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बेबाक विचार

ध्यान भटकाने का उपाय

ByNI Editorial,
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जिस देश में लगभग 15 प्रतिशत प्राइमरी स्कूलों में सिर्फ एक शिक्षक हो,  वहां यह सवाल कतई अहम नहीं हो सकता कि शिक्षक स्कूलों में क्या ड्रेस पहनें। लेकिन भटकी प्राथमिकताओं के इस दौर में सरकारों ने इसी मुद्दे को अहम बना दिया है।

भारत में जरूरत स्कूल सहित हर स्तर पर शिक्षा की गुणवत्ता बढ़ाने की है। शिक्षा देने  वाले या पाने वाले सीखने-सिखाने के दौरान क्या पहनते हैं, यह एक प्रासंगिक मुद्दा है। जिस देश में लगभग 15 प्रतिशत प्राइमरी स्कूलों में सिर्फ एक शिक्षक हो, वहां यह सवाल कतई अहम नहीं हो सकता कि शिक्षक स्कूलों में क्या ड्रेस पहनें। लेकिन भटकी प्राथमिकताओं के इस दौर में सरकारों ने इसी मुद्दे को अहम बना दिया है। तो अब असम में स्कूल शिक्षक अपनी मर्जी के कपड़े पहन कर स्कूल नहीं जा सकेंगे। असम सरकार ने अब शिक्षकों के लिए ड्रेस कोड तय कर दिया है। अगर शिक्षकों के एक तबके में इसको लेकर नाराजगी है, तो उसे वाजिब ही कहा जएगा। उनकी यह बात सही है कि वैसे भी तमाम शिक्षक शालीन कपड़े पहन कर स्कूलों में आते हैं। जबकि सरकार के आदेश से संदेश देने की कोशिश की गई है जैसे ज्यादातर शिक्षक अजीबोगरीब और फैशनेबल कपड़े पहन कर काम पर आते हों। बहरहाल, असम ऐसा करने वाला पूर्वोत्तर का पहला राज्य बन गया है। असम स्कूल शिक्षा विभाग ने शिक्षकों के लिए ड्रेस कोड जारी करते हुए सभी सरकारी स्कूलों में शिक्षकों के लिए टी-शर्ट, जींस और मनमानी पोशाक पहनने पर पाबंदी लगा दी है।

महिला शिक्षकों के लेगिन्स पहनने पर रोक लगाते हुए उनसे सलवार सूट, साड़ी या असम की पारंपरिक पोशाक मेखला चादर पहनकर शिक्षण संस्थान में आने को कहा गया है। इससे पहले इसी साल ओडिशा सरकार ने भी शिक्षकों के लिए ड्रेस कोड तय किया था। उसके अलावा गुजरात सरकार भी इस पर विचार कर रही है। जाहिर है, यह सिलसिला आगे बढ़ेगा, क्योंकि इसमें असल सवालों से कुछ समय तक ध्यान भटकाए रखने की संभावना है। असम सरकार का कहना है चूंकि शिक्षकों से विशेष कर्तव्यों का निर्वहन करते समय सभी प्रकार की शालीनता का एक उदाहरण होने की उम्मीद की जाती है, इसलिए ड्रेस कोड का पालन करना जरूरी है। यह सोच भी अपने आप में समस्याग्रस्त है। शालीनता का संबंध सिर्फ परिधान से नहीं होता। यह आचार-व्यवहार में जाहिर होती है, जिसमें इस वक्त क्षरण का दौर है।

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