nayaindia loksabha election 2024 अभी से चुनाव में सरकार!

अभी से चुनाव में सरकार!

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में पार्टी के नेताओं से चुनाव में जीतने के मंत्र बताए। साथ साथ अगले लोकसभा चुनाव का काउंटडाउन भी शुरू कर दिया और कहा कि अब चार सौ दिन बचे हैं और आपका समय शुरू होता है अब! सवाल है कि चार सौ दिन पहले से पार्टी को लोकसभा चुनाव की तैयारी में झोंकने का क्या मतलब है? यह सवाल इसलिए है क्योंकि भारत में अमेरिका की तरह का सिस्टम नहीं है कि पार्टी चुनाव लड़ती लड़ाती है तो सरकार अपना काम करती है। भारत में पार्टी ही सरकार है और सरकार ही पार्टी है। सो, जब कमर कस कर चुनाव में जुट जाने की बात होती है तो वह सिर्फ पार्टी के लिए नहीं होती है, बल्कि सरकार के लिए भी होती है। सोचें, चार सौ दिन पहले से सरकार अगर चुनाव में जुट गई तो क्या होगा?

पूरी सरकार उसी में उलझी रहेगी।

इसे कई बातों से समझा जा सकता है। पहली बात पार्टी से ज्यादा केंद्र सरकार के मंत्री प्रचार और चुनाव के काम में लगे होते हैं। पार्टी ने 144 सीटों का एक ब्लॉक बनाया है, जहां वह पिछली बार हार गई थी। पिछली बार उसने साढ़े चार सौ के करीब सीटों पर चुनाव लड़ा था और 303 पर जीती थी। बाकी हारी हुई 144 सीटों में से इस बार भाजपा का लक्ष्य 70 फीसदी सीटों पर जीतने का है। इसके लिए केंद्रीय मंत्रियों की जिम्मेदारी लगाई गई है। हर केंद्रीय मंत्री के जिम्मे दो-दो या तीन-तीन सीटें हैं, जहां उनको मेहनत करनी है। केंद्रीय मंत्रियों ने ऐसी सीटों पर खूब भागदौड़ की है। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा और केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह के साथ उन मंत्रियों की इस मसले पर कई बैठकें हुईं है। उन्होंने अपनी फीडबैक पार्टी को दी। एक खबर के मुताबिक अमित शाह ने इन सीटों पर काम कर रहे केंद्रीय मंत्रियों को हर सीट जिताने के लिए कहा है और चेतावनी भी दी है।

भाजपा ने पहले 144 सीटों की एक अलग रणनीति बनाई थी लेकिन बाद में इसे बढ़ा कर 160 कर दिया गया। अब कहा जा रहा है कि कमजोर सीटों की संख्या 204 हो गई है, जिन पर केंद्रीय मंत्री काम कर रहे हैं। इसके अलावा एक रिपोर्ट के मुताबिक करीब साढ़े चार सौ सीटों पर भाजपा अगले चुनाव में लड़ेगी।इन सीटों का जिम्मा केंद्रीय मंत्रियों को दिया गया है। उनको राज्यों का दौरा करना है। हर लोकसभा सीट तक पहुंचने, सरकार के कामकाज की जानकारी देने और लोगों के लिए चलाई गई योजनाओं के बारे में बताना है। भाजपा पहले भी ऐसा करती थी कि राज्यों में पार्टी के प्रभारियों के अलावा केंद्रीय मंत्रियों को चुनाव प्रभारी बनाती थी। इस बार केंद्रीय मंत्रियों को पहले ही सीटवार जिम्मा दे दिया गया है। अब सोचें, अगले चार सौ दिन इन केंद्रीय मंत्रियों की क्या प्राथमिकता होगी? वे दिल्ली में अपने दफ्तर में बैठ कर सरकार चलाने का काम करेंगे या उन क्षेत्रों में भागदौड़ करेंगे, जहां की जिम्मेदारी उनको मिली है?

प्रधानमंत्री ने चार सौ दिन का जुमला बोला, जबकि चुनाव की घोषणा में उससे थोड़ा ज्यादा समय बाकी है। तभीइतना पहले जब सरकार चुनाव के मोड में होगी तो और क्या होगा? मंत्रियों की भागदौड़ से सरकार का कामकाज तो प्रभावित होगा ही साथ में सरकार के फैसले भी चुनाव से प्रभावित होंगे। उनके ऊपर चुनाव की मजबूरी होगी। फैसले ऐसे होंगे, जिनका ज्यादा से ज्यादा राजनीतिक लाभ मिले। लोक लुभावन घोषणाओं की बाढ़ आएगी। अंधाधुंध परियोजनाओं की घोषणा होगी, जिनके पूरा होने की गारंटी कोई नहीं दे सकता। पहले से चल रही परियोजनाएं आधी अधूरी होंगी तब भी उनका उद्घाटन होगा। सरकार पर दबाव होगा कि वह वित्तीय अनुशासन की चिंता करने की बजाय खजाना खोले। नीतियों को लचीला बनाए ताकि लोगों को तात्कालिक लाभ मिले।चुनाव के लिहाज से वित्तीय और जांच एजेंसियों का इस्तेमाल होने लगेगा। कुल मिला कर चार सौ दिन पहले से राजनीतिक और चुनावी नैरेटिव बनने लगेगा। पार्टी तो जो काम करेगी वह अपनी जगह है लेकिन प्रधानमंत्री सहित पूरी सरकार चुनाव के काम में लग गई है। इस साल का बजट वैसे भी चुनावी होना है क्योंकि यह इस सरकार का आखिरी पूर्ण बजट होगा।

By हरिशंकर व्यास

मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक और पत्रकार। नया इंडिया समाचारपत्र के संस्थापक-संपादक। सन् 1976 से लगातार सक्रिय और बहुप्रयोगी संपादक। ‘जनसत्ता’ में संपादन-लेखन के वक्त 1983 में शुरू किया राजनैतिक खुलासे का ‘गपशप’ कॉलम ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ तक का सफर करते हुए अब चालीस वर्षों से अधिक का है। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम की प्रस्तुति। सप्ताह में पांच दिन नियमित प्रसारित। प्रोग्राम कोई नौ वर्ष चला! आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों की बारीकी-बेबाकी से पडताल व विश्लेषण में वह सिद्धहस्तता जो देश की अन्य भाषाओं के पत्रकारों सुधी अंग्रेजीदा संपादकों-विचारकों में भी लोकप्रिय और पठनीय। जैसे कि लेखक-संपादक अरूण शौरी की अंग्रेजी में हरिशंकर व्यास के लेखन पर जाहिर यह भावाव्यक्ति -

Leave a comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

और पढ़ें