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मुद्दा एक ही है- अदानी का, उसे घर घर पहुंचाएं

राहुल गांधी अपनी भारत जोड़ो यात्रा में बार बार वैकल्पिक दृष्टि देने की बात कर रहे थे। लेकिन वह वैकल्पिक दृष्टि क्या है? क्या भाजपा के हिंदुत्व के मुद्दे या राष्ट्रवाद के मुद्दे के मुकाबले कांग्रेस के पास कोई इतना ही मजबूत वैकल्पिक नैरेटिव है? अगर नहीं है तो उसमे घुसने की जरूरत नहीं है। मंदिर, राष्ट्रवाद, हिंदुत्व या भाजपा के विकास के दावे का विरोध करते हुए लड़ने की बजाय कांग्रेस को अदानी समूह और हिंडनबर्ग रिसर्च की रिपोर्ट को घर-घर पहुंचाने की जरूरत है। यह ऐसा मुद्दा है, जिस पर अभी भी भाजपा बैकफुट पर है और लोग इस बात को समझ रहे हैं। लोगों को अगर समझाया जाए कि किस तरह से आम आदमी को पांच किलो अनाज देकर उसकी आड़ में खरबों रुपए एक कारोबारी को दिए गए। किसी तरह से उस कारोबारी ने शेयर बाजार में आम आदमी का रुपया डुबाया और किस तरह से सरकारी कंपनियों से अदानी समूह में पैसा लगवाया गया और उनका पैसा डूबा। वह भी आम लोगों का ही पैसा है।

ध्यान रहे शेयर बाजार, जिसको नरेंद्र मोदी की सरकार ने विकास का पैमाना बनाया हुआ था उससे लोगों का मोहभंग हुआ है। शेयर बाजार में खुदरा निवेशकों की हिस्सेदारी तीन साल में सबसे कम स्तर पर पहुंच गई है। सोचें, तीन साल में शेयर बाजार कहां से कहां पहुंचा लेकिन उसमें खुदरा निवेशकों की हिस्सेदारी 66 फीसदी से घट कर 44 फीसदी रह गई है। यह जनवरी से गिरना शुरू हुआ है और तब से लगातार गिर रहा है। ध्यान रहे 24 जनवरी को अदानी समूह के बारे में हिंडनबर्ग की रिपोर्ट आई है। उसके बाद खुदरा निवेशकों का शेयर बाजार छोड़ना तेज हो गया। लाखों लोगों के पैसे डूब गए और लाखों लोग बचे खुचे पैसे निकाल कर बाहर हुए हैं। इसका मतलब है कि शेयर बाजार को लेकर किए जा रहे दावों पर या जो तस्वीर दिखाई जा रही थी उस पर लोगों का भरोसा नहीं रहा।

इसी तरह अदानी समूह में सरकारी कंपनियों खास कर एलआईसी और स्टेट बैंक के निवेश को लेकर सरकार घिरी थी तब एलआईसी की ओर से कहा गया था कि उसने अदानी समूह में जितना निवेश किया था, अब भी उसके शेयरों की कीमत उससे ज्यादा है। लेकिन अब एलआईसी का मूलधन भी डूबने लगा है। एलआईसी ने अदानी समूह में जितना निवेश किया था, उसके शेयरों की कीमत उससे नीचे आ गई है। जिस समय अदानी समूह के खिलाफ हिंडनबर्ग की रिपोर्ट आई थी उस समय एलआईसी के खरीदे शेयरों की कीमत 83 हजार करोड़ रुपए थी। कई दिन की गिरावट के बाद इसके शेयरों की कीमत जब आधी रह गई तब एलआईसी की ओर से बताया गया कि उसने 30 हजार करोड़ रुपए के शेयर खरीदे थे और अब भी उनकी कीमत उससे ज्यादा है। उस समय कंपनी ने कुछ और निवेश अदानी समूह में किया। गुरुवार की रिपोर्ट के मुताबिक एलआईसी के पास अदानी समूह के जो शेयर थे उनकी कीमत 26,861 करोड़ रुपए रह गई है। यानी 30,127 करोड़ का शेयर 26,861 करोड़ रुपए का रह गया। मूलधन में 11 फीसदी की कमी आई है। पिछले कई बरसों में इन शेयरों से जो कमाई हुई थी वह तो एलआईसी ने गंवा ही दी और अब मूलधन भी डूबने लगा है।

