Wednesday

25-06-2025 Vol 19

बड़ी घोषणा, बड़े सवाल

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reforms in jails: मुख्य मुद्दा यह है कि ये समस्या पैदा ही क्यों हुई है। स्पष्टतः इसकी जड़ें आपराधिक न्याय प्रक्रिया पर अमल से जुड़ी है। प्रश्न है कि क्या पुलिस और जेल व्यवस्था में बुनियादी सुधार के बिना कोई ठोस व्यावहारिक समाधान निकल सकता है?

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विचाराधीन कैदियों की रिहाई

एलान सचमुच बड़ा है। आशा है कि इसके पीछे इरादा भी नेक होगा। इसके बावजूद जिस भावना से घोषणा हुई है, उसके जमीन पर उतर सकने को लेकर कुछ सवाल मौजूद हैं।

एलान यह है कि ऐसे विचाराधीन कैदियों को रिहा किया जाएगा, जो अपनी संभावित सजा का एक तिहाई हिस्सा काट चुके हैं। गृह मंत्री अमित शाह ने धीमी न्याय प्रक्रिया से निपटने के लिए नई पहल की घोषणा की।

उन्होंने दो-टूक कहा कि छोटे अपराधों के आरोप में बंद ऐसे कैदियों को जमानत दी जाएगी, जिन्होंने अपनी संभावित सजा का एक-तिहाई हिस्सा काट लिया है।

इसके पहले राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने पिछले वर्ष संविधान दिवस पर अपने भाषण में जेलों में बढ़ती भीड़ की ओर ध्यान खींचा था। उन्होंने न्याय की ऊंची लागत की समस्या का जिक्र करते हुए शासन की तीनों शाखाओं– कार्यपालिका, न्यायपालिका और विधायिका– से इसका समाधान खोजने की अपील की थी।

समस्या का एक सूत्र सरकार के अपने नजरिए में

बहरहाल, कुछ व्यावहारिक सवाल हैं। मुख्य मुद्दा यह है कि ये समस्या पैदा ही क्यों हुई है। स्पष्टतः इसकी जड़ें आपराधिक न्याय प्रक्रिया पर अमल से जुड़ी है।

प्रश्न है कि क्या पुलिस और जेल व्यवस्था में बुनियादी सुधार के बिना कोई ठोस व्यावहारिक समाधान निकल सकता है? फिर मसले का संबंध न्यायपालिका से भी जुड़ता है।

न्यायपालिका में जजों की भारी कमी और जमानत के मौजूदा धन-आधारित मॉडल का विकल्प ढूंढे बिना उपरोक्त नेक इरादे को अमली जामा पहना सकना कठिन हो सकता है।

दरअसल, आधुनिक न्याय व्यवस्था में जैसाकि कहा जाता है, बेल नियम और जेल अपवाद होना चाहिए। यानी जमानत मिलना सभी मामलों में सामान्य नियम होना चाहिए।

मगर कई ऐसे मामले हैं, जिनमें राजनीतिक मकसदों से व्यक्तियों पर गंभीर इल्जाम मढ़ दिए जाते हैं। वर्तमान सरकार के कार्यकाल में यह चलन ज्यादा ही बढ़ गया है।

ऐसे मामलों का क्या समाधान होगा? यानी समस्या का एक सूत्र सरकार के अपने नजरिए में भी है। कुल नतीजा जेलों में भारी भीड़ है।

सरकारी आंकड़ों के अनुसार 2024 की शुरुआत तक 1,34,799 लोग सुनवाई के इंतजार में जेलों में बंद थे, जिनमें से 11,448 पांच साल से ज्यादा समय से बिना सजा के जेल में हैं।

NI Editorial

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