नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने जाति जनगणना के मसले पर बिहार सरकार को बड़ी राहत दी है। सर्वोच्च अदालत बिहार में जातिगत जनगणना के खिलाफ दाखिल याचिकाओं पर सुनवाई से इनकार कर दिया है। साथ ही अदालत ने सख्त टिप्पणी करते हुए यह भी कहा कि ये याचिकाएं पब्लिसिटी इंट्रेस्ट का मामला लगती हैं। अदालत ने पूछा कि याचिकाकर्ता इस मामले में पटना हाई कोर्ट क्यों नहीं गए?
जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस विक्रम नाथ की बेंच ने इस मामले में सुनवाई की और एक तरह से राज्य सरकार के फैसले का समर्थन किया। जस्टिस गवई ने कहा कि अगर रोक लगाई गई, तो सरकार कैसे निर्धारित करेगी कि आरक्षण कैसे दिया जाए? बिहार में जाति जनगणना कराने के खिलाफ तीन याचिकाएं दाखिल की गई थीं। ‘एक सोच एक प्रयास’ नाम के संगठन, हिंदू सेना और बिहार निवासी अखिलेश कुमार ने सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की थी।
हिंदू सेना ने अपनी याचिका में कहा है कि बिहार सरकार जातिगत जनगणना कराकर भारत की अखंडता और एकता को तोड़ना चाहती हैं। याचिका में जाति जनगणना कराने के बिहार सरकार के फैसले को चुनौती दी गई है। गौरतलब है कि बिहार में जातिगत जनगणना के लिए छह जून को राज्य सरकार की ओर से जारी अधिसूचना को रद्द करने और बिहार सरकार को जातिगत जनगणना से रोकने की मांग की गई है। इसमें कहा गया है कि बिहार सरकार जातिगत जनगणना कराने की कार्यवाही की जा रही है वह संविधान के मूल ढांचे का उल्लंघन है? यह भी सवाल उठाया गया है कि क्या भारत का संविधान राज्य सरकार को जातिगत जनगणना करवाए जाने का अधिकार देता है?