नई दिल्ली। नए वक्फ कानून की वैधानिकता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने अंतरिम फैसला सुरक्षित रख लिया। इससे पहले अदालत ने लगातार तीन दिन तक सुनवाई की। तीसरे दिन यानी गुरुवार को सुनवाई के बाद चीफ जस्टिस बीआर गवई की बेंच ने फैसला सुरक्षित रख लिया। अदालत ने जिन मुद्दों पर सुनवाई की है उनमें वक्फ घोषित संपत्तियों को डिनोटिफाई करना यानी उन्हें वापस लेना और ‘वक्फ बाई यूजर या वक्फ बाय डीड’ के मुद्दा शामिल है।
सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ताओं के वकील कपिल सिब्बल ने कहा कि वक्फ के दर्जे को लेकर एक बार जांच शुरू हो जाए तो रिपोर्ट आने तक वक्फ का दर्जा खत्म हो जाता है। सिब्बल ये कहा, ‘देश में दो सौ साल से भी पुराने बहुत से कब्रिस्तान हैं।दो सौ साल बाद सरकार कहेगी कि यह मेरी जमीन है और इस तरह कब्रिस्तान की जमीन छीनी जा सकती है’।
वक्फ कानून पर सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुरक्षित रखा
तब चीफ जस्टिस ने सवाल पूछा कि जमीन का रजिस्ट्रेशन क्यों नहीं कराया गया? सिब्बल ने इसके जवाब में कहा कि मुस्लिम समुदाय ने रजिस्ट्रेशन इसलिए नहीं कराया, क्योंकि यह राज्य की जिम्मेदारी थी, अब सरकार कहती है कि उन्होंने रजिस्ट्रेशन नहीं कराया, इसलिए यह समुदाय की गलती है। सिब्बल ने कहा, ‘यदि आपके पास शक्ति है तो आप खुद की गलती का लाभ नहीं उठा सकते’।
तीसरे दिन की सुनवाई में सरकार की ओर से पेश सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने सेक्शन 3ई पर अपनी बात रखी। उन्होंने कहा कि सेक्शन 3ई अनुसूचित क्षेत्रों के तहत आने वाली भूमि पर वक्फ के निर्माण पर रोक लगाता है। यह प्रावधान अनुसूचित जनजाति के संरक्षण के लिए था।
उन्होंने कहा, ‘अनुसूचित क्षेत्रों में अनुसूचित जनजाति को संवैधानिक संरक्षण प्राप्त है। मान लीजिए कि मैं जमीन बेचता हूं और पता चलता है कि जमीन के लेन देन में अनुसूचित जनजाति समुदाय के व्यक्ति के साथ धोखा हुआ है तो जमीन वापस दी जा सकती है, लेकिन वक्फ कहता है कि दान दी गई जमीन को वापस नहीं लिया जा सकता’।
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