नई दिल्ली। दिल्ली के मंत्रिमंडल ने राष्ट्रीय राजधानी के निजी और सरकारी स्कूलों में फीस को विनियमित करने के प्रावधान वाले एक विधेयक को मंगलवार को मंजूरी दे दी। इस फैसले से हर साल मनमाने ढंग से फीस बढ़ाने का मुद्दा उठाने वाले अभिभावकों को बड़ी राहत मिलेगी। मुख्यमंत्री रेखा गुप्ता ने संवाददाता सम्मेलन में कहा कि सरकार के निर्देशों का पालन न करने पर स्कूलों पर एक लाख रुपये से लेकर 10 लाख रुपये तक का कठोर जुर्माना लगाया जाएगा। गुप्ता ने इस कदम को “साहसिक व ऐतिहासिक” करार देते हुए कहा कि भाजपा सरकार दिल्ली स्कूल शिक्षा पारदर्शिता निर्धारण एवं शुल्क विनियमन विधेयक, 2025 को पारित करने के लिए तत्काल दिल्ली विधानसभा का सत्र बुलाएगी।
शिक्षा मंत्री आशीष सूद के साथ मौजूद मुख्यमंत्री ने कहा कि पिछले दिनों इस मुद्दे पर व्यापक रूप से चर्चा हुई और कुछ स्कूलों की गतिविधियों व फीस वृद्धि के नाम पर छात्रों के “उत्पीड़न” की शिकायतों के कारण अभिभावकों में “घबराहट” थी। उन्होंने कहा, “दिल्ली की पिछली सरकारों ने फीस वृद्धि को रोकने के लिए कोई प्रावधान नहीं किया। निजी स्कूलों द्वारा फीस वृद्धि को रोकने में सरकार की मदद करने के लिए कोई दिशानिर्देश नहीं था।”
सूद ने कहा कि विधेयक में स्कूल, जिला व राज्य स्तर पर तीन स्तरीय समितियों के गठन का प्रस्ताव है। इससे स्कूल फीस निर्धारित करने की प्रक्रिया में बहुत जरूरी पारदर्शिता वसंरचना आएगी और अभिभावकों को अनियमित बढ़ोतरी से बचाया जा सकेगा। उन्होंने कहा कि पूरी प्रक्रिया समयबद्ध होगी, ताकि अभिभावकों को किसी तरह की परेशानी न हो।
शिक्षा मंत्री के अनुसार, पहले स्तर पर प्रत्येक स्कूल एक स्कूल स्तरीय फीस विनियमन समिति का गठन करेगा। उन्होंने कहा कि इस समिति में स्कूल प्रबंधन के अध्यक्ष, सदस्य सचिव के रूप में प्रिंसिपल, तीन शिक्षक व पांच अभिभावक शामिल होंगे, जिनमें एससी/एसटी समुदाय के सदस्य और कम से कम दो महिलाएं शामिल होंगी जबकि शिक्षा निदेशालय से एक नामित व्यक्ति पर्यवेक्षक के रूप में काम करेगा।
सूद ने कहा कि स्कूल अब मनमाने ढंग से फीस नहीं बढ़ा सकेंगे तथा कोई भी बढ़ोतरी हर तीन साल में एक बार ही की जाएगी और वह भी इस समिति की मंजूरी के बाद। उन्होंने कहा, “फीस बढ़ाने का फैसला 18 महत्वपूर्ण मापदंडों पर आधारित होगा, जिसमें कक्षाओं व इमारतों की स्थिति, स्कूल के वित्तीय भंडार और विज्ञान प्रयोगशालाओं, पुस्तकालयों व खेल के मैदानों की गुणवत्ता शामिल है।”
शिक्षा मंत्री ने कहा कि इन मानकों का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि अगर फीस बढ़ोतरी को मंजूरी दी जाती है, तो यह वास्तविक बुनियादी ढांचे या सेवा सुधारों के आधार पर उचित हो। सूद ने घोषणा की कि ये स्कूल-स्तरीय समितियां 31 जुलाई तक गठित की जाएंगी और उन्हें 30 दिन में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करनी होगी। उन्होंने कहा, “अगर स्कूल-स्तरीय समिति समय पर अपनी सिफारिश प्रस्तुत करने में विफल रहती है, तो मामला जिला स्तरीय समिति को भेज दिया जाएगा। अगर फिर भी समाधान नहीं होता है, तो सात सदस्यों वाली एक राज्य स्तरीय समिति को अंतिम निर्णय लेने का अधिकार दिया जाएगा।”
देश की सुरक्षा, संप्रभुता से जुड़ी रिपोर्ट का खुलासा नहीं किया जाएगा: न्यायालय नई दिल्ली, भाषा। उच्चतम न्यायालय ने मंगलवार को कहा कि वह देश की सुरक्षा और संप्रभुता से जुड़ी किसी भी रिपोर्ट का खुलासा नहीं करेगा लेकिन उसने संकेत दिया कि निजता के उल्लंघन की व्यक्तिगत आशंकाओं से निपटा जाना चाहिए। न्यायमूर्ति सूर्यकांत और न्यायमूर्ति एन कोटिश्वर सिंह की पीठ ने कहा कि तकनीकी समिति की रिपोर्ट को सड़कों पर चर्चा का दस्तावेज नहीं बनाया जाना चाहिए।
पीठ ने कहा, ‘‘देश की सुरक्षा और संप्रभुता से जुड़ी किसी भी रिपोर्ट को नहीं छुआ जाएगा लेकिन जो व्यक्ति यह जानना चाहते हैं कि उन्हें इसमें शामिल किया गया है या नहीं, उन्हें सूचित किया जा सकता है। हां, व्यक्तिगत आशंकाओं से निपटा जाना चाहिए लेकिन इसे सड़कों पर चर्चा का दस्तावेज नहीं बनाया जा सकता।’’ शीर्ष अदालत ने कहा कि उसे इस बात की भी समीक्षा करनी होगी कि तकनीकी पैनल की रिपोर्ट को व्यक्तियों के साथ किस हद तक साझा किया जा सकता है।
सुनवाई के दौरान एक याचिकाकर्ता की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने एक अमेरिकी जिला अदालत के फैसले का जिक्र किया। सिब्बल ने कहा, ‘‘व्हाट्सऐप ने खुद ही यहां खुलासा किया है। किसी तीसरे पक्ष ने नहीं। व्हाट्सऐप ने हैकिंग के बारे में कहा है।’’ शीर्ष अदालत ने कहा कि वह 30 जुलाई को मामले की सुनवाई करेगी। एक अंतरराष्ट्रीय मीडिया संघ ने बताया था कि 300 से अधिक सत्यापित भारतीय सेलफोन नंबर उन संभावित लक्ष्यों की सूची में थे जिनकी पेगासस स्पाइवेयर का उपयोग करके निगरानी की जानी थी।