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शर्मिला फिर परदे पर

देश में किसी कलाकार के लिए इससे ज़्यादा फ़ख्र की बात क्या होगी कि उसके फिल्मी सफर की शुरूआत सत्यजीत रे के निर्देशन में हुई थी। शर्मिला टैगोर की पहली फिल्म 1959 की ‘अपूर संसार’ थी और दूसरी 1960 में बनी ‘देवी’ थी। ये दोनों बांग्ला फिल्में सत्यजीत रे ने बनाई थीं। ये दो ही नहीं, शर्मिला की पहली छह फिल्में बांग्ला में थीं। कई साल बाद 1964 में पहली बार शक्ति सामंत ने उन्हें हिंदी में ‘कश्मीर की कली’ में काम दिया। अगले ही साल उन्हें यश चोपड़ा ने ‘वक़्त’ में लिया। उसके बाद तो उनके पास फिल्मों की कोई कमी नहीं रही। वे हृषिकेष मुखर्जी, असित सेन, शक्ति सामंत और चोपड़ा बंधुओं की प्रिय अभिनेत्री थीं। सत्यजीत रे ने उनसे बाद में भी दो फिल्मों में काम करवाया। ‘अनुपमा’, ‘देवर’, ‘आराधना’, ‘सफर’, ‘अमर प्रेम’, ‘सत्यकाम’, ‘दाग’, ‘चुपके चुपके’ और ‘मौसम’ जैसी फिल्मों से परदे का उनका व्यक्तित्व बढ़ता ही चला गया। दानिश असलम के निर्देशन में बनी ‘ब्रेक के बाद’ उनकी आख़िरी फिल्म थी। इमरान खान और दीपिका पादुकोन की मुख्य भूमिकाओं वाली यह फिल्म 2010 में आई थी।

तब से शर्मिला परदे से दूर हैं और अब 78 साल की हो चुकी हैं। लेकिन पिछले कुछ समय से, खास कर कोरोना के बाद से, कई ऐसे अभिनेता और अभिनेत्रियां फिर परदे पर लौट रहे हैं जिनका लौटना आसान नहीं लगता था। शर्मिला भी तेरह साल बाद ‘गुलमोहर’ में दिखने वाली हैं। डिज़्नी हॉटस्टार पर रिलीज़ होने जा रही इस फिल्म के निर्देशक हैं राहुल चितेला और इसमें शर्मिला को मनोज बाजपेयी की मां की भूमिका मिली है। फिल्म में इस परिवार को दूसरी जगह शिफ्ट होना है। अपने दशकों पुराने घर से दूर होने में बस चार ही दिन बचे हैं। उसके बाद होली है। इन चार दिनों में परिवार के सदस्यों के आपसी रिश्ते, उनकी गहराई, अतीत की उलझनें, क्या कुछ दबा रह गया, क्या छूट गया और परिवार की अहमियत, यह सब सामने आता है। हम जानते हैं कि सचमुच होली आने वाली है। सो, होली से ठीक पहले इसे रिलीज़ किया जा रहा है।

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By सुशील कुमार सिंह

वरिष्ठ पत्रकार। जनसत्ता, हिंदी इंडिया टूडे आदि के लंबे पत्रकारिता अनुभव के बाद फिलहाल एक साप्ताहित पत्रिका का संपादन और लेखन।

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