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  • लोक लुभावन घोषणाओं का भविष्य क्या है?

    पांच राज्यों के चुनाव नतीजों की कई अलग अलग पहलुओं से व्याख्या हो चुकी है। नतीजों से उठा गुबार थमने के बाद सभी मुद्दों और पार्टियों की ओर से किए तमाम राजनीतिक उपायों पर बात हुई है। लेकिन ऐसा लग रहा है कि लोक लुभावन घोषणाओं का मुद्दा पीछे छूट गया है। पांच राज्यों के चुनाव नतीजों में एक मध्य प्रदेश के छोड़ दें, जहां भाजपा की जीत का श्रेय मुख्य रूप में लाड़ली बहना योजना को दिया जा रहा है तो बाकी चार राज्यों के नतीजों में मुफ्त की चीजें या सेवाएं बांटने की घोषणाओं का असर नहीं देखा...

  • मुफ्त की घोषणाओं का नेक्स्ट लेवल

    पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में पार्टियों के बीच मुफ्त की घोषणा करने की होड़ मची है। तीन पार्टियां मुख्य रूप से चुनाव में हैं। तीन राज्यों- राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस और भाजपा के बीच सीधा मुकाबला है, जबकि तेलंगाना में कांग्रेस और भारत राष्ट्र समिति के बीच मुकाबला है और भाजपा तीसरा कोण बनाने की कोशिश कर रही है। मिजोरम में दोनों राष्ट्रीय पार्टियां हाशिए में हैं और मुकाबला सत्तारूढ़ मिजो नेशनल फ्रंट और दूसरी प्रादेशिक पार्टी जोराम पीपुल्स मूवमेंट के बीच है। पूर्वोत्तर के मिजोरम को छोड़ें तो बाकी चार राज्यों में तीनों पार्टियां मतदाताओं...

  • भारत में कसौटी पर चुनावी रेवड़ियां…!

    भोपाल। भारत में लोकतंत्र चाहे 75 साल का बूढ़ा हो गया हो किंतु इसके अपना चुनावी रेवड़ियां बांटने का फैसला बदला नहीं है, ...और भारत के वोटर...? वे तो इसी संस्कृति के आदी हो गए हैं। राजनीतिक दल व उसके नेता जनता के सामने लोकलुभावन वादों की सूची के साथ आते हैं और नतीजे आने के बाद यह विश्लेषण होने लगता है कि जीत-हार में किन वाद की क्या भूमिका रही। कर्नाटक जीत से उत्साहित कांग्रेस ने राजस्थान और मध्य प्रदेश में आगामी चुनाव से 6 महीने पहले ही एसे वादों की फेहरिस्त जारी कर दी है। दुविधा यह है...

  • बुद्धीनाशी राजनीति से रैवडियों का जंजाल!

    मैं सर्वशिक्षा अभियान, मनरेगा, खाद्य सुरक्षा गारंटी, फ्री बिजली जैसी योजनाओं का विरोधी रहा हूं। इसलिए क्योंकि मेरा शुरू से मानना रहा है कि भारत की सत्ता का चरित्र भ्रष्ट था, है और रहेगा। नेहरू हो या इंदिरा गांधी या राजीव गांधी सभी की नियत जनहितैषी थी। लेकिन सैकड़ों सालों से जब भारत के सत्ता चरित्र में लूट, भूख और भ्रष्टाचार के डीएनए है तो संभव नहीं जो मुफ्तखोरी में जनता कम खाए और अफसर मलाई चाटे। जनता ठगी नहीं जाए। तभी पंडित नेहरू भी समाजवाद के झुनझुनों से जनता को राशन बांटते हुए थे तो नरेंद्र मोदी भी बांटते...