Tuesday

13-05-2025 Vol 19

अस्थिरता को आमंत्रण

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पाकिस्तान की सेना नवाज शरीफ के नेतृत्व में सरकार बनवाने पर आमादा है। लेकिन देश की बहुत बड़ी आबादी की निगाह में उस सरकार की वैधता संदिग्ध रहेगी। इससे पनपने वाले असंतोष का अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है।

पाकिस्तान में जिस तरह से आम चुनाव का आयोजन किया गया, उससे यह साफ है कि वहां के सैन्य नेतृत्व एवं अभिजात्य वर्ग ने साढ़े पांच दशक पहले की घटनाओं से कोई सबक नहीं सीखा है। यह तथ्य है कि अगर तब के शासक समूहों ने चुनावी जनादेश का सम्मान करते हुए शेख मुजीबुर्रहमान को सरकार बनाने दिया होता, तो संभवतः तत्कालीन पश्चिमी और पूर्वी पाकिस्तान का विभाजन नहीं होता। लेकिन सत्ता पर पूरे नियंत्रण के लालच और जिद में शासक समूहों ने वह परिस्थिति पैदा की, जिससे शेख मुजीब और उनकी पार्टी- अवामी लीग को स्वतंत्र बांग्लादेश की मांग उठानी पड़ी। अब वैसे ही लालच और जिद का परिचय सैन्य नेतृत्व और अन्य शासक समूहों ने दिया है। पहले तो उन्होंने देश के सबसे लोकप्रिय नेता इमरान खान और उनकी पार्टी पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) को आम चुनाव से बाहर रखने की हर जुगत लगाई। फिर मतदान के दिन भी बड़े पैमाने पर कथित धांधली की गई। यह बात अंतरराष्ट्रीय पर्यवेक्षकों की टिप्पणियों, अंतरराष्ट्रीय मीडिया की रिपोर्ट और अनेक देशों की सरकारों की प्रतिक्रिया में भी झलकी है।

इसके बावजूद, चुनाव चिह्न छीन लिए जाने के कारण निर्दलीय के रूप में लड़े पीटीआई के उम्मीदवार सबसे ज्यादा संख्या में जीते। इस हकीकत को पूरी तरह नजरअंदाज करते हुए अब सेना की पसंद बन चुके पाकिस्तान मुस्लिम लीग (एन) के नेता नवाज शरीफ ने खुद को विजयी बता दिया। तुरंत ही सेनाध्यक्ष जनरल असीम मुनीर ने उनके दावे को समर्थन का संकेत देने वाला बयान जारी किया। इससे इस धारणा की पुष्टि हुई है कि सेना येन-केन-प्रकारेण नवाज शरीफ के नेतृत्व में सरकार बनवाने पर आमादा है। लेकिन देश की बहुत बड़ी आबादी की निगाह में उस सरकार की वैधता संदिग्ध रहेगी। इससे पनपने और पलने होने वाले असंतोष का अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है। ऐसी परिस्थितियां अक्सर किसी देश को अस्थिरता और राजनीतिक उथल-पुथल की तरफ ले जाती हैं। पाकिस्तान में स्थितियां पहले भी बेहतर नहीं हैं। ऐसे में यही कहा जा सकता है कि व्यापक जन असंतोष के हालात पैदा कर पाकिस्तान के शासक समूह बहुत बड़ा जोखिम मोल ले रहे हैं।

NI Editorial

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