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सिरे से अस्वीकार्य

विरोध जताने के क्रम में पुलिसकर्मी की धार्मिक पहचान पर हमला किया जाए और वह भी इस तरह कि इस पहचान के आधार पर उसे देश-द्रोही बताने की कोशिश की जाए, तो इसे विभाजक और बीमार सोच का प्रतिबिंब ही कहा जाएगा।

पश्चिम बंगाल के संदेशखली में हुई घटना मानवीय संवेदना को झकझोर देने वाली है। ऐसी घटना के स्थल पर विपक्ष के नेता जाएं, यह लोकतंत्र की सामान्य प्रक्रिया का हिस्सा है। वहां विपक्षी कार्यकर्ता विरोध जताने के लिए इकट्ठे हों, यह भी अपेक्षित ही है। अगर पुलिस अपनी सीमाएं लांघती है, तो उस पर कानून और संविधान के दायरे में रहते हुए विरोध जताने का हक भी सबको है। लेकिन विरोध जताने के क्रम में पुलिसकर्मी की धार्मिक पहचान पर हमला किया जाए और वह भी इस तरह कि इस पहचान के आधार पर उसे देश-द्रोही बताने की कोशिश की जाए, तो इसे विभाजक और बीमार सोच का प्रतिबिंब ही कहा जाएगा। बेशक संदेशखली कांड के सिलसिले में मंगलवार को हुई एक घटना को इसी श्रेणी में रखा जाएगा। वहां एक आईपीएस अधिकारी को विपक्ष के नेता ने खालिस्तानी कह दिया। सिर्फ इस कारण कि अधिकारी सिख हैं और अपने धर्म की मान्यताओं का पालन करते हुए पगड़ी पहनते हैं। इस टिप्पणी पर अधिकारी आहत हुए और सार्वजनिक रूप से अपना आक्रोश जताया, तो उसे एक स्वाभाविक प्रतिक्रिया माना जाएगा।

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यह घटना ये बताती है कि भारत में हर मसले और घटना को धार्मिक रंग देने की सियासत किस खतरनाक हद तक पहुंच गई है। इसने लोगों की सोच को इतना जहरीला बना दिया है कि खुद से अलग मान्यता और पहचान वाले व्यक्ति या समुदाय लोगों को वे सहज ही राष्ट्र और समाज-द्रोही कह डालते हैं। पश्चिम बंगाल में सत्ताधारी तृणमूल कांग्रेस और विपक्षी भारतीय जनता पार्टी के बीच तीखी सियासी होड़ है। मगर इस होड़ में नेता इस तरह अपना विवेक खो दें कि सरकारी आदेश का पालन कर रहे और अपना दायित्व निभा रहे अधिकारी की राष्ट्र निष्ठा पर वे प्रश्न खड़े दें, यह सिरे से अस्वीकार्य है। यह संतोषजनक है कि पश्चिम बंगाल पुलिस ने सार्वजनिक बयान जारी कर इस टिप्पणी की निंदा की है और उचित कानूनी कार्रवाई शुरू करने का एलान किया है। उसकी इस राय से सहज ही सहमत हुआ जा सकता है कि यह टिप्पणी दुर्भावनापूर्ण, नस्लवादी, सांप्रदायिक उत्तेजना फैलाने वाली और एक सांप्रदायिक हरकत है।

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By NI Editorial

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