इस्लामी नेताओं के बयानों को इजराइल ठेंगे पर रखता है। संभवतः इसे दिखाने के लिए ही उसने सोमवार को गजा में भयंकर बमबारी की। साथ ही गजा पर कब्जा करने के लिए जमीनी हमले की शुरुआत उसने कर दी।
कतर की राजधानी दोहा पर नौ सितंबर को हुए इजराइली हमले पर विरोध जताने के लिए इस्लामी सहयोग संगठन (ओआईसी) और अरब देशों के नेता कतर पहुंचे। सोमवार को हुई बैठक में ज्यादातर नेताओं ने इजराइल के खिलाफ कड़े शब्दों का इस्तेमाल किया। कहा कि अब सिर्फ जुबानी निंदा से काम नहीं चलेगा। इजराइल हर हदें पार चुका है, इसलिए उसके खिलाफ ठोस कदम उठाने होंगे। बैठक के पहले जिन कदमों की चर्चा थी, उनमें इजराइल से हर तरह के आर्थिक संबंध तोड़ना और यहां तक कि उसे आतंकवादी देश घोषित करना भी शामिल है। मगर ऐसा हुआ कुछ नहीं। अंत में जारी साझा बयान में दोहा पर हमले और पूरे पश्चिम एशिया क्षेत्र में अस्थिरता पैदा करने के लिए इजराइल की निंदा भर ही की गई। जबकि इजराइल ऐसे बयानों को ठेंगे पर रखता है।
संभवतः इसे दिखाने के लिए ही उसने सोमवार को गजा में भयंकर बमबारी की। साथ ही गजा पर कब्जा करने के लिए जमीनी हमले की शुरुआत उसने कर दी। जब इस्लामिक देशों के नेता दोहा में थे, उसी समय अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रुबियो इजराइल पहुंचे। वहां उन्होंने ना सिर्फ इजराइल की ‘सुरक्षा’ के प्रति अमेरिका की वचनबद्धता दोहराई, बल्कि गजा पर कब्जा करने की इजराइली योजना को भी समर्थन दिया। यह एक पहलू रहा होगा, जिस कारण अरब और इस्लामिक देशों के नेता जुबानी जंग से आगे नहीं बढ़ पाए। आखिर अमेरिकी मंशा के खिलाफ जाने की हिम्मत तो वे नहीं दिखा सकते, जिससे उनके गहरे स्वार्थ बंधे हुए हैँ।
इस बीच यह साफ है कि अमेरिका ने अपनी पश्चिम एशिया नीति में आमूल परिवर्तन कर दिया है। ट्रंप प्रशासन ने विभिन्न देशों के बीच संतुलन बना कर चलने की नीति छोड़ चुका है। उसने इजराइल पर पूरा दांव लगाने की नीति अपना ली है। उसकी नीति यह है कि पश्चिम एशिया को फिलहाल इतना अस्थिर और वहां की सरकारों को भयभीत कर दिया जाए कि वे इजराइल और परोक्ष रूप से अमेरिका के खिलाफ सोचने की हिमाकत भी ना करें। ऐसे में इस्लामी नेता दोहा में जितना बोल गए, उसे भी काफी ही माना जाएगा।