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22-05-2025 Vol 19

हिंदूफोबिया खत्म कराना जरूरी

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प्रधानमंत्री का अमेरिका दौरा ऐसे समय में हुआ है, जब राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने अमेरिकन-समोअन मूल की हिंदू धर्म मानने वाली तुलसी गबार्ड को डायरेक्टर ऑफ नेशनल इंटेलीजेंस बनाया है। वे सीआईए और एफबीआई से लेकर एनएसए तक 18 खुफिया एजेंसियों की प्रमुख बनी हैं। राष्ट्रपति ट्रंप ने भारतीय मूल के काश पटेल को एफबीआई का प्रमुख बनाया है। उप राष्ट्रपति जेडी वेंस की पत्नी उषा चिलकुरी भारत के आंध्र प्रदेश की रहने वाली हैं, जिन्हें उप राष्ट्रपति वेंस अपना आध्यात्मिक गुरू और मार्गदर्शक भी मानते हैं। भारतीय मूल के विवेक रामास्वामी को ट्रंप ने इलॉन मस्क के साथ डीओजीआई में शामिल किया था। हालांकि रामास्वामी अब उससे अलग हुए हैं और ओहियो राज्य के गर्वनर बनने की जुगाड़ है। सो  ट्रंप प्रशासन में भारतीय मूल के और हिंदू धर्म मानने वालों की तूती है। अमेरिका की तमाम तकनीकी महाशक्ति कंपनियों के प्रमुख भारतीय मूल के हिंदू लोग हैं।

दूसरी ओर यह ऐसा समय है, जब ब्रिटेन से लेकर अमेरिका और यूरोप में हिंदूफोबिया की भी चर्चा है। हिंदुओं के प्रति नस्ली घृणा और अपराध बढ़े हैं। उनके बारे में यह धारणा बनी है कि वे अमेरिकी लोगों की नौकरियां और रोजगार खा रहे हैं। यह धारणा पिछले कुछ समय में भारतीयों के अवैध रूप से अमेरिका में घुसने की कोशिशों के कारण भी बनी है तो कनाडा से लेकर ब्रिटेन और अमेरिका तक में कट्टरपंथी सिख संगठनों के प्रचार से भी बनी है। कट्टरपंथी सिख संगठन भारत सरकार को अल्पसंख्यक विरोधी साबित करने में लगे हैं। इसका असर वहां आम जनमानस पर भी हुआ है। एक तरफ भारतीय मूल के लोगों का बढ़ता दबदबा है तो दूसरी ओर उनको लेकर बढ़ती नफरत और उग्रता है। तभी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को राष्ट्रपति ट्रंप के दूसरे कार्यकाल में भारतीयों के वर्चस्व और अमेरिका के साथ कारोबारी संबंधों में सुधार के जरिए हिंदूफोबिया की धारणा को खत्म करने की कोशिश करनी चाहिए।

प्रधानमंत्री ने इस बार अमेरिका दौरा तुलसी गबार्ड से मुलाकात से शुरू किया है। गौरतलब है कि दोनों के संबंध 2014 से बहुत अच्छे हैं। प्रधानमंत्री मोदी को तुलसी गबार्ड ने उसी समय अपनी निजी भगवद्गीता भेंट की थी। इसी भगवद्गीता पर हाथ रख कर उन्होंने अमेरिकी कांग्रेस की सदस्यता ली थी। बाद में उनकी शादी में प्रधानमंत्री मोदी ने अपने प्रतिनिधि के तौर पर राम माधव को भेजा था। माधव ने वहां शादी के मंच पर प्रधानमंत्री मोदी का संदेश पढ़ा था और उनकी ओर से भेंट दी थी। मोदी ने पश्मीन शॉल और कुछ अन्य चीजें उपहार में भेजी थीं। मोदी ने उनको हनीमून के लिए ‘देवों की धरती’ पर आने का न्योता भी दिया था। अब तुलसी गबार्ड के इतने अहम जगह जाने का फायदा भारत को मिल सकता है। अमेरिकी खुफिया एजेंसियों के लिए भारतीयों खास कर हिंदुओं के प्रति धारणा बदलने में समस्या नहीं होगी।

भारत तुलसी गबार्ड और काश पटेल जैसे दो पावरफुल लोगों की मदद से दो लक्ष्य हासिल कर सकता है। पहला तो हिंदुओं के बारे में बन रही धारणा को बदलने में कामयाबी हासिल कर सकता है और दूसरा भारत विरोधी ताकतों को काबू में करना।  गौरतलब है कि अमेरिका, कनाडा, ब्रिटेन और यूरोप के कई देशों में कट्टरपंथी खालिस्तानी ताकतें भारत विरोधी गतिविधियों में शामिल हैं। इतना ही नहीं भारत से भाग कर दर्जनों गैंगेस्टर अमेरिका या कनाडा में पनाह लिए हुए हैं। इनकी वजह से भारत की बदनामी है। भारत को चाहे जैसे भी हो इस धारणा को बदलना होगा कि भारत के अप्रवासी भी मेक्सिको या लैटिन अमेरिकी देशों के प्रवासियों की तरह हैं। लैटिन अमेरिकी या अफ्रीकी या एशियाई देशों के दूसरे प्रवासियों के मुकाबले भारतीय अमेरिका की अर्थव्यवस्था में और तकनीक के क्षेत्र में बड़ी भूमिका निभाते हैं। अमेरिका में भारतीय अप्रवासियों का गुणात्मक योगदान है, जबकि बाकी देशों के प्रवासियों का सिर्फ संख्यात्मक योगदान है। सुरक्षा को लेकर जो भी चिंता अमेरिका में प्रवासियों के कारण है उसमें भारतीयों की भूमिका नगण्य है।

हरिशंकर व्यास

मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक और पत्रकार। नया इंडिया समाचारपत्र के संस्थापक-संपादक। सन् 1976 से लगातार सक्रिय और बहुप्रयोगी संपादक। ‘जनसत्ता’ में संपादन-लेखन के वक्त 1983 में शुरू किया राजनैतिक खुलासे का ‘गपशप’ कॉलम ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ तक का सफर करते हुए अब चालीस वर्षों से अधिक का है। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम की प्रस्तुति। सप्ताह में पांच दिन नियमित प्रसारित। प्रोग्राम कोई नौ वर्ष चला! आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों की बारीकी-बेबाकी से पडताल व विश्लेषण में वह सिद्धहस्तता जो देश की अन्य भाषाओं के पत्रकारों सुधी अंग्रेजीदा संपादकों-विचारकों में भी लोकप्रिय और पठनीय। जैसे कि लेखक-संपादक अरूण शौरी की अंग्रेजी में हरिशंकर व्यास के लेखन पर जाहिर यह भावाव्यक्ति -

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