Wednesday

25-06-2025 Vol 19

मूडीज ने आगाह किया

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अर्थव्यवस्था के विकास के जो अनिवार्य पहलू हैं, उनमें सामाजिक शांति, स्वस्थ प्रतिस्पर्धा के अवसर, कानून के राज का पालन, और नियम-कायदों पर अमल सुनिश्चित करने वाली संस्थाओं का निष्पक्षता से काम करना शामिल हैं। इनके बिना अर्थव्यवस्था के विकास की एक भी मिसाल नहीं है।

अंतरराष्ट्रीय रेटिंग एजेंसी मूडी’ज ने सटीक चेतावनी दी है। जिस समय भारत सरकार ने अर्थव्यवस्था की समझ को जीडीपी वृद्धि तक सीमित कर रखा है, मूडी’ज ने कहा है कि विश्व में सबसे तेज आर्थिक वृद्धि के मौजूदा ट्रेंड के लिए भविष्य में जोखिम बढ़ सकते हैं। इसके कारण राजनीतिक हैं। इन पंक्तियों पर गौर कीजिएः ‘सिविल सोसायटी और राजनीतिक असहमति के दायरे में कटौती के साथ-साथ बढ़ रहा सांप्रदायिक तनाव सियासी जोखिम और संस्थानों की गुणवत्ता की कमजोर तस्वीर प्रस्तुत कर रहा है।’ मूडी’ज ने कहा है कि हालांकि बढ़े राजनीतिक ध्रुवीकरण से सरकार के अस्थिर होने की संभावना नहीं है, लेकिन बढ़ रहे राजनीतिक तनाव से जनोत्तेजक नीतियों के कारण बढ़ रहे खतरों का संकेत मिलता है। ऐसे संकेत क्षेत्रीय और स्थानीय प्रशासन के स्तरों पर भी है। यह स्थिति उस समय पैदा हुई है, जब गरीबी, आय की विषमता, शिक्षा और बुनियादी सुविधाओं की उपलब्धता में गैर-बराबरी जैसे सामाजिक जोखिम पहले से मौजूद हैं। उधर पड़ोसी देशों के साथ तनाव बढ़ रहा है।

मूडी’ज ने मणिपुर में जारी हालात का खास जिक्र किया है। यह हकीकत से आंख चुराने की बढ़ती जा रही प्रवृत्ति की ही झलक है कि भारत संबंधी मूडी’ज के आकलन के इस पक्ष को मीडिया के सीमित हिस्से ने ही प्रमुखता से पेश किया। अधिकांश जगहों पर इस “सकारात्मक” बात को सुर्खियों में लाया गया कि भारत की तेज वृद्धि दर फिलहाल बनी रहेगी। बहरहाल, अर्थशास्त्र का कोई सामान्य विद्यार्थी यह जानता है कि वृद्धि दर और विकास कोई अलग-थलग चीज नहीं होती है। अर्थव्यवस्था के विकास के जो अनिवार्य पहलू हैं, उनमें सामाजिक शांति, स्वस्थ प्रतिस्पर्धा के अवसर, कानून के राज का पालन, और नियम-कायदों पर अमल को सुनिश्चित करने वाली संस्थाओं का निष्पक्षता से काम करना शामिल हैं। पूरी दुनिया में एक भी ऐसी मिसाल नहीं है, जहां इन पहलुओं की अनदेखी करते हुए कोई देश अपनी अर्थव्यवस्था को विकसित कर पाया हो। दुखद यह है कि भारत में जो सरकार तेज आर्थिक वृद्धि दर को अपनी यूएसपी बनाए हुई है, उसी के राज में इन तमाम अपेक्षाओं का खुला उल्लंघन हो रहा है।

NI Editorial

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