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टिकाऊ शांति का रास्ता?

फिलहाल, गजा के बाशिंदों को बड़ी राहत मिली है। मगर अब अंतरराष्ट्रीय समुदाय के सामने दो-राज्य सिद्धांत के तहत स्वतंत्र फिलस्तीन की स्थापना करवाने की चुनौती है, जिसके बिना कोई समझौता स्थायी शांति नहीं ला पाएगा।

इजराइल और हमास के बीच शांति समझौते के पहले चरण पर सहमति बनने के साथ गज़ा में लड़ाई रुकने की संभावना मजबूत हुई है। यह समझौता अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप की 20 सूत्री शांति योजना के तहत हुआ। इसके मुताबिक इजराइल हमले तुरंत रोकने और गज़ा से अपनी फौज की आंशिक वापसी पर राजी हुआ है। बदले में हमास 20 जिंदा इजराइली बंधकों और 28 बंधकों के शव लौटाएगा। इजराइल उम्र कैद काट रहे 250 से अधिक फिलस्तीनियों को रिहा करेगा। इसके अलावा वह 1,700 उन फिलस्तीनियों को रिहा करेगा, जिन्हें सात अक्टूबर 2023 के बाद से उसने हिरासत में ले रखा है।

इसके बाद क्या होगा, इस पर शांति समझौते के दूसरे चरण में बातचीत होगी। इस दौरान गजा में राजनीति प्रशासन एवं सुरक्षा का नया ढांचा बनाने के सवाल पर वार्ता होगी। इस पर रजामंदी होना ज्यादा मुश्किल हो सकता है। हमास ने कहा है कि ‘राष्ट्रीय स्वतंत्रता और आत्म-निर्णय का अधिकार’ हासिल करने के संकल्प पर वह अडिग है। गज़ा का प्रशासन फिलस्तीनियों के हाथ में रहे, इसे वह सुनिश्चित करेगा। क्या इजराइल इसके लिए राजी होगा? या इस सवाल पर बातचीत टूट जाएगी और फिर से गजा में मानव संहार का नजारा देखने को मिलेगा? ये इस समय सबसे प्रासंगिक प्रश्न हैं। हमास ने टिकाऊ शांति सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी “समझौते के गारंटर” ट्रंप तथा उन अरब- इस्लामी देशों पर डाली है, जिनके हस्तक्षेप से समझौते का पहला चरण संपन्न हो सका।

आम समझ है कि इजराइल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू इस समझौते के लिए तैयार नहीं थे, मगर ट्रंप का दबाव निर्णायक साबित हुआ। ट्रंप ऐसे ही रुख पर कायम रहे, तो शायद बात आगे बढ़ सकेगी। फिलहाल, गजा के बाशिंदों को बड़ी राहत मिली है। इजराइली हमलों में लगभग 67,000 लोग मारे गए। गजा का बुनियादी ढांचा लगभग तबाह हो गया है। अब उसके पुनर्निर्माण और वहां बचे लोगों को नई जिंदगी देने की चुनौती अंतरराष्ट्रीय समुदाय के सामने है। मगर उसके सामने उससे भी बड़ी चुनौती दो-राज्य सिद्धांत के तहत स्वतंत्र फिलस्तीन की स्थापना करवाने की है, जिसके बिना कोई समझौता स्थायी शांति नहीं ला पाएगा।

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By NI Editorial

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