अंजन सकल पसारा रे, राम निरंजन न्यारा रे
क्या आज मतिभ्रम का समय है? ईश्वरवादी तो आज भीड़तंत्र में भरे पड़े हैं और अनीश्वरवादी अध्यात्म पढ़ा रहे हैं। नई पीढ़ी को कुमार गंधर्व के स्वर-संगीत से तुलसी, कबीर और गांधी के विचारों को आज समझना आसान रहेगा। आज जो अंजन का पसारा है वह सत्ता आकांक्षा का ही काजल है। निरंतर तो केवल राम निरंजन ही है। लोक इतिहास निरंजन है तो सत्ता इतिहास अंजन। कुमार गंधर्व के अद्भुत स्वर-संगीत से अपने-अपने राम को खोजिए। देश के कुछ हिस्सों में नवमीं पर हुई हिंसा में राम और रामभक्तों को कैसे देखा जाए? राम जन्म के उत्सव पर हिंसा...