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गपशप

चीन के कारण चौतरफा घिरा भारत

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भारत सरकार इंडो-तिब्बत सीमा पुलिस यानी आईटीबीपी की सात नई बटालियन बना रही है जिस पर सरकार 18 सौ करोड़ रुपए खर्च करेगी। ध्यान रहे भारत और चीन की सीमा पर सुरक्षा की पहली लाइन आईटीबीपी की होती है। इस सात नई बटालियन में 94 सौ नए जवान होंगे, जो भारत और चीन की सीमा पर तैनात किए जाएंगे। यह सिर्फ एक खर्च है, जो चीन के साथ सीमा पर चल रहे गतिरोध की वजह से बढ़ा है। इसके अलावा वाइब्रेंट विलेज योजना का केंद्र सरकार ने ऐलान किया है। इसमें भारत की सीमा पर, खासतौर से भारत और चीन की सीमा पर बसे 633 गांवों में बुनियादी ढांचे का विकास होगा। इस योजना पर सरकार 48 सौ करोड़ रुपया खर्च करेगी। ये दो योजनाएं पिछले महीने घोषित हुई हैं, जिन पर सरकार 66 सौ करोड़ रुपए खर्च करेगी। दोनों योजनाओं का मकसद भारत और चीन की सीमा पर सुरक्षा सुनिश्चित करना है।

चीन की वजह से भारत का ओवरऑल रक्षा खर्च बढ़ रहा है। नए साल का रक्षा बजट पिछले साल के संशोधित अनुमान से 13 प्रतिशत ज्यादा है। भारत का कुल रक्षा बजट 72.6 अरब डॉलर का है, जबकि चीन का रक्षा बजट 225 अरब डॉलर का है। भारत के मुकाबले तीन गुने से भी ज्यादा। सो, दोनों देशों का कोई मुकाबला नहीं है और यह बात बहुत साफ शब्दों में विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कही है। उन्होंने कहा है कि चीन भारत से बहुत बड़ी अर्थव्यवस्था वाला देश है और भारत उससे नहीं लड़ सकता है। यह सही है कि भारत उससे नहीं लड़ सकता है लेकिन मुकाबले में बने रहने के लिए भारत को रक्षा बजट तो बढ़ाते रहना होगा। भारत को चीन और पाकिस्तान दोनों तरफ से चौकन्ना रहना है। इस वजह से उसे मजबूरी में दुनिया भर के देशों से हथियार खरीदना है। तभी रूस से लेकर अमेरिका और इजराइल सभी से भारत हथियार खरीद रहा है।

चीन ने भारत को चौतरफा घेरा है। भारत को उसने अपना आर्थिक उपनिवेश बना लिया है। भारत और चीन का कारोबार पहली बार एक सौ अरब डॉलर के पार हुआ है, जिसमें भारत का व्यापार घाटा बढ़ कर 70 अरब डॉलर से ज्यादा है। भारत में छोटी विनिर्माण इकाइयां और लघु व मझोले उद्योग बंद हुए हैं और कारोबारी चीन से माल लाकर भारत में बेच रहे हैं। दूसरी ओर सामरिक रूप से चीन ने भारत को चारों तरफ से घेर लिया है। भारत के तमाम पड़ोसी देश चीन की कर्ज कूटनीति के जाल में फंसे हैं। दक्षिण में श्रीलंका से लेकर उत्तर-पश्चिम में पाकिस्तान, नेपाल और पूरब में बांग्लादेश, म्यांमार और भूटान तक सब चीन के कर्ज के जाल में फंसे हैं। चीन उनका मनमाना इस्तेमाल कर रहा है। चीन के जाल में फंसा श्रीलंका उसके जासूसी जहाज को अपने बंदरगाह पर खड़े होने की इजाजत देता है, जिससे वह भारत के परमाणु संयत्रों से लेकर उपग्रह प्रक्षेपण केंद्रों की निगरानी करता है। अभी हाल के आर्थिक संकट में जब अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष ने पाकिस्तान को मदद नहीं दी तो चीन ने उसको मदद दी। पाकिस्तान के कुल 133 अरब डॉलर के कर्ज में 33 अरब डॉलर का कर्ज अकेले चीन का है।

पाकिस्तान और अफगानिस्तान दोनों इस समय चीन की कूटनीति के हिसाब से काम कर रहे हैं। इसकी वजह से भारत को उत्तर व पश्चिम की सीमा पर ज्यादा चौकन्ना रहना पड रहा है। पूर्वी लद्दाख में चीन ने कई पेट्रोलिंग प्वाइंट पर भारत को पीछे किया है। इसे भारत सरकार मान नहीं रही है लेकिन इस बारे में कई रिपोर्ट है और माना जा रहा है कि भारत गश्त की जगहों से पीछे हटा है। उधर अरुणाचल प्रदेश में भी चीन ने दबाव बढ़ाया है। हैरानी की बात है कि भारत इस बात को स्वीकार नहीं कर रहा है, जबकि अमेरिका की संसद में इसे लेकर वहां की दोनों पार्टियों ने प्रस्ताव पेश किया? इसमें कहा गया कि अरुणाचल भारत का हिस्सा है।

अमेरिकी संसद ने अरुणाचल में चीन की आक्रामक नीतियों की निंदा की लेकिन भारत सरकार में कोई चीन की निंदा नहीं कर रहा है। उसने अरुणाचल प्रदेश के 14 गांवों के नाम बदल कर तिब्बती नाम रखे है। गलवान घाटी से लेकर डोकलाम तक उसने भारत की सीमा पर अपना शिकंजा कसा है। पर इस रियलिटी के बावजूद भारत में कोई सोचने-समझने को तैयार नहीं है चीन की वजह से हो रहे बदलावों पर!

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By हरिशंकर व्यास

मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक और पत्रकार। नया इंडिया समाचारपत्र के संस्थापक-संपादक। सन् 1976 से लगातार सक्रिय और बहुप्रयोगी संपादक। ‘जनसत्ता’ में संपादन-लेखन के वक्त 1983 में शुरू किया राजनैतिक खुलासे का ‘गपशप’ कॉलम ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ तक का सफर करते हुए अब चालीस वर्षों से अधिक का है। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम की प्रस्तुति। सप्ताह में पांच दिन नियमित प्रसारित। प्रोग्राम कोई नौ वर्ष चला! आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों की बारीकी-बेबाकी से पडताल व विश्लेषण में वह सिद्धहस्तता जो देश की अन्य भाषाओं के पत्रकारों सुधी अंग्रेजीदा संपादकों-विचारकों में भी लोकप्रिय और पठनीय। जैसे कि लेखक-संपादक अरूण शौरी की अंग्रेजी में हरिशंकर व्यास के लेखन पर जाहिर यह भावाव्यक्ति -

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