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16-05-2025 Vol 19

क्यों बेलगाम हैं अपराध?

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यह सिर्फ अवधारणा नियंत्रण की भाजपा की ताकत है, जिस कारण उलटी हकीकत के बावजूद इस पार्टी की सरकारें बेहतर कानून-व्यवस्था के दावे को अपना कथित यूएसपी बनाए रख पाती हैँ। वरना, हकीकत बिल्कुल ऐसे दावों के विपरीत है।

हत्या, लूट, बलात्कार, साइबर क्राइम- इन सभी अपराधों में लगातार इजाफा होने का सिलसिला थम नहीं रहा है। यह सिर्फ अवधारणा नियंत्रण की भारतीय जनता पार्टी की ताकत है, जिस कारण उलटी हकीकत के बावजूद इस पार्टी की सरकारें बेहतर कानून-व्यवस्था के दावे को अपना कथित यूएसपी बनाए रख पाती हैँ। जबकि खुद सरकारी आंकड़े ऐसे दावों की पोल खोलते हैं। इनमें सबसे आधिकारिक आंकड़े राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की रिपोर्ट से प्राप्त होते हैँ। मसलन, इसी हफ्ते जारी साल 2022 की रिपोर्ट के अनुसार 2021 के मुकाबले 2022 में महिलाओं के प्रति अपराध में चार प्रतिशत का इजाफा हुआ है। गौरतलब है कि ऐसे जुर्म के हर घंटे औसतन करीब 51 एफआइआर दर्ज हुए। उधर देश में हर दिन अपहरण की औसतन 294 से अधिक घटनाएं हुईं। साइबर अपराध के मामलों में भी 2021 के मुकाबले करीब 24.4 फीसदी वृद्धि हुई है। इनमें सबसे ज्यादा फ्रॉड से जुड़े मामले थे। अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के प्रति अपराध में भी वृद्धि दर्ज की गई।

देश में बच्चों के साथ अपराध में भी इजाफा हुआ। 2021 की तुलना में बुजुर्गों के प्रति अपराध में भी नौ फीसद से ज्यादा की बढ़ोतरी हुई। 2022 में अचानक होने वाली मौतों में उसके पिछले साल के मुकाबले 11.6 प्रतिशत का इजाफा हुआ। 2022 में इस तरह से 56,653 लोगों की जान चली गई। इनमें दिल का दौरा पड़ने से मरने वालों की संख्या 32 हजार से ज्यादा है। इन आंकड़ों के मुताबिक देश में आत्महत्या के मामलों में भी करीब चार चार फीसद की वृद्धि हुई। 2022 में 13,000 से ज्यादा छात्र-छात्राओं ने आत्महत्या कर ली। इन आंकड़ों से जाहिर है कि कानून-व्यवस्था में सुधार के तमाम दावे निराधार हैँ। ऐसा सबसे बड़ा दावा उत्तर प्रदेश में किया जाता है। लेकिन असल हाल यह है कि वहां अपहरण के सर्वाधिक मामले दर्ज हुए। इनकी संख्या 16,262 रही। एनसीआरबी के मुताबिक 2022 में उत्तर प्रदेश में महिलाओं के प्रति अपराध के करीब 66 हजार मामले दर्ज किए गए। इसलिए असल विचारणीय प्रश्न यह है कि अपराध थम क्यों नहीं रहे हैं? इसकी जवाबदेही जाहिरा तौर पर सत्ताधारियों पर ही है।

NI Editorial

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