जेलेन्स्की की पार्टी के एक सांसद ने एक इंटरव्यू में कहा है कि मार्च-अप्रैल 2022 में यूक्रेन और रूस में इस शर्त पर युद्ध खत्म करने पर सहमति बन गई थी कि यूक्रेन नाटो में शामिल नहीं होगा। लेकिन तब पश्चिम ने यूक्रेन को रोक दिया।
पश्चिमी मीडिया में छपी खबरों का संकेत है कि अमेरिका और उसके साथी देश अब यूक्रेन युद्ध से पीछा छुड़ाने जुट गए हैँ। अमेरिका में यह युद्ध इतना अलोकप्रिय हो चुका है कि रिपब्लिकन पार्टी खुलेआम यूक्रेन को कोई मदद देने का विरोध कर रही है। कांग्रेस में उसने इससे संबंधित प्रस्ताव को पारित होने से रोक रखा है। उधर जर्मनी के जाने-माने अखबार बिल्ड ने अपनी एक रिपोर्ट में दावा किया है कि अमेरिका और जर्मनी ने यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदीमीर जेलेन्स्की दबाव बनाने का फैसला किया है, ताकि वे रूस से शांति समझौता करने के लिए तैयार हो जाएं। दोनों देश अब जेलेन्स्की को समझाने की कोशिश करेंगे कि यूक्रेन जो इलाके गवां दिए हैं, उसके लिए उन्हें वापस पा सकना संभव नहीं है। यूक्रेन के लिए अब सबसे अच्छी स्थिति यह है कि वह यथासंभव बेहतर शर्तों के साथ रूस से बातचीत करे। तमाम रणनीतिक विशेषज्ञ बीते कई महीनों से यह बता रहे हैं कि हर व्यावहारिक रूप में यूक्रेन युद्ध हार चुका है। इस वर्ष मध्य में उसने जवाबी हमले का जो दांव चला, वह उलटा पड़ा। अब वहां सैनिकों की कमी हो गई है। दूसरी तरफ रूस ने उससे पांच गुना अधिक सैनिक इकट्ठे कर रखे हैं, जबकि उसने अपने मिलिटरी-इंडस्ट्रियल कॉम्पलेक्स को फिर से खड़ा कर लिया है। युद्ध अर्थव्यवस्था ने उसकी सकल अर्थव्यवस्था को बल प्रदान कर दिया है। तो पश्चिमी देश अब पीछा छुड़ाने के मूड में दिखते हैं। इजराइल-फिलस्तीन के नए संकट ने उनके हाथ और बांध दिए हैं। जाहिर है, जेलेन्स्की उनके इस रुख से आहत हैं। उनकी सर्वेंट ऑफ पीपुल्स पार्टी के सांसद डेविड अरखमिया ने रूस की समाचार एजेंसी स्पुतनिक को दिए इंटरव्यू में कहा है कि मार्च-अप्रैल 2022 में यूक्रेन और रूस में इस शर्त पर युद्ध खत्म करने पर सहमति बन गई थी कि यूक्रेन नाटो में शामिल नहीं होगा। लेकिन तब अमेरिका और ब्रिटेन ने यूक्रेन को रोक दिया। अब ये देश ही हाथ खींच रहे हैँ। ये बातें सच हैं, तो यह उन देशों के लिए एक सबक है, जो बड़ी शक्तियों का मोहरा बनने को तैयार हो जाते हैँ।