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डीयू में ‘भारतीय भक्ति परंपरा’ पर आधारित अंडर ग्रैजुएट पाठ्यक्रम

Undergraduate Course :- दिल्ली विश्वविद्यालय में ‘भारतीय भक्ति-परंपरा और मानव मूल्य’ पर आधारित एक अंडर ग्रैजुएट पाठ्यक्रम शुरू किया गया है। यह पाठ्यक्रम न केवल मानविकी बल्कि इंजीनियरिंग, साइंस और मैनेजमेंट के छात्रों के लिए भी उपलब्ध होगा। विश्वविद्यालय के डीन, प्लानिंग प्रोफेसर निरंजन कुमार के मुताबिक इसमें भक्ति, चिंतन, व्यवहार और मानवता के मूल्यों का प्रकाशन है। दिल्ली विश्वविद्यालय के मुताबिक यह एक अखिल भारतीय पाठ्यक्रम है, जिसे दिल्ली विश्वविद्यालय में भी अपनाया गया है। भारत के कुछ प्रमुख भक्त और उनके विचार इसमें शामिल किए गए हैं। 

इसे दिल्ली विश्वविद्यालय की वैल्यू एडिशन कोर्स कमेटी ने डिजाइन किया है। पाठ्यक्रम में संत तिरुवल्लुवर आण्डाल, अक्कमहादेवी, ललद्यद, मीराबाई, तुलसीदास, कबीरदास, रैदास, गुरु नानक, सूरदास, जायसी, तुकाराम, नामदेव, नरसिंह मेहता, वेमना, कुंचन, नम्बियार, चैतन्य महाप्रभु, चंडीदास, सारला दास, शंकरदेव शामिल हैं। इस विषय पर गुरुवार को दिल्ली विश्वविद्यालय में एक कार्यशाला भी आयोजित की गई। वैल्यू एडिशन कोर्स कमेटी के प्रोफेसर निरंजन के मुताबिक भक्ति एक चिंतन है, यह वह व्यवहार है, जिसमें लोकतांत्रिक, समानता और मानवता के मूल्यों का प्रकाशन हुआ। यही नहीं यह राष्ट्रीय एकता की भी सूत्रधार रही है। 

यह आयोजन दिल्ली विश्वविद्यालय के केशव महाविद्यालय में हुआ। इसमें भारत विकास परिषद के सुरेश जैन व इग्नू के कुलपति प्रो. किरण हज़ारिका भी शामिल हुए। प्रोफेसर निरंजन ने ‘भारतीय भक्ति-परंपरा और मानव मूल्य’ विषय का परिचय प्रस्तुत करते हुए कहा कि हमें अपने इतिहास को जानना चाहिए और जो इतिहास को नहीं जानता है, वह अपने भविष्य को नहीं समझ सकता। भक्ति ने सामान्य जन को जीवन में लोकतांत्रिक अधिकार और भागीदारी दी, जो उन्हें आधुनिक काल में संविधान ने दिया। उन्होंने कहा कि भक्ति साधना है, एक चिंतन है, वह व्यवहार है, जिसमें लोकतांत्रिक, समानता और मानवता के मूल्यों का प्रकाशन हुआ। यही नहीं भक्ति राष्ट्रीय एकता की भी सूत्रधार रही है। 

प्रोफेसर किरण हज़ारिका ने नई शिक्षा नीति के उद्देश्यों को रेखांकित किया। उनके अनुसार दिल्ली विश्वविद्यालय का यह मूल्य संवर्धन पाठ्यक्रम आज की शिक्षा-पद्धति के लिए अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। भारतीय ज्ञान को पाठ्यक्रम से जोड़ना परम आवश्यक बताते हुए उन्होंने चाणक्य और आर्य भट्ट आदि को विद्यार्थियों से परिचित और उनके योगदान से अवगत करवाना आवश्यक बताया। सुरेश जैन ने प्राचीन और मध्यकालीन भारत के विविध प्रसंगों का उल्लेख करते हुए कहा कि भारतीयों को अपने इतिहास से जुड़ना आवश्यक है, क्योंकि उसी में भविष्य की उज्ज्वल संभावना निहित है। संस्कार हमारे जीवन मूल्यों और साथ ही शिक्षा के केंद्र होने चाहिए। भक्ति परंपरा इस देश के गुरुओं के आस-पास केंद्रित है। भक्ति से संस्कार निर्माण और संस्कार से राष्ट्र निर्माण संपन्न हो सकेगा। (आईएएनएस)

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By NI Desk

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