Germany

  • जर्मनी भी करवट लेता हुआ!

    Germany state elections: करीब एक हफ्ते पहले, जर्मनी के पश्चिमी शहर जूलिंगन में एक स्थानीय उत्सव के दौरान कई लोगों को चाकूबाजी का शिकार बनाए जाने से देश में हंगामा मचा था। इस घटना में तीन लोग मारे गए। कथित अपराधी एक सीरियाई था जो जर्मनी में शरण लेना चाह रहा था। उसे कई महीने पहले जर्मनी से निर्वासित कर दिया जाना चाहिए था। अभियोजक इस घटना को इस्लामिक उग्रवाद से जोड़ रहे हैं। घटना के बाद से शरणार्थियों को देश से निकाल बाहर करने एवं शरण देने संबंधी कानूनों को कड़ा बनाने की मांग बड़े पैमाने पर उठने लगी।...

  • ओलिंपिक के बाद बहस

    क्या पेरिस ओलिंपिक में पिछड़ने पर अपने देश में किसी गंभीर चर्चा का संकेत है? उलटे सरकारी नैरेटिव यह है कि पहले से प्रगति हुई है। अब सरकार और ज्यादा शक्ति लगाएगी। खेल ढांचे में खामियों की कहीं चर्चा नहीं है। पेरिस ओलिंपिक खेलों में जर्मनी के खिलाड़ियों ने कुल 33 पदक जीते- 12 स्वर्ण पदक, 13 रजत और आठ कांस्य पदक। टोक्यो ओलिंपिक से तुलना करें, तो जर्मनी ने दो ज्यादा गोल्ड मेडल जीते। इसके बावजूद देश में मायूसी है। सार्वजनिक चर्चाओं में विचार का प्रमुख मुद्दा यह बना है कि देश पदक तालिका में एक पायदान नीचे क्यों...

  • दुनिया सब देखती है

    बुनियादी सवाल यह है कि आज दुनिया को भारत में लोकतंत्र की हालत पर चिंता जताने का मौका क्यों मिल रहा है? भारत ने दुनिया में अपना जो सॉफ्ट पॉवर बनाया था, आज वह अपनी साख क्यों खोने लगा है?  यह निर्विवाद है कि हर देश किसी दूसरे देश की अंदरूनी हालत के बारे में टिप्पणी अपने भू-राजनीतिक हितों को ध्यान में रखकर ही करता है। इसलिए बहुत-से मामलों पर बहुत-से देश चुप रहते हैं या मद्धम टिप्पणी करते हैँ। लेकिन इसका अर्थ यह नहीं होता कि बाकी दुनिया किसी देश के अंदर क्या हो रहा है, उससे नावाकिफ रहती...

  • मुंहदेखे रुख से मुश्किल

    केजरीवाल की गिरफ्तारी पर अमेरिकी टिप्पणी के बाद उसके प्रति भारत का संभावित रुख चर्चा में आ गया है। अपेक्षा यह होगी कि ऐसे मसलों पर भारत सरकार एक सुसंगत, स्पष्ट और सुपरिभाषित नजरिया अपनाए। मुंहदेखा रुख ठीक नहीं है। यह सवाल चर्चा में है कि दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की गिरफ्तारी पर अमेरिकी टिप्पणी पर भारत की प्रतिक्रिया कैसी रहेगी। भारत सरकार के रुख को लेकर यह शिकायत गहराती चली गई है कि वह समान मुद्दे पर अलग-अलग देशों की टिप्पणियों पर अलग प्रतिक्रिया दिखाती है। इससे सवाल खड़ा हुआ है कि क्या घरेलू मसलों और भारत की...

  • जर्मन रुझान के सबक

    यह आम अनुभव है कि मुख्यधारा वाले यानी मध्यमार्गी लोग जो सामान्यतः खुद को किसी चरमपंथ या किसी खास विचारधारा से संबंधित नहीं मानते, अगर वे दक्षिणपंथी चरमपंथी नजरिया अपनाने लगें, तो लोकतंत्र खतरे में पड़ जाता है। मुश्किलों भरे वक्त में लोग राजनीतिक रूप से सक्रिय हो जाते हैं और नया रुख अख्तियार करते हैं। उस समय लोगों को धुर दक्षिणपंथ यानी नफरत के एजेंडे की तरफ खींचा जा सकता है। यह तो आम अनुभव है कि मुख्यधारा वाले यानी मध्यमार्गी लोग जो सामान्यतः खुद को किसी चरमपंथ या किसी खास विचारधारा से संबंधित नहीं मानते, अगर वे दक्षिणपंथी...

  • राहुल मामले में जर्मनी को लेकर विवाद

    यह आम अनुभव है कि मुख्यधारा वाले यानी मध्यमार्गी लोग जो सामान्यतः खुद को किसी चरमपंथ या किसी खास विचारधारा से संबंधित नहीं मानते, अगर वे दक्षिणपंथी चरमपंथी नजरिया अपनाने लगें, तो लोकतंत्र खतरे में पड़ जाता है। मुश्किलों भरे वक्त में लोग राजनीतिक रूप से सक्रिय हो जाते हैं और नया रुख अख्तियार करते हैं। उस समय लोगों को धुर दक्षिणपंथ यानी नफरत के एजेंडे की तरफ खींचा जा सकता है। यह तो आम अनुभव है कि मुख्यधारा वाले यानी मध्यमार्गी लोग जो सामान्यतः खुद को किसी चरमपंथ या किसी खास विचारधारा से संबंधित नहीं मानते, अगर वे दक्षिणपंथी...

  • राहुल गांधी के लोकसभा से निलंबन पर अमेरिका के बाद जर्मनी की टिप्पणी

    यह आम अनुभव है कि मुख्यधारा वाले यानी मध्यमार्गी लोग जो सामान्यतः खुद को किसी चरमपंथ या किसी खास विचारधारा से संबंधित नहीं मानते, अगर वे दक्षिणपंथी चरमपंथी नजरिया अपनाने लगें, तो लोकतंत्र खतरे में पड़ जाता है। मुश्किलों भरे वक्त में लोग राजनीतिक रूप से सक्रिय हो जाते हैं और नया रुख अख्तियार करते हैं। उस समय लोगों को धुर दक्षिणपंथ यानी नफरत के एजेंडे की तरफ खींचा जा सकता है। यह तो आम अनुभव है कि मुख्यधारा वाले यानी मध्यमार्गी लोग जो सामान्यतः खुद को किसी चरमपंथ या किसी खास विचारधारा से संबंधित नहीं मानते, अगर वे दक्षिणपंथी...

  • भारत और जर्मनी साथ साथ हैं

    यह आम अनुभव है कि मुख्यधारा वाले यानी मध्यमार्गी लोग जो सामान्यतः खुद को किसी चरमपंथ या किसी खास विचारधारा से संबंधित नहीं मानते, अगर वे दक्षिणपंथी चरमपंथी नजरिया अपनाने लगें, तो लोकतंत्र खतरे में पड़ जाता है। मुश्किलों भरे वक्त में लोग राजनीतिक रूप से सक्रिय हो जाते हैं और नया रुख अख्तियार करते हैं। उस समय लोगों को धुर दक्षिणपंथ यानी नफरत के एजेंडे की तरफ खींचा जा सकता है। यह तो आम अनुभव है कि मुख्यधारा वाले यानी मध्यमार्गी लोग जो सामान्यतः खुद को किसी चरमपंथ या किसी खास विचारधारा से संबंधित नहीं मानते, अगर वे दक्षिणपंथी...

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