nayaindia Caste Census आज का सामाजिक सच

आज का सामाजिक सच

ओबीसी अस्मिता का उभार अब गुजरे जमाने की बात हो चुका है। इस बीच खुद ओबीसी के अंदर विभिन्न जातीय अंतर्विरोध तीखा रूप ले चुके हैं। दूसरी तरफ ओबीसी अस्मिता का दलित-आदिवासी समूहों के साथ टकराव खड़ा हुआ है।

तीन हिंदी भाषी राज्यों के चुनाव नतीजों से साफ है कि जातीय अस्मिता को अपनी चुनावी रणनीति का आधार बनाने की कांग्रेस की रणनीति उसे बहुत महंगी पड़ी। ऐसा इसलिए हुआ, क्योंकि यह रणनीति आज की सामाजिक हकीकत की नासमझी पर आधारित है। इसमें इस समझ का अभाव है कि 1990 के दशक में हुआ ओबीसी अस्मिता का उभार अब गुजरे जमाने की बात हो चुका है। इस बीच खुद ओबीसी के अंदर विभिन्न जातीय अंतर्विरोध तीखा रूप ले चुके हैं। दूसरी तरफ ओबीसी अस्मिता का दलित-आदिवासी समूहों के साथ टकराव खड़ा हुआ है। निहितार्थ यह कि अब ओबीसी गोलबंदी की बात करने पर टकराव सिर्फ सवर्ण जातियों से नहीं उभरता, बल्कि “बहुजन” की जो धारणा एक समय पेश की गई थी, उसमें शामिल कई अन्य समूहों के साथ भी अंतर्विरोध खड़ा हो जाता है। छत्तीसगढ़ के चुनाव नतीजों के सामने आ रहे विश्लेषणों से ये तमाम बातें पुष्ट होती हैँ।

जातीय जनगणना पर जोर देते हुए ओबीसी गोलबंदी की कांग्रेस की रणनीति ने आदिवासी समुदायों को उसके खिलाफ खड़ा कर दिया। वहीं ओबीसी के अंदर चूंकि मुख्यमंत्री कुर्मी समुदाय से आते थे, तो साहू समुदाय के लोगों ने अपने को उपेक्षित महसूस किया। कहा जा रहा है कि आदिवासियों के साथ-साथ इस समुदाय के अधिकांश वोट भी भाजपा को चले गए। ऐसा देश के दूसरे राज्यों में भी देखने को मिला है। तो निष्कर्ष स्पष्ट है। जब ओबीसी या दलित की सामूहिक राजनीतिक अस्मिता ही कमजोर हो चुकी है, तो अन्य उत्पीड़ित अस्मिताओं के साथ मिलकर सवर्ण विरोधी एक बड़ी राजनीतिक अस्मिता बना पाने का अब कोई आधार नहीं बचता। इसके बावजूद कांग्रेस सहित तमाम विपक्षी दलों का ऐसी गोलबंदी से उम्मीद जोड़े रखना यही बताता है कि जमीन से उनका संबंध टूट चुका है। उनकी ये अल्पदृष्टि इन समुदायों को बड़ी हिंदू पहचान के अंदर समेटने की भाजपा की कोशिश में सहायक बनी है। अपनी इसी रणनीति के तहत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा है कि वे सिर्फ चार जातियों- किसान, मजदूर, महिला और गरीब- को जानते हैं। मतलब यह कि अब भाजपा की रणनीति वर्गीय पहचान को भी हिंदुत्व के अंदर समाहित करने की है।

Tags :

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

और पढ़ें