एक तरफ सकारात्मक मैसेज बनवाने के प्रयास हैं। अदानी समूह ने अपने एफपीओ में लगाए गए निवेशकों के पैसे लौटाए। उसने स्टेट बैंक का डेढ़ हजार करोड़ रुपए का कर्ज लौटाने का ऐलान किया है। उसने डीबी पावर सहित अधिग्रहण की दो बड़ी डील रद्द की है। वही सरकार ने एलआईसी के चेयरमैन को छह महीने का सेवा विस्तार दिया है। बैंक ऑफ बड़ौदा के चेयरमैन ने कहा है कि वे अभी भी अदानी समूह को कर्ज देने के लिए तैयार हैं। इसके बावजूद कंपनी के शेयरों में गिरावट थम नहीं रही है।

अगर कांग्रेस और दूसरी विपक्षी पार्टियां इसे मुद्दा बनाएं तो आम लोगों को इसके साथ जोड़ा जा सकता है। इसमें लोगों के आर्थिक नुकसान का मामला भी है तो साथ ही सरकार के क्रोनी भ्रष्टाचार का खुलासा भी होता है। नरेंद्र मोदी सरकार की यूएसपी यही है कि वह ईमानदार सरकार है। लेकिन अदानी समूह का विवाद सरकार की ईमानदारी की पोल खोलने वाला है। इसलिए विपक्ष को हिंदू राजनीति, राष्ट्रवाद की बजाय घर घर मैसेज बनवना चाहिए कि गरीब और आमआदमी के नाम पर रेवडियां वही अदानी खजाना, लोगों की बचत दे डालना। शेयर बाजार से मध्य वर्ग के लोगों का पैसा लूटवा देना!

By हरिशंकर व्यास

भारत की हिंदी पत्रकारिता में मौलिक चिंतन, बेबाक-बेधड़क लेखन का इकलौता सशक्त नाम। मौलिक चिंतक-बेबाक लेखक-बहुप्रयोगी पत्रकार और संपादक। सन् 1977 से अब तक के पत्रकारीय सफर के सर्वाधिक अनुभवी और लगातार लिखने वाले संपादक।  ‘जनसत्ता’ में लेखन के साथ राजनीति की अंतरकथा, खुलासे वाले ‘गपशप’ कॉलम को 1983 में लिखना शुरू किया तो ‘जनसत्ता’, ‘पंजाब केसरी’, ‘द पॉयनियर’ आदि से ‘नया इंडिया’ में लगातार कोई चालीस साल से चला आ रहा कॉलम लेखन। नई सदी के पहले दशक में ईटीवी चैनल पर ‘सेंट्रल हॉल’ प्रोग्राम शुरू किया तो सप्ताह में पांच दिन के सिलसिले में कोई नौ साल चला! प्रोग्राम की लोकप्रियता-तटस्थ प्रतिष्ठा थी जो 2014 में चुनाव प्रचार के प्रारंभ में नरेंद्र मोदी का सर्वप्रथम इंटरव्यू सेंट्रल हॉल प्रोग्राम में था।आजाद भारत के 14 में से 11 प्रधानमंत्रियों की सरकारों को बारीकी-बेबाकी से कवर करते हुए हर सरकार के सच्चाई से खुलासे में हरिशंकर व्यास ने नियंताओं-सत्तावानों के इंटरव्यू, विश्लेषण और विचार लेखन के अलावा राष्ट्र, समाज, धर्म, आर्थिकी, यात्रा संस्मरण, कला, फिल्म, संगीत आदि पर जो लिखा है उनके संकलन में कई पुस्तकें जल्द प्रकाश्य।संवाद परिक्रमा फीचर एजेंसी, ‘जनसत्ता’, ‘कंप्यूटर संचार सूचना’, ‘राजनीति संवाद परिक्रमा’, ‘नया इंडिया’ समाचार पत्र-पत्रिकाओं में नींव से निर्माण में अहम भूमिका व लेखन-संपादन का चालीस साला कर्मयोग। इलेक्ट्रोनिक मीडिया में नब्बे के दशक की एटीएन, दूरदर्शन चैनलों पर ‘कारोबारनामा’, ढेरों डॉक्यूमेंटरी के बाद इंटरनेट पर हिंदी को स्थापित करने के लिए नब्बे के दशक में भारतीय भाषाओं के बहुभाषी ‘नेटजॉल.काम’ पोर्टल की परिकल्पना और लांच।

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