जोवानोविक एंडर्सन ने...

  • अब यह नया खतरा

    वैज्ञानिकों की चेतावनी है कि पहले ही ग्लोबल वॉर्मिंग से जूझ रही दुनिया में अल नीनो का असर अधिक घातक हो सकता है। मसलन खाद्य संकट बढ़ने के साथ-साथ इसकी वजह से मलेरिया और डेंगू जैसी बीमारियां भी फैल सकती हैं। दुनिया अब तक कोरोना महामारी और यूक्रेन युद्ध के असर से नहीं उबरी है। ये घटनाएं खाद्य संकट और महंगाई का कारण बनीं। इसी बीच अब खबर है कि मौसमी परिघटना अल नीनो प्रभाव का असर धीरे-धीरे बढ़ रहा है। वैज्ञानिकों के मुताबिक इसके कारण आने वाले महीनों में तापमान बहुत अधिक रहेगा और मौसमी आपदाओं की संख्या भी...

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