रिपोर्ट साल 2000 से 2022 तक के रोजगार ट्रेंड की कहानी बताती है। ये वह काल है, जिसमें भाजपा के पास 12 साल और कांग्रेस 10 साल सत्ता में रही। इसलिए यह कहानी दलगत दायरों से उठकर नीतिगत दायरों में पहुंच जाती है।
भारत में रोजगार की स्थिति के बिगड़ते जाने का सिलसिला लंबा हो गया है। अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन और इंस्टीट्यूट ऑफ ह्यूमन डेवलपमेंट की ताजा रिपोर्ट इस बात की तस्दीक करती है। इसे आधिकारिक आंकड़ों को लेकर तैयार किया गया है। इसलिए सरकार इसके निष्कर्षों का खंडन नहीं कर सकती। यह रिपोर्ट साल 2000 से 2022 तक के रोजगार ट्रेंड की कहानी बताती है।
ये वह काल है, जिसमें सत्ता की कमान भाजपा के पास 12 साल और कांग्रेस के पास 10 साल रही है। इसलिए यह कहानी दलगत दायरों से उठकर नीतिगत दायरों में पहुंच जाती है। वैसे यह गौरतलब है कि इसमें रोजगारी भागीदारी का पैमाना वही रखा गया है, जो मोदी सरकार ने तय किया है।
और इस पैमाने पर विभिन्न वर्गों की श्रम भागीदारी दर 2022 में 2000 की तुलना में कम थी। रिपोर्ट में यह अत्यंत चिंताजनक आंकड़ा बताया गया है कि भारत में बेरोजगार लोगों के बीच नौजवानों का हिस्सा 83 प्रतिशत है। माध्यमिक और उच्चतर शिक्षा प्राप्त नौजवानों में बेरोजगारी दर 2000 में 35.2 प्रतिशत थी, जो आज 65.7 प्रतिशत तक पहुंच चुकी है।
रिपोर्ट में कहा गया है- बीते दो दशकों में कुछ विरोधाभासी संकेत देखे गए हैँ। कुछ अवधियां ऐसी रहीं, जब गैर-कृषि रोजगार पहले की तुलना मे अधिक तीव्र गति से बढ़ा। लेकिन दीर्घकालिक रुझान गैर-कृषि रोजगार में अपर्याप्त वृद्धि का रहा है। इस तरफ ध्यान खींचा गया है कि देश में आज भी लगभग 90 प्रतिशत कर्मी अनौपचारिक क्षेत्र में काम कर रहे हैं। औपचारिक रोजगार में 2000 के बाद वृद्धि शुरू हुई थी, लेकिन 2018 के बाद इसमे गिरावट आ गई।
नतीजा यह है कि देश में आजीविका असुरक्षा व्यापक रूप से फैली हुई है। चंद श्रमिक ही ऐसे हैं, जिन्हें सामाजिक सुरक्षाएं हासिल हैं। रिपोर्ट में उच्च शिक्षा प्राप्त बेरोजगारों की दुर्दशा की भी खास चर्चा की गई है। तो कुल मिलाकर इस रिपोर्ट ने वही बताया है, जो रोजमर्रा का अनुभव है। समस्या यह है कि वर्तमान सरकार हकीकत के उलट कहानी बताने के प्रयासों में जुटी रहती है। मगर हकीकत है कि वह उभर कर सामने आ ही जाती है